रोज हरे पेड़ पौधे क़त्ल कर रहे हो
सोचो जरा तुम ये क्या कर रहे हो
जिसपर जीवन टिका है हनन कर रहे हो
फिर लगाने का न तुम मनन कर रहे हो।
सोचो जरा तुम ये क्या कर रहे हो
जिसपर जीवन टिका है हनन कर रहे हो
फिर लगाने का न तुम मनन कर रहे हो।
पेड़ साथी भी मित्र और जीवन भी है
ये समझने का क्यूँ न जतन कर रहे हो
काटते जा रहे हो लगाते नहीं
आज क्यूँ ऐसा तुम ये अधम कर रहे हो।
ये समझने का क्यूँ न जतन कर रहे हो
काटते जा रहे हो लगाते नहीं
आज क्यूँ ऐसा तुम ये अधम कर रहे हो।
उनके जीने का हक़ न मिटाया करो
उन्हें पुत्र समझ करके अपनाया करो
मूक भाषा में आँसू बहाते हैं वो
अब ज्यादा न उनको सताया करो।
उन्हें पुत्र समझ करके अपनाया करो
मूक भाषा में आँसू बहाते हैं वो
अब ज्यादा न उनको सताया करो।
कुछ न खाता है स्वयं सब देता तुम्हे
ऐसे मित्रों को दिल में बसाया करो
प्राण वायु देकर जो बचाता तुम्हे
ऐसे बन्दों को निकट बैठाया करो।
ऐसे मित्रों को दिल में बसाया करो
प्राण वायु देकर जो बचाता तुम्हे
ऐसे बन्दों को निकट बैठाया करो।
“विमल विहारी” की बात यदि समझे कोई
एक काटो तो दो चार लगाया करो।
एक काटो तो दो चार लगाया करो।
- रमा कांत राय “विमल विहारी”
शिक्षक , वाराणसी