पत्र -अप्रैल जून 2013

पत्र

पत्र , पत्रिका और पाठकों के बीच संवाद का माध्यम हैं |

आपके पत्र हमारा मनोबल बढ़ाते है | हमें और बेहतर करने के लिए प्रेरित करते हैं |

आपके अपने खट्टे मीठे पत्रों की इस दुनिया में आपका स्वागत है…

 

*******************************************************************************************

नव वर्ष की शुभकामनाएं, नए अंक के लिए बधाई…।

विवेक मिश्र

*******************************************************************************************

संपादक महोदय
सादर अभिवादन
हाइकु प्रकाशित करने के लिए हार्दिक आभार | कुछ मित्रों को लिंक दिया तो
उन्होंने जानना चाहा है की क्या यह प्रिंट में भी है या आएगी ? कृपया
बताएं | पत्रिका को अलग अलग अनुभागों में बाँट ,जिस प्रकार आपने
व्यवस्थित किया है उसके लिए बधाई एंव मंगलकामनाएं |
आपका
अनंत आलोक

*******************************************************************************************

नीदरलैंड्स (पुराना हालैंड) से प्रकाशित होने वाली इस पहली साहित्यिक पत्रिका ”एम्स्टेल गंगा” को मेरी बधायी और शुभ कामनाएं। इसका कलेवर प्रभावी है। और मैं आशा करता हूँ कि यह हिन्दी में लिखने और पढने वालों के आपस में संवाद का एक सशक्त माध्यम बनेगा।
”एम्स्टेल” हालैंड के लिए वैसी ही अनुभूतियों को जोड़ने वाली नदी है जैसे भारत और भरतवंशियों के लिए कहीं भी गंगा। इसलिए इस पत्रिका का नामकरण ”एम्स्टेल-गंगा” बहुत कुछ समेटता है।
नदी की अनुभूतियों पर केन्द्रित अपनी कुछ कवितायेँ आप के लिए मेल कर रहा हूँ। उपयुक्त पायें तो अपने यहाँ प्रकशित कर सकते हैं।

सस्नेह,
सतीश जायसवाल।

*******************************************************************************************

श्रीमान संपादक महोदय,
नमस्कार,

एम्स्टेल गंगा का चिरप्रतीक्षित द्वितीय अंक मेरे समक्ष है और मैं प्रसन्न क्यूँ की पाठक मन बहुत हद तक संतुष्ट हुआ।हिंदी साहित्य के लिए किये जा रहे कार्यों में अम्स्टेल गंगा अपनी सशक्त उपस्तिथि दर्ज करवाने में निसंदेह समर्थ है।

पूर्ण अंक आँखों से निकलने के बावजूद जो रचनायें आँखों में ही रह गयी उनके बारे में ज़िक्र अवश्य करना चाहूंगी। प्रेम जन्मजेय जी की व्यंग्य रचना-

‘हुए लेखक बन के हम जो रुसवा’ बहुत हद तक सामयिक है और हिंदी लेखन को पढ़ा न जाना चिंतनीय भी। व्यंग्य सोचने पर मजबूर करता है।इसी सन्दर्भ मैं कवी नीरज की चिरपरिचित पंक्तिया याद आती है। ….’आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य ,मानव होना भाग्य है ,कवी होना सौभाग्य’

उम्मीद हैं हम लेखक/कवी अपने सौभाग्य का मान रखते हुए निरंतर प्रयासरत रहेंगे।क्यूंकि अच्छे केखन से एक पाठक स्वयं को अधिक समय तक दूर नहीं रख सकता, चाहे फिर वह किसी भी भाषा में क्यूँ न हो।

नीरज त्रिपाठी जी की व्यंग्य रचना – ‘पति या कुत्ता’ अधरों पर स्मित मुस्कान निष्प्रयास ही ले आती है।

स्वर्ण ज्योति जी की रचना-’जानेक्यों ‘ अपने शीर्षक की ही भांति जाने क्यों अपनी छाप छोड़ जाती है।

सरस दरबारी जी की मनभावन रचना हर उस व्यक्ति को समर्पित लगती है जो कहते है की मुझे फ़र्क नहीं पड़ता, पर उन्हें फ़र्क पड़ता है। रिश्ते के भावों को खूबसूरती से सजाते उनके शब्द प्रसंशनीय है। स्वाति देव सिंह की कूची के रंग बिना एक शब्द भी कहे जीवन को परिभाषित करने में सक्षम है।

सभी का साधुवाद और मुख्यतः एम्स्टेल गंगा टीम का धन्यवाद् जिनके द्वारा चयनित सामग्री हम पाठकों को संतुष्ट करती है। अग्रिम भविष्य हेतु हार्दिक शुभकामनाएं।

पूजा भाटिया ‘प्रीत

इंदौर (म.प्र.)

