१४ सितंबर, १९४७ को भारत के संविधान में देवनागरी लिपि को राष्ट्रीय लिपि एवं हिंदी को राष्ट्रभाषा, राजभाषा के रूप में घोषित किया गया | लगभग आज हिंदी संविधानिक रूप में ६८ साल की हो गयी है | भाषा के क्षेत्र में भाषा जितनी पुरानी और उम्रदराज होती है | उसे उतना ही साहित्य के क्षेत्र में प्रगल्भ समझा जाता है | हिंदी आज प्रगल्भ भाषा बन गयी है | उसने वह सामर्थ्य प्राप्त कर लिया है, जिस कारण वह किसी भी देश के किसी भी विषय वस्तु, शब्द को अभिव्यक्त कर सकती है | उसमें अन्य भाषा के शब्दों को ग्रहण करने की अद्वितीय क्षमता है | हिंदी एक भाषा ही नहीं अपितु वह अपने आप में एक सम्पूर्ण संस्कृति, राष्ट्र की परिभाषा है | भाषा प्रत्येक राष्ट्र की अस्मिता, स्वाभिमान होती है | भाषा के बिना राष्ट्र की कल्पना बिना नीव के घर बनाने जैसा होता है | जो किसी भी समय ढह सकता है | भाषा देश, संस्कृति, समाज, साहित्य, धर्म, राजनीति,अर्थनीति आदि कि परिचायक होती है | उसी से ही हमारी पहचान होती है | जिस किसी कोभी भाषा के महत्व का साक्षात्कार हुआ उसने भाषा की अनिवार्यता के साथ उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा किये बिना नहीं रहा | यही कारण है कि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी ने निज भाषा और हिंदी के महत्व को लेकर कहा,-
निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मूल |
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटेन हिय को सुल ||
राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने कहा -
है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी
आज हिंदी विदेशों में जिस प्रकार से अपनी जड़े जमा रही है | ऐसा लगता है कि आने वाले समय में हिंदी के अच्छे दिन आने वाले है | संख्या के आधार पर यदि देखा जाये तो हिंदी को विश्व के दूसरे क्रम पर रखा जा सकता है | मोरिशियस, फिजी,गुयाना,अफ्रीका,यु.ए.इ, मलेशिया जैसे देशों में तो हिंदी समक्ष के रूप में उभरते हुए हम देख सकते है| सभा, सम्मेलन, संगोष्ठी, कवि सम्मेलन, फ़िल्म, प्रवासी भारतीय, यात्री, टेलीविजन, विज्ञापन आदि के द्वारा हिंदी का लगातार प्रचार-प्रसार हो रहा है | अनुवाद भी एक सशक्त जरये के रूप में उभर सकता है | हिंदी को लेकर एक और चिंता बनती है तो दूसरी और प्रचार-प्रसार को देख कर प्रसन्नता भी महसूस होती है | हिंदी को लेकर देश में उदासीनता और वर्तमान में प्रशासन द्वारा उसे समृध्द करने की बात सुकून दे जाती है | 10 सितंबर को जब मैं एक निजी समाचार चैनल को देख रहा था | तब विश्व हिंदी सम्मेलन, भोपाल का सीधा प्रसार किया जा रहा था | उद्घाटकीय भाषण में जिस प्रकार से वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने हिंदी को लेकर बात कही, लगा कि अब हिंदी के अच्छे दिन आनेवाले है | आप ने अपने भाषण में हिंदी को समृद्ध करने के उपाय एक ओर बताये तो दूसरी और विश्व में हिंदी के बढ़ते कदम की ओर ध्यान आकर्षित किया | हिंदी आज बाजार की भाषा बन गयी है | हिंदी में प्रादेशिक शब्दों को सम्मिलित कर हिंदी को समृद्ध करना चाहिए | हिंदी साहित्य प्रचार का एक माध्यम है | यदि आज विदेशी भाषा में हिंदी साहित्य सामन्य अनुवादित रूप में प्रस्तुत किया जाता है | तो विदेशों में हिंदी के प्रति रूचि अवश्य बढ़ेगी | आज विश्व में लगभग ६००० भाषाएँ है किन्तु भाषा विदों का कहना है कि इक्कीसवी सदी समाप्त होते होते ९० प्रतिशत भाषाएँ खत्म हो जायेगी | किन्तु हिंदी अपना स्थान बनाये रखेगी | जब चारों और हिंदी का डंका बजता हुआ नजर आ रहा है |
