जुमला रटना आजादी का / पक्की है ये बात सियासी ,
मान ले मेरी बात जरा सी / देख असली इंकलाब है सून ।
26 जनवरी , आज, रविवार, शाम को 3.00 बजे “सेंट्रल पार्क” सेक्टर-4 वैशाली , गाज़ियाबाद में मासिक साहित्यिक गोष्ठी “पेड़ों की छांव तले रचना पाठ” के 63वें संस्करण में गणतन्त्र दिवस से जुड़े “आजादी” विषय से संबन्धित गीत गजल कविताओं का दौर देर शाम तक अनवरत चला ।
सर्द ऋतु में जब पहाड़ों में बर्फ की सफ़ेद चादर बिछी हो तब दिल्ली एन.सी.आर ठिठुरन में काँप रही होती है ऐसे में पिछले वर्षों की भांति आयोजित इस साहित्यिक गोष्ठी में गणतन्त्र दिवस से जुड़े शब्दों के अलाव ने मध्यान्ह की मुलायम धूप के बीच गर्मी का एहसास कराया ।
प्रारम्भ मे वरिष्ठ उपन्यास व कहानीकार तथा चित्रकार राजकमल ने मुख्य अतिथि के रूप मे पधार कर क्रमशः पेड़ों की छांव तले फाउंडेशन के “लोगो” का विमोचन किया व दोहे पढे – “प्रेम सुधा जब छक चले, साधु रंक अमीर।/भेदभाव सब मिट गए, एक होगई पीर।।, प्रेम नई नित रीत है, रोज रचे नव छंद। प्रेम नदी बरसात की, तोड़े नित नये बंध।। प्रेम जलेबी-सा लगा, जिसका ओर न छोर। रग-रग डूबी चाशनी, फीकी रही न कोर।। वहीं संयोजक व कवि अवधेश सिंह ने इंकलाब की प्रासंगिकता पर मुक्तक पढ़ते हुए गोष्ठी का आगाज किया -“मैं तुमको आजादी दूंगा / बस दे दो मुझको तुम खून “/ नसीब नहीं आजाद देश को / अब भी एक रोटी दो जून / जुमला रटना आजादी का / पक्की है ये बात सियासी / मान ले मेरी बात जरा सी / देख असली इंकलाब है सून ।
प्रमुख रूप से उपस्थित वरिष्ठ कवियों में सशक्त नवगीत कार वरिष्ठ नवगीत कार जगदीश पंकज ने ओजस्वी गीत पढ़ा “आ गया अंधी सुरंगों से निकल कर / देश अब जनतंत्र को सहला रहा है / जल रहे जनतंत्र की ज्वाला प्रबल हो / इस अराजक मोड पर ठहरी हुई है / और आदम कद हुए षड्यंत्र बढ़कर / छल प्रपंचों की पहुँच गहरी हुई है / एक तरफा घोषणाओं का चलन अब / फिर किसी प्राचीर से बहला रहा है …..”।वहीं संजय शुक्ल ने पढ़ा –“मिट रहेंगी खेतियां यदि /हम समय रहते न चेते / कब जला था, क्यों जला था/ याद नालंदा नहीं है / लौट कर फिर आ रहा वह/ दौर क्या अंधा नहीं है / भूलते इतिहास सारा / जा रहे हैं कुछ पठेते..। ईश्वर सिंह तेवतिया ने पढ़ा – अगर नहीं है पूरी तो फिर/ आओ इनको आधी दे दो/ ये गुलाम हैं मन से अब भी/ चलो इन्हें आज़ादी दे दो।कवि देवेन्द्र कुमार देवेश ने कहा – आप पूंछते हैं उनसे / आजादी किसको कहते हैं / वे क्या जाने जो बेबस / फुटपाथों पे रहते हैं । , कुमार कमदिल ने कहा –“ लूटने वालों ने लूटा खूब मेरे मुल्क की हर शहर हर बस्ती को।/ नाम – ए-जहान था जो मिटाना चाहा उसकी हस्ती को।वहीं अमर आनंद ने पढ़ा –“गण के तंत्र को गन का होने से बचाइये।/ हे शाह, देश को शाहीन बाग होने से बचाइए।/ आज़ादी हम सब को प्यारी है, इसकी ज्योति जलाइए।
अन्य कवियों में क्रमशः राधेश्याम बंधु कन्हैया लाल खरे , इंद्रजीत सुकुमार , उमेश कुमार, कुमार अमिताभ, ,ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र , काव्य पाठ हुआ । नवोदित कवियों मे मनोज दिवेदी ,लव कुश पाण्डेय व आर के मिश्र ने नए सृजन की कोमल अनुभूतियों की रचनाएँ पढ़ी । महिला कवयित्रियों मे क्रमशः गीता गंगोत्री व रिंकू मिश्र ने आजादी पर तरन्नुम से गीत पढे ।कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ वरुण कुमार तिवारी ने की वहीं मंच संचालन अवधेश सिंह ने निभाया । श्रोताओं में ए॰आर॰ पब्लिशिंग के शिवा नन्द तिवारी , शत्रुघन प्रसाद ,अनीता सिंह आदि उपस्थित रहे । आभार प्रदर्शन परिंदे पत्रिका के संपादक ठाकुर प्रसाद चौबे ने किया ।
- अवधेश सिंह , संयोजक व अध्यक्ष पेड़ों की छांव तले फाउंडेशन (पंजीकृत )