*******************************************************************************************

भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

नव वर्ष की नूतन किरण नव शक्तियां बरसाएंगी,
नूतन पवन सद्भावनामय शान्ति गीत सुनाएंगी,
नव कार्य के सत्कार में संलग्न हों जब आप,
नव वर्ष की शुभकामनाएं हैं सदा ही साथ

रवीन्द्र अग्निहोत्री संतोष अग्निहोत्री
*******************************************************************************************

आदरणीय महोदय / महोदया,

नमस्कार,

आपकी पत्रिका अम्स्टेल गंगा देखी, अच्छी लगी ! ये प्रयास बहुत ही बढ़िया है !

मैं भी अपनी रचना भेजना चाहती हूँ ! कैसे भेज सकती हूँ… कृपया बताने का कष्ट करें !

धन्यवाद!

सादर
अनिता !

*******************************************************************************************

”एम्स्टेल गंगा” को मेरी बधायी और शुभ कामनाएं।
मैं अपनी कुछ कवितायेँ आप के लिए मेल कर रहा हूँ। उपयुक्त पायें तो अपने यहाँ प्रकशित कर सकते हैं।
धन्यवाद

जगता नन्द
*******************************************************************************************

“एम्स्टेल गंगा” का जनवरी-मार्च 2013 अंक भी अपने पूर्व अंक की तरह ही गरिमापूर्ण साहित्यिक रचनाशीलता से भरपूर है। हरकीरत ‘हीर’ की क्षणिकाएँ, डॉ॰ रवीन्द्र अग्निहोत्री का लेख ‘अपराधी कौन-मैकाले या हम’, गिरीश पंकज का व्यंग्य ‘इक्कीसवीं सदी का अंतिम दौर’, सभी कहानियों, कला दीर्घा के चित्रों ने विशेष प्रभावित किया। आपको लघुकथाओं के चुनाव में सावधानी बरतने की विशेष आवश्यकता है। इस अंक में ‘लघुकथा’ शीर्षतले छपी एक भी रचना नामधारी कथाकारों द्वारा लिखित होने पर भी वस्तुत: लघुकथा नहीं है। भोजपुरी की दोनों कविताएं ‘अबकी आवे अइसन नयका साल’ व ‘अंगरेज बिलार’ रोचक हैं। पत्रिका के सफल संपादन के लिए मेरी ओर से शुभकामनाएँ।
और अन्त में एक निवेदन: पत्रिका को पुस्तक रूप में खुलने जैसा डिजाइन करा सकें तो पेज-दर-पेज पढ़ने में आसानी हो जायेगी और इसकी सुन्दरता में भी वृद्धि होगी।
बलराम अग्रवाल

*******************************************************************************************

-’अगरॆज‌ बिलार’,
तिलमिला देने वाला कटाक्ष है ये . और ये कल्पना भी गजब की है कि अंग्रेजी बिल्ली भी अपनी भाषा बोले . एक गुदगुदाने वाली कविता के लिए अमित जी को बधाई .
– सुमन सारस्वत
मुंबई , भारत .

 

आपके इसी अंक में श्री विवेक मिश्र की कहानी ‘खरोंच’ पढने को मिली.इस कहानी की बहुत चर्चा सुनी थी और मुझे ख़ुशी है कि ये कहानी बिलकुल वैसी ही निकली. न्याय-व्यवस्था के पाखंड पर एक करार प्रहार है ये कहानी. स्त्री को भोग्या मानने की प्रवृत्ति जब तक ख़त्म नहीं हो जाती स्त्रियों को न्याय मिलना मुश्किल है. चाहे वह स्त्री स्वयं ही उस व्यवस्था का हिस्सा क्यों न हो . जैसा कि इस कहानी की मुख्य पात्र स्वयं पुलिस में है. व्यवस्था में तो पुरुषों का ही वर्चस्व है. और ये पुरुष किसी भी नौकरी में क्यों न हों पुरुषवादी मानसिकता के चलते ये निरपेक्ष होकर सोच नहीं पाते. और यही सोच न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करती है. एक पुरुष लेखक की कलम से निकली ये कहानी स्त्री विमर्श पर पुनर्विचार के लिए बाध्य करती है.
विवेक मिश्र की ‘खरोंच’ एक गहरी लकीर है , जो सबके दिलोदिमाग पर असर करती है
एक सार्थक कहानी के लिए लेखक और संपादक बधाई के पत्र हैं.
- सुमन सारस्वत
*******************************************************************************************
‘जीवन के रंग’, अति सुन्दर
अनिल सिंह देव ,
देव मार्बल्स , बनारस , भारत

