प्रवासी मन

 

इतने भरे भरे

घर में

एश्वरोयों सहित

रहते हुए

जहाँ कांटा भी

न लगे

जहाँ हाथ भी

न दुखे

जहाँ पलने पड़े

शिशु का सा

मखमली आभास हो

बाहर भीतर

सुख ही सुख

ऊपर नीचे

मसनदी मखमल

बिछे हों .. और

कहीं स्वप्निल

आकान्क्षायों को

पूर्णता से

भरते हों

वहाँ भी मन

कहीं कैदी सा

बंधा हुआ

घुटा हुआ

एकाकी सुदूर

अपनी मिटटी

से बंधा हुआ

सुबकता

कुछ कहता हो

तो समझों

वतन की

याद आई है …

 

-सुदर्शन प्रियदर्शिनी

शिक्षा: पी .एच ड़ी हिन्दी ।अनेक वषों तक भारत में श्क्षिण कार्य किया ।

अमरीका में 1982 में आई तब से लेखन लगभग बंद रहा । अब पिछले दो चार सालों से भारत की पत्रिकायों में छपने लगी हूं ।अमरीका में रह कर भारतीय संस्कृति पर आधारित लगभग दस साल तक पत्रिका निकाली । टी. वी प्रोग्राम एंव रडियो प्रसारण भी किया । अब केवल स्वतंत्र लेखन ।

पुरस्कार:

महादेवी पुरस्कार. . हिन्दी परिषद टोरंटो कनाडा

महानता पुरस्कार . . फेडरेशन ऑफ इडिया ओहायो
गर्वनस मीडिया पुरस्कार ओहायो यू .एस. ए.

प्रकाशित रचनायें . . .
उपन्यास: . रेत के घर । भावना प्रकाशन
                 जलाक । आाधारशिला प्रकाशन
                 सूरज नही उगेगा बिशन चंद एंड सनस

कविता संग्रह: शिखंडी युग अर्चना प्रकाशन

                    बराह वाणी प्रकाशन
                    यह युग रावण है अयन प्रकाशन
                    मुझे बुद्ध नही बनना अयन प्रकाशन

कविता संग्रह पंजाबी: मैं कौण हां पंजाबी चेतना प्रकाशन

कहानी संग्रह: उत्तरायण नमन प्रकाशन

प्रकाशनाधीन: न भेज्यो बिदेस उपन्यास

 

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