“पेड़ों की छांव तले रचना पाठ” – एक अनोखी पहल

उद्देश्य :“पेड़ों की छांव तले रचना पाठ”

” किसी भी व्यक्ति के लिए एकांत एक बड़ा दुश्मन है कई बार यह सबसे बड़ा दोस्त भी होता है। कभी कभी की जरूरत है कि हम एक विशेष चुप्पी चाहते हैं( बिलकुल शांत भी नहीं, और शोर भी नहीं ) ताकि हम एक विचार के लिए चिंतन / खोज कर सकें। फिर इस विचार को हम सभी से नहीं और किसी एक से भी नहीं के रूप में साझा करना चाहते हैं। यह विचार यदि कोई रूप लेता है तो वह एक कविता , एक कहानी, एक विमर्श कुछ भी तो हो सकता है । यही प्रसव है रचना का , एक कविता या कहानी के जन्म होने की घटना। हरे भरे पार्क में , नैसर्गिक वातावरण में , तमाम तामझाम से हट कर वैशाली सेंट्रल पार्क में पहली बार इस नवजात – शैशव रचना के लिए दरवाजा खुला है । “पेड़ों की छांव तले रचना पाठ” साहित्यक गोष्ठी में हम एक महीने में एक बार आखिरी रविवार को एक साथ आते हैं और अपनी नवोदित रचनाए पढ़ते हैं , प्रतिक्रिया होती है, विचार को बल मिलता है और मिलती है अपनी विधा को अपनों की शाबाशी । यह एक ओर व्यावहारिक लेखन की आदतों का समर्थन करता है तथा दूसरी ओर इसमें एक मौलिक लेखन का एक वृहत समुदाय बनाने का उद्देश्य भी है ।”

सोलहवीं साहित्य गोष्ठी “पेड़ों की छांव तले रचना पाठ” २४ जनवरी २०१६ सम्पन्न
आज यहाँ “ पेड़ों की छांव तले रचना पाठ” के अंतर्गत पंद्रहवीं साहित्य गोष्ठी वैशाली गाजियाबाद स्थित हरे भरे मनोरम सेंट्रल पार्क में सम्पन्न हुई । इस अपने प्रकार के नए साहित्यक आयोजन में , पार्क की हरी भरी दूब पर कड़ाके की ठंड और धुंध को चीर कर आती मुलायम किन्तु सुहावनी धूप में पेड़ों और हरियाली के मनोरम सानिध्य में आयोजित इस साहित्य गोष्ठी और रचना पाठ के इस कार्यक्रम में आमंत्रित एवं स्थानीय कवि , कहानी कार, उपन्यासकार ,आलोचक , प्रकाशक आदि ने अपने विचारों के साथ स्वरचित रचनाओं का पाठ किया ।
हिन्दी साहित्य से संबन्धित अभिनव प्रयोग की यह श्रंखला प्रत्येक माह के अंतिम रविवार के अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम अनुसार ही होती है परंतु इस माह अंतिम रविवार ३१ जनवरी २०१६ को था और पिछली गोष्ठी २० दिसंबर के बड़े गैप के होने के कारण अधिकतर अतिथियों के आग्रह पर आज मध्यान्ह उपरांत २.३० बजे से प्रारंभ हुई।
आज की “ पेड़ों की छांव तले रचना पाठ ” साहित्य गोष्ठी गजल –गीत और कविता राष्ट्रियता और 67 वें गणतन्त्र दिवस पर समर्पित रही । नव गीत के सशक्त हस्ताक्षर श्री जगदीश पंकज ने भी नवगीत विधा पर ही अपने नए लोकार्पित संग्रह “निषिद्दों की गली का नागरिक” के गीतों का पाठ किया । गीत और दोहाकार संजय शुक्ल ने अपने गीतों से प्रबुद्ध श्रोताओं को आनन्दित किया। नव गीत कार दिनेश दुबे निर्मल ने छंदात्मक गीतों को प्रस्तुत किया । इसी क्रम में जयशंकर शुक्ल ने गीत और दोहे का पाठ किया । युवा कवि शुभभ अग्रहाई द्वारा ओजस्वी कविताओं को श्रोताओं ने सराहा ।
कविताओं के दौर में देवेन्द्र देवेश ने अपनी कविता फूल पढ़ी और अवधेश सिंह ने अपनी कविता “बंद लिफाफा देता है वाकई में आनंद “ पढ़ कर भृष्टाचार पर तंज़ कसा । इस मौके पर अध्यक्ष की अनुमति लेकर पेड़ों की छाव तले समूह से जुड़ी कवियत्री दीप्ति गुप्ता की कविता “कविता सोंचती है “ का पाठ अवधेश सिंह ने किया और इस पहल पर वाह वाही लूटी । प्रख्यात आलोचक , कवि , ग्रंथकार डा०वरुण कुमार तिवारी ने अपनी कविता के माध्यम से अतीत की परछाईं में शहरी विपन्नता और खामियों की तरफ इशारा किया तथा “बदलती आँखों की रोशनी में” वृद्ध जीवन की विषमताओं पर रचना का पाठ किया ।


प्रारम्भ में कार्यक्रम सह संयोजक परिंदे साहित्यक पत्रिका के प्रबंध संपादक ठाकुर प्रसाद चौबे ने गोस्ठी में पधारे रचनाकारों का स्वागत किया । गोस्ठी के समापन पर आभार व्यक्त करते हुए इस गोस्ठी के संयोजक व संचालन करता कवि लेखक अवधेश सिंह ने इस गोष्ठी की निरंतरता को बनाए रखने का अनुरोध करते हुए सबको धन्यवाद दिया । उपस्थित प्रबुध श्रोताओं में सर्व श्री, कपिल देव नागर, रति राम , भीष्म दत्त शर्मा ,मनीष सिंह , ठाकुर प्रसाद चौबे ,घना नन्द, श्री कृशनबेगराजका , दयाल चन्द्र, अविनाश गुप्ता , पशुपति शर्मा , संवादिया की संपादिका अनीता पंडित , निशा शर्मा व नीतू शर्मा ,

अरविंद सिंह भारत भूषण , यादूनन्दन मेहता आदि प्रबुध श्रोताओं ने रचनाकारों के उत्साह को बढ़ाया । गोष्ठी का सफल संचालन रघुवीर शर्मा ने किया ।

 

 - अवधेश सिंह, संयोजक

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