संत कवि कबीर ने 15वीं शताब्दी में जिन साखियों और दोहों से जग को व्यावहारिक शिक्षा दी उनमें से एक फॉर्मूला-नुमा विशेष दोहा मुझे बेहद आकर्षित करता है -
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय।
इस सिद्धांत के अनुसार पांडित्य प्राप्ति के लिए न तो विषय की कोई शर्त है, न कोई भौगोलिक सीमा। इसके लिए चाहिए केवल ढाई आखर पढ़ने का एक अदद सामान और लगन। इच्छुक व्यक्ति किसी भी क्षेत्र से हो, कबीरजी के उक्त फॉर्मूले से वह पंडिताई हासिल कर सकता है। अगर आपने पाठन के लिए ज़रूरी वस्तु जुटा ली, तो समझिए आपके पंडित बनने में ज़्यादा देर नहीं है। ज़ाहिर है, जहाँ जहाँ और जिस जिस क्षेत्र में ढाई आखर पढ़ने का सामान आसानी से उपलब्ध है, वहाँ वहाँ पंडित अच्छी तादाद में मिल जाते हैं। उदाहरण के लिए, उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार राजनीति के बाद सबसे अधिक पंडित संगीत के क्षेत्र में पाए जाते हैं। इसका स्थिति का विशेष लाभ लेते हुए ढाई आखर पढ़ने के लिए संगीत में सैकड़ों की संख्या में लोग उतर आये हैं। युवा संगीतज्ञों के पदार्पण से पठन पाठन की गति और प्रगति में थोड़ा और सुधार हुआ है।
वैसे तो अब तक लगभग सभी उम्र के संगीतकारों ने ढाई आखर अच्छी तरह से पढ़ लिए हैं जैसा कि उनके प्रत्येक के आगे लिखे ‘पंडित’ शब्द से ज़ाहिर है, अगर फिर भी कोई शेष हैं तो वे इस दिशा में जोशोख़रोश के साथ प्रयत्नरत हैं। अब जब कि संगीत की चर्चा हो रही है, जिस महान् व्यक्ति ने भारतीय संगीत को विदेशों में काफ़ी अरसे पहले से प्रसिद्धि दिलाई उनका ज़िक्र न करना अशोभनीय होगा। ये काफ़ी पहले ही पंडित बन चुके थे और देश विदेश में ढाई आखर के पढ़ने का सबसे अधिक तजुर्बा प्राप्त कर चुके थे। उन्होंने कई देशों में पांडित्य लाभ कमाया और भारतीय संगीत और एक वाद्ययंत्र विशेष को प्रचारित प्रसारित किया। ढाई आखर पढ़ने के इस क्रम के परिणामस्वरूप न्यूयार्क में उनको अमुक नामक एक पुत्री की प्राप्ति भी हुई जो स्वयं संगीतज्ञ है और अपनी अमरीकी माता के साथ वहीँ रहती है। सैंकड़ों की तादाद में उनके शिष्यगण देश विदेश में फैले हुए हैं जो बदस्तूर उनकी संगीत और ढाई आखर पढ़ने की गुरु-शिष्य परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
श्री कबीर के निष्कर्ष के अध्ययन से विभिन्न क्षेत्रों से जो कई उदाहरण सामने आए हैं उनसे सिद्ध होता है कि ‘पंडित’ शब्द पूर्णतः निर्लिंग है। यानी न यह पुल्लिंग हैं न स्त्रीलिंग। यहाँ इसका अर्थ पाठक लोग गलत न लगाएं। कहने का तात्पर्य यह है कि पंडित पुरुष भी हो सकता है और स्त्री भी। दूसरी स्थिति में आप चाहें तो उसे पंडिताइन या विदुषी या ऐसा ही कुछ भी कह सकते हैं। यह इसलिए भी सिद्ध है कि ढाई आखर तो मिलजुल कर ही पढ़े जाते हैं। बल्कि कई बार तो अवसरप्राप्ति या आवश्यकतानुसार ढाई आखर पढ़ने की पहल स्त्री ही करती है और आगे चल कर पंडिताइन या विदुषी हो जाती है। पाठकों की सुविधा के लिए मैं विदुषी शब्द का प्रयोग ही करूँगा।
अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति कैनेडी के साथ ढाई आखर पढ़ते हुए मर्लिन मोनरो सौंदर्य और प्रेम की विदुषी बन गयी थीं और कैनेडी राजनीति और प्रशासन के। उसी तरह क्रिस्टीन कीलर नामक एक अन्य सुंदरी साठ के दशक में अमरीका, रूस के गुप्तचरों के अलावा इंग्लैंड के तत्कालीन युद्ध मंत्री जॉन प्रोफ्यूमो और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खां के साथ तरणताल में स्नान करते हुए ढाई आखर पढ़ा करती थी। कीलर स्वयं तो गुप्तचरी की विदुषी बन गई, किन्तु उसे लेकर रूस और अमरीका में युद्ध तक की नौबत आगई थी। कई लोग तो इसे कैनेडी की हत्या के साथ भी जोड़ कर देखते हैं। इसी प्रकार, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान माताहारी नामक एक सुंदरी नृत्यांगना के ढाई आखर सम्बन्धी ताल्लुकात कई राजनेताओं, सेनाध्यक्षों आदि से रहे थे। माताहारी ने उनके साथ ढाई आखर क्या पढ़े, सभी उसके दीवाने होगये। तदनंतर वह जासूसी की विदुषी के रूप में एक साथ फ़्रांस व जर्मनी के लिए गुप्तचरी करने लगी। पकड़े जाने पर बाद में उस पर पचास हज़ार सैनिकों की मृत्यु के लिए मुक़दमा चला और 1917 में उसे गोली मारने की सज़ा सुनाई गयी। ख़ैर।
आप जानते ही हैं, अपने यहाँ साहित्य के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध पंजाबी कवयित्री ने विदुषी के रूप में बड़ी ख्याति अर्जित की। किन्तु उससे पहले उन्होंने एक फ़िल्मी गीतकार और कवि के साथ ढाई आखर पढ़े, फिर आगे चल कर ताउम्र एक चित्रकार के साथ ढाई आखर पढ़ती रहीं। पंजाबी कविता साहित्य को इस विदुषी का योगदान निस्संदेह बहुमूल्य है। उनके इस दीर्घकालीन अध्ययन पर बहुत कुछ लिखा जाचुका है। एक पुस्तक ‘…. : ए लव स्टोरी ऑफ़ ए पोएट एण्ड ए पेंटर’ भी इस पर लिखी गयी। इसी तरह दक्षिण भारत की एक अन्य प्रसिद्ध लेखिका ने भी विदुषी बन कर काफ़ी नाम कमाया।
आपकी यह जिज्ञासा पूर्णतः जायज़ है कि क्या कभी मैंने भी पंडित बनने का प्रयत्न नहीं किया? किया था। पंडित बनने के लिए कबीरजी के उस दोहे की पहली पंक्ति में दी गयी गारंटी के मद्देनज़र कॉलेज में आने के बाद कुछ समय के लिए पोथियों से परहेज़ कर लिया था, यहाँ तक कि बीच बीच में कक्षाओं का बहिष्कार करना भी प्रारंभ कर दिया था और ढाई आखर पढ़ने के लिए आवश्यक वस्तुओं की तलाश शुरू कर दी थी। पर जब ये तथ्य मेरे पूज्य पिताजी को हस्तगत हुए, उन्होंने पहले मुझे हस्तगत किया और फिर अपने कराम्बुज और चरणकमलों के माध्यम से मुझ पर निस्संकोच आशीर्वाद बरसाया। इस सब के प्रतीक स्वरूप कई दिनों तक मेरे कपोलों पर व शरीर के अन्य भागों पर सुशोभित ललाई व नीलिमा परिलक्षित होते रहे।
अब यह तो सुनिश्चित हो गया था कि कॉलेज में रहते तो पंडित नहीं बना जा सकता। फिर भी एक आशा की किरण आगामी समय के लिए दिखाई दे रही थी। विवाह के बाद ही तो कालिदास और तुलसीदास क्रमशः अपनी अपनी व्यक्तिगत पत्नियों के भाषणों और सीखों के कारण पंडित बने थे। इसलिए उम्मीद थी कि विवाहोपरांत मेरे साथ भी वह सब घटित होगा जो इन महान् पंडितों के साथ हुआ था। इसी आशा में कालांतर में मैंने भी विवाह कर लिया, किन्तु मेरा परम दुर्भाग्य कि स्वयं सुदर्शना और सुलक्षणा होते हुए भी मेरे दुर्गुणों और कुलक्षणों को नज़रअंदाज़ करके मेरी पत्नी सतत् सुभाषिणी ही बनी रही। इस तरह मेरे पंडित बनने के अंतिम अवसर को भी मुझसे निर्ममता के साथ छीन लिया गया। मुझे निरंतर यह दुःख सताता आ रहा है कि अंततः मैं पंडित नहीं बन सका।
