दोहे – गोविन्द सेन

अपने-अपने राज की, हर राजा को फिक्र
इसीलिए तो कर रहे, दीन-हीन का जिक्र

 

बड़े पेड़ रखने लगे, यहाँ फलों की चाह
नदी-ताल करते नहीं, प्यासों की परवाह

 

दो रोटी की आस में, मेहनतकश इन्सान
तेज धूप में झुलसते, मुख पर रख मुस्कान

 

झरे सूख कर पत्तियाँ, मुरझाते हैं फूल
सभी बिछड़ते एक दिन, कभी न बिछड़े शूल

 

कचरा हो कर रह गए, कल आते थे काम
जब तक थे हम काम के, सब जपते थे नाम

 

करते रहते रात भर, उन पाँवों को याद
भूले रहते जो हमें, सो जाने के बाद

 

बैठे हैं थक हार कर, चले न अपना जोर
कोई तो वाहन मिले, नजर सड़क की ओर

 

ठगा गया तो दुख हुआ, लगी करारी चोट
मैं पढ़ पाया ही नहीं, उसके मन की खोट

 

सुविधा का साफा पहन, किये सुरक्षित कान
स्वाभिमान गिरवी रखा, ले आये अभिमान

 

चम-चम करती रोशनी, नीली-पीली-लाल

अँधियारे में झोपड़ी, जैसे एक सवाल

 

- गोविन्द सेन 

जन्म: १५ अगस्त
जन्म स्थान: राजपुरा [अमझेरा] धार [म.प्र.]

शिक्षा: एम.ए.(हिंदी, अंग्रेजी) बी.टी.

कृतियाँ: १. चुप्पियाँ चुभती हैं(गजल संग्रह) १९८८
२. अकड़ूभुट्टा (निमाड़ी हाइकु संग्रह) २०००
३. नकटी नाक (निमाड़ी हाइकु संग्रह) २०१०
४. नवसाक्षरों के लिए ५ पुस्तिकाएँ
५. बिना पते का प्रशंसा पत्र (व्यंग्य संग्रह) २०१२
६. खोलो मन के द्वार (दोहा संग्रह) २०१४
पुरस्कार-‘स्वदेश’ कहानी प्रतियोगिता-१९९२ में कहानी ‘बरकत’ को प्रथम
पुरस्कार

सम्मान: 
१. पं. देवीदत्त शुक्ल स्मृति सम्मान-२००३
२.आंचलिक साहित्यकार सम्मान-२००५ -०६
३.झलक निगम साहित्य सम्मान-२०१२
४. .हमजमीं सम्मान-२०१२
५. साक्षरता मित्र सम्मान-२०१३
६. शब्द प्रवाह सम्मान-२०१३
७. गणगौर सम्मान-२०१४

प्रकाशन: देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ एवं रेखांकन प्रकाशित

प्रसारण: आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से रचनाएँ प्रसारित

सम्प्रति: अध्यापन
पता: मनावर, जिला-धार(म.प्र.)

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