जाने क्यूँ दिन रात मारा-मारा फिरता है इंसान?
जेब नोटों से भरी है, चैन-ओ-शुकून को तरसता है इंसान।
कभी अपनों को छोड़, कभी सपनों को छोड़,
खूब कमाई जोड़ी, कर मेहनत जी तोड़।
कभी खुद से हारा, कभी हालातों से हारा
साथ कुछ न जाना, फिरे क्यूँ इंसान मारा-मारा।
दौलत के अम्बार होंगे, बेशक मखमल पर सोना होगा
आएगा बुलावा जिस दिन, खाली हाथ ही जाना होगा।
कहे कवि ‘राज़’ मन में तू थोड़ी भक्ति भर ले
छोड़ मोह-माया, हे इंसान! प्रभु का ध्यान धर ले।
- राज़ सोरखी “दीवाना कवि”
पिता का नाम- श्री धर्मपाल शर्मा (सेना से रिटायर्ड)
जन्म तिथि - 11 नवम्बर
पता- गाँव व् डाकखाना – सोरखी, तहसील-हांसी, जिला-हिसार, राज्य -हरियाणा, देश-भारत
विधाएँ- मुक्तक, कविता, गीत, ग़ज़ल, हाइकु, शायरी, लेख, गद्य, लघु-कथाएं आदि ।
रचनाएँ- अनेक समाचार पत्रों-पत्रिकाओं ,वेबसाइट पर लगातार प्रकाशित होती रहती हैं…
अध्यापक , अभिनेता एवं कवि का संगम