प्रभा के पंख पर पवन सवार
शीतल उत्साह का कर संचार
नई उमंग नई तरंग की बौछार
प्रात:पुष्प की हैं महक अपार ।
यह उत्सव कौनसा बार-बार ?
वृक्ष मुस्कुरा रहे जिस प्रकार
पक्षियों का मधुर गान साकार
जागो प्रकृति कर रही सत्कार ।
बटेर लो खुशियों का उपहार
आँखे खोलो देखों निज द्वार
नींद पर करों पुन: पुन: प्रहार
निकल पडों हर्ष खड़ा बाहर ।
हाथों में लिए रथ कुसुम हार
पहन सका वही व्यक्ति स्वीकार
विजय होगी प्रति पल साभार
देखों प्रभात की आयी है बहार।
- डॉ. सुनिल जाधव
रचनायें :-
कविता : मैं बंजारा हूँ /रौशनी की ओर बढ़ते कदम / सच बोलने की सजा / …….
कहानी / एकांकी : मैं भी इन्सान हूँ / एक कहानी ऐसी भी /भ्रूण ….
शोध : नागार्जुन के काव्य में व्यंग /हिंदी साहित्य विवध आयाम / …..
अनुवाद : सच का एक टुकड़ा {नाटक }
अलंकरण : सृजन श्री ताशकंद /सृजन श्री -दुबई / हिंदी रत्न -नांदेड
विदेश यात्रा : उजबेक [रशिया]/ यु.ए.इ./ व्हियात्नाम /कम्बोडिया /थायलंड …
पता : महाराष्ट्र -०५ ,भारत