कंधे पर बोरियां ढोता
बीड़ी के कश से धुआं उड़ाता
पसीने से तरबतर
वह आदमी
अपने सपनों के खो जाने से
निराश नहीं है
टूटी खटिया पर लेटी
खांसती हुई बूढ़ी माँ की
दवा की खाली बोतल
अपनी सयानी हो रही मुनिया को
जिसकी आंखों में पलने लगे हैं
भविष्य के सुहाने सपने
बदलने की जिद करते
थक कर सो गया प्यारा मुन्ना और
करवट बदलते हालात
अनाज के ढेरों पर बोली लगते दलाल
नोट गिनता मुनीम
और हँसते – खिलखिलाते जमींदार
उसके उदास क्षणों को नहीं देख पाते
नहीं पहचान पाते
उज़की सिसकती आत्मा को
वह फिर बीड़ी के कश में भुला देता है
जिजीविषा उसे
ज्यादा बोरियां ढोने को
मजबूर करती है
ख्वाबों के झोंके खो जाते हैं
भूख और रोटी की जंग में
जिंदगी से
न कोसता है कभी विधि के विधान को
अपने दोनों हाथों को देखता है
फिर पूरे जोश से ढोता है
एक नई बोरी
कुछ नए सपनों के साथ।
- राजकुमार जैन ’राजन’
जन्म तिथि : २४ जून
जन्म स्थान : आकोला, राजस्थान
शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी)
लेखन विधाएं : कहानी, कविता, पर्यटन, लोक जीवन एवं बाल साहित्य
प्रकाशन : लगभग तीन दर्जन पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिकाओं में हजारों रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : आकाशवाणी व दूरदर्शन
संपादन : कर्इ पत्र-पत्रिकाओं का संपादन
पुरस्कार व सम्मान : राष्ट्रीयप्रादेशिक स्तर पर ६० सम्मान
संस्थापक : ‘सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य पुरस्कार,
‘डॉ राष्ट्रबंधु स्मृति बाल साहित्य सम्मान एवं कर्इ साहित्यिक सम्मानों के प्रवर्तक,
विशेष : बाल साहित्य उन्नयन व बाल कल्याण के लिए विशेष योजनाओं का कि्रयान्वयन
संपर्क : चित्रा प्रकाशन, आकोला , चित्तौडगढ़ (राजस्थान)