*******************************************************************************************

प्रिय संपादक महोदय,
इतनी सुन्दर पत्रिका प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई और अनंत मंगल कामनाएं. आपसे अनुरोध है कृपया मेरा ब्लॉग देखे.. आपके सुझावों और विचारों का स्वागत है. यदि पसंद आए तो मेरे ब्लॉग से “पीले गुलाबों के साथ एक रात’ या “सच’ कहानी पत्रिका में प्रकाशित करने की कृपा करें. इन कहानियों के अतिरिक्त आपको ब्लॉग की जो भी कहानी पसंद आए प्रकाशित करने को स्वतंत्र हैं. उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी.
धन्यवाद
पुष्पा सक्सेना

*******************************************************************************************

शशि जी | बहुत प्यारी भाव पूर्ण कविता है ‘ बीत गया एक और बरस’ | आप बधाई की पात्र हैं |

सविता अग्रवाल, कनाडा

*******************************************************************************************

Just came to know about this website. you hard efforts are appreciated.

Good wishes
Regards
seema gupta

*******************************************************************************************

‘ फ़र्क पड़ना’ , अपने मिजाज ,रंग -ढंग में बिलकुल अनोखी ,अद्भुत और मन को झकझोरने वाली कविता |सरस जी बधाई
जयकृष्ण राय तुषार

*******************************************************************************************

‘हर की पौड़ी से’ ,
भारतीय संस्कारों और कर्मकांडों को समझने का प्रयास करती , डाक्टर संजय अलंग की ये कवितायेँ अभी अपने काव्य संस्कार को भी ढूढती हुयी सी लगती हैं। ये कवितायेँ एक अर्थ में वैसी कच्ची कविताओं से अलग हैं जिन्हें अभी दुनिया देखना बाकी है लेकिन वो ब्रह्माण्ड को संबोधित करने पे उतारू हो जाती हैं।

सतीश जायसवाल।

*******************************************************************************************


हालैंड से प्रकाशित हिन्दी की नई पत्रिका ” अम्स्टेल गंगा ” का स्वागत है ।
सम्पादक मंडल का हार्दिक अभिनन्दन । पत्रिका दिनानुदिन सुकीर्ति को प्राप्त करे – यही कामना है ।
शुभकामनाओं सहित,
शकुन्तला बहादुर
कैलिफ़ोर्निया, यू. एस.ए.

*******************************************************************************************

सम्मानीय महोदयजी-आज मैंने पत्रिका को देखा और अपनी प्रकाशित रचना को पढा. निश्चित यह पत्रिका दो देशों के बीच एक पुल का काम करेगी.इस पर अन्य पाठकों की प्रतिक्रिया का उल्लेख देखने को नहीं मिला.
नूतन वर्ष पर हार्दिक बधाइयां-शुभकामनाएं.
आशा है,सानन्द -स्वस्थ हैं.

गोवर्धन यादव

*******************************************************************************************

अम्स्टेल गंगा का दूसरा अंक अपनी विविधता के साथ विशेषता लिए हुए था । विश्व प्रसिद्ध साहित्यकारों की रचना इस अंक में पढने को मिली । अमित जी आपको और आपकी पूरी टीम को इस सफलता के लिए बहुत बहुत बधाई ।
अरुण कुमार ,
डायरेक्टर आरुसिस बी . भी .
बेल्जियम , नीदरलैंड्स

*******************************************************************************************

अम्स्टेल गंगा पत्रिका पढ़ कर दिल को बहुत सकून हुआ । परदेश में भी देश की मिट्टी की सुगंध समेंटे हुए इस पत्रिका ने मन को छू लिया । इस तरह के उच्च कोटि के साहित्य के प्रकाशन के लिए अम्स्टेल गंगा टीम को हार्दिक बधाई ।
ज्योति विकास ,
नीदरलैंड्स

*******************************************************************************************

Leave a Reply