तो अब यह सिद्ध हो ही गया कि पोथी पढ़ने से कोई पंडित नहीं होता, ढाई आखर तो पढ़ने ही पड़ते हैं। हाँ, ये बात अवश्य है कोई ढाई आखर पढ़ने के दौरान ही पांडित्य की तरफ़ बढ़ने लगता है, कोई ढाई आखर पढ़ने के बाद। या फिर कोई ढाई आखर पढ़ने के बाद या पढ़ने के प्रयत्न में घर से निकाल दिया जाता है और अन्यत्र जाकर पंडित बनता है। इस अंतिम सन्दर्भ में महाकवि कालिदास और महाकवि तुलसीदास के उदाहरण दिए जाचुके हैं।
श्री कबीरजी इन दिनों हमारे बीच नहीं हैं, अन्यथा मेरी कुछ लघु शंकाएं हैं जिनके बारे मैं उनकी राय अवश्य लेता। जैसे – कुछ लोग उपलब्ध समयानुसार ऊपरी तौर पर बीच बीच में ढाई आखर पढ़ लेते हैं, कुछ संभावनाओं की तलाश में रहते हैं और अवसर मिलने पर ढाई आखर पढ़ निकलते हैं, कुछ मन लगा कर पढ़ते हैं और कुछ लोग तो अधिकांश समय ढाई आखर पढ़ने में ही व्यस्त रहते हैं। इन स्थितियों में अर्जित पांडित्य का क्या क्या स्तर होना चाहिए या इसकी क्या ग्रेडिंग की जासकती है? क्या ‘भारतीय मानक संस्था’ इसका कोई मानक स्वरूप निर्धारित कर सकती है? कबीरजी ने इस बाबत कोई खुलासा नहीं किया है। कबीरजी से इन मुद्दों पर स्पष्टीकरण के अभाव में मैंने राजनीति की कुछ प्रसिद्ध केस स्टडीज़ भी शोधपत्र में सम्मिलित नहीं कीं, जैसे अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन द्वारा व्हाइट हाउस में कार्य के समय ही सरसरे तौर पर एक इंटर्न मोनिका लेविन्स्की के साथ ढाई आखर पढ़ने की, जिसके कारण उन पर महाभियोग भी लगा था।
जब से मैंने कबीरजी के उस दोहे को ध्यान से पढ़ा और गुना है, मुझे हर पंडित पर संदेह होने लग गया है। इन दिनों मैं उन सभी प्रसिद्ध व्यक्तियों की जीवनियों पर शोध कर रहा हूँ जिनके नाम के आगे पंडित शब्द लगा हुआ है। इस शोध से यह जिज्ञासा शांत हो जाएगी कि अमुक पंडित प्रेम पंडित है या पोथी पंडित। यानी वह असली पंडित है या नकली।
- कमलानाथ
कमलानाथ (जन्म 1946) की कहानियां और व्यंग्य ‘60 के दशक से भारत की विभिन्न पत्रिकाओं में छपते रहे हैं। वेदों, उपनिषदों आदि में जल, पर्यावरण, परिस्थिति विज्ञान सम्बन्धी उनके लेख हिंदी और अंग्रेज़ी में विश्वकोशों, पत्रिकाओं, व अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में छपे और चर्चित हुए हैं। हाल ही (2015) में उनका नया व्यंग्य संग्रह ‘साहित्य का ध्वनि तत्त्व उर्फ़ साहित्यिक बिग बैंग’ अयन प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुआ है तथा एक कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है।
कमलानाथ इंजीनियर हैं तथा अंतर्राष्ट्रीय सिंचाई एवं जलनिकास आयोग (आई.सी.आई.डी.) के सचिव, भारत सरकार के उद्यम एन.एच.पी.सी. लिमिटेड में जलविज्ञान विभागाध्यक्ष, और नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ टैक्नोलोजी, जयपुर में सिविल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफ़ेसर पदों पर रह चुके हैं। जलविद्युत अभियांत्रिकी पर उनकी पुस्तक देश विदेश में बहुचर्चित है तथा उनके अनेक तकनीकी लेख आदि विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं व सम्मेलनों में प्रकाशित/प्रस्तुत होते रहे हैं। वे 1976-77 में कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय (अमरीका) में जल-प्रबंधन में फ़ोर्ड फ़ाउन्डेशन फ़ैलो रह चुके हैं। विश्व खाद्य सुरक्षा और जलविज्ञान में उनके योगदान के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी मिल चुके हैं।
वर्तमान में कमलानाथ जलविज्ञान व जलविद्युत अभियांत्रिकी में सलाहकार एवं ‘एक्वाविज़्डम’ नामक संस्था के चेयरमैन हैं।