आज पीने को दिल करता है
मद में डूब जाने को दिल करता है
भूलना चाहता हूँ सारे ग़म
आज हँसने को दिल करता है
पिला दे इतनी तू मुझको ओ साक़ी
खो जाऊँ मैं याद रहे कुछ भी न ताकि
खोकर पा जाऊँगा अपनी जिंदगानी
जाने कितनी साँसे उसकी हैं बाकी
इस मद के साए में बस जाने को दिल करता है
यहीं पे अपनी दुनिया बसाने को दिल करता है
जहाँ कोई किसी को नाम से ना जाने
एक दुसरे को बस दोस्त बुलाने को दिल करता है
ज़िन्दगी बिताई जल्दी में खाए निवाले की तरह
जीते रहे हम एक हारे दिलवाले की तरह
अब स्वाद लेना चाहता हूँ
एक छलकते हुए प्याले की तरह
आज वक़्त की दौड़ से निकल जाने को दिल करता है
सुकून से बैठ कहीं ख़ुदा की रहमत आज़माने को दिल करता है
देखा मैंने हंसों के एक जोड़े को
उनकी तरह दिल लगाने को दिल करता है
ख़ुदा ने तो बस एक जहाँ बनाया था
प्यार के फूलों से उसे सजाया था
खींच दी लकीर हमने नफ़रत की स्याही से
ख़ुदाई पर ये दाग़ हमने ही लगाया था
आज इस दाग़ को धोने को दिल करता है
मरती इंसानियत पर रोने को दिल करता है
पता है आंसुओं से कुछ भी मिटने वाला नहीं
प्यार की बारिश से सबको भिंगोने को दिल करता है
कितनी ही नेमतें पायी ख़ुदा की इस जहान ने
दिया हमें जीने का सबब उस अज़ीम-ओ-शान रेहान ने
सोचा हम चलेंगे नेकी की राह
पर क्या किया उस बे ग़ैरत इंसान ने
आज उस सबब को मुक़म्मल करने को दिल करता है
उसके मक़सद पर ख़ुद को निसार करने को दिल करता है
दे सकूँ अपनी ज़िन्दगी के कुछ पल
जन्नत यहाँ बसाने को दिल करता है
इसीलिए आज मैंने माँगी है इजाज़त जाम को पीने की
दो घड़ी चाहता हूँ सुकून से जीने की
वह तभी मिलेंगी जब मैं होशो-हवास में न रहूँ
तभी मिलेगा चैन धड़कन को सीने की
आज मयख़ाने की चौखट पर सजदा करने को दिल करता है
जिस जगह लोग भूल जाते हैं नफ़रत वहाँ जाने को दिल करता है
थक चूका हूँ मैं अपने ही लोगों से
आज सारा जहाँ अपना ही बनाने को दिल करता है
भूलना चाहता हूँ सारे ग़म
आज खिलखिलाने को दिल करता है
-विक्रम प्रताप सिंह
वर्तमान : सहायक प्रोफेसर, सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई
पेशेवर प्रशिक्षण से ये एक भूविज्ञानी हैं |