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने कहा था, ”हिंदी ही हमारे राष्ट्रीय एकीकरण का सबसे शक्तिशाली और प्रधान माध्यम है। यह किसी प्रदेश या क्षेत्र की भाषा नहीं, बल्कि समस्त भारत की भारती के रूप में ग्रहण की जानी चाहिए।” नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने यह घोषणा की थी कि ”हिंदी के विरोध का कोई भी आंदोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है।”
हिंदी का विश्व भाषा के रूप में उभरना भारत को प्रत्येक क्षेत्र में महासत्ता के रूप में उभरना हैं | मेरे भीतर का कवि ह्रदय इस पर कह उठता है,
पग बढ़ा रही है हिंदी
आगे बढ़ रही है हिंदी
विश्व मस्तक पर
विराजमान हो रही है बिंदी
एक भाषा
एक राष्ट्र
एक धर्म
एकता के सूत्र में पिरोनेवाली हिंदी
आज भारत एवं विश्व तकनीकि ज्ञान के कारण ‘’वसुदैव कुटुम्बकम’’ बन गया है | मोबाइल, अंतर्जाल पर निजी मीडिया ने तहलका-सा मचा दिया हैं | जिसका परिणाम हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हैं | यह हिंदी के लिए गौरव की बात है | किन्तु इसका एक और दोष हमें दिखाई देता हैं | देवनागरी लिपि के स्थान पर रोमन लिपि का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है | इसकी परिणिति देवनागरी की कम लोकप्रियता हो सकती है | या तकनिकी क्षेत्र में देवनागरी से रोमन लिपि टंकित करने में आसान नजर आती है | इस पर यदि हम गूगल इनपुट हिंदी का प्रयोग या यूनिकोड का प्रयोग करते है | तो हम देवनागरी लिपि को और भी सुचारू बना सकते हैं | आज सभी क्षेत्र में यूनिकोड की नितांत आवश्यता है |
- डॉ. सुनिल जाधव
शिक्षा : एम.ए.{ हिंदी } नेट ,पीएच.डी
कृतियाँ :
कविता : १.मैं बंजारा हूँ २.रौशनी की ओर बढ़ते कदम ३.सच बोलने की सजा ४.त्रिधारा ५. मेरे भीतर मैं
कहानी : १.मैं भी इन्सान हूँ २.एक कहानी ऐसी भी .
शोध :१.नागार्जुन के काव्य में व्यंग्य २.हिंदी साहित्य विविध आयाम ३.दलित साहित्य का एक गाँव
अनुवाद : १.सच का एक टुकड़ा [ नाटक ]
एकांकी १.भ्रूण
संशोधन : १.नागार्जुन के काव्य में व्यंग्य का अनुशीलन
२.विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में लगभग पचास आलेख प्रकाशित
अलंकरण एवं पुरस्कार : १.अंतर्राष्ट्रीय सृजन श्री पुरस्कार [ताशकंद]
२. अंतर्राष्ट्रीय सृजन श्री पुरस्कार [दुबई]
३.भाषा रत्न [दिल्ली]
४.अंतर्राष्ट्रीय प्रमोद वर्मा सम्मान [कम्बोडिया ]
५. विश्व हिंदी सचिवालय, मोरिशियस दवारा कविता का अंतर्राष्ट्रीय प्रथम
पुरस्कार
विदेश यात्रा : १.उज्बेक [रशिया ] २.यू.ए.इ ३.व्हियतनाम ४.कम्बोडिया ५.थायलंड
विभिन्न राष्ट्रिय अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में आलेख, कविता, कहानियाँ प्रकाशित :-
नव्या ,सृजन गाथा, प्रवासी दुनिया, रचनाकार, पुरवाई, रूबरू, हिंदी चेतना, अम्स्टेल गंगा,
साहित्य सरिता, आर्य संदेश, नव निकष , नव प्रवाह, १५ डेज, अधिकार, रिसर्च लिंक,
शोध समीक्षा एवं मूल्यांकन, संचारिका, हिंदी साहित्य आकादमी शोध पत्रिका, केरल,
आधुनिक साहित्य, साहित्य रागिनी, खबर प्लस ..आदि |
ब्लॉग : navsahitykar.blogspot.com
काव्य वाचन :
१. अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन, ताशकंद
२. अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन,दुबई
३. विश्व कवि सम्मेलन, कैनडा
४. अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन,कम्बोडिया
सम्प्रति : हिंदी विभाग ,यशवंत कॉलेज, नांदेड
पता : नांदेड ,महाराष्ट्र -०५