” लगता है आज हमारी जान का मूड कुछ ठीक नहीं है !”
” मूड क्या यार , घर ग्रहस्ती के चक्कर में जिंदगी खप् रही है , मैं तो बोर हो गयी .”
” कोई नई बात हुई है क्या ……? ”
” नई तो नहीं है पर ! वही सुबह उठो , पति महोदय के लिए नाश्ता बनाओ , पैक करो . उन्हें आफिस भेजने के बाद बच्चों को तैयार करो . उन्हें स्कूल के लिए चलता करो ……सबके विदा होने के बाद बिखरी हुई हर चीज अपनी – अपनी जगह पर रक्खो ….फिर सारे दिन के बंधे – बंधाये काम ….शाम होते ही फिर वही सबकुछ और उसके बाद वही घिसी हुई रात ….कुछ भी तो नया नहीं …..ये भी कोई जिंदगी है क्या ! ”
” ठीक है कुछ नया करते हैं जिससे बोरियत दूर हो .”
” नया क्या कर लोगे ?”
” कल दोपहर को फिल्म चलते हैं .”
” शाम को उनसे क्या कहूँगी ?”
” कुछ भी कह देना या फिर हमेशा की तरह का परमानेंट बहाना कि शॉपिंग करने मार्किट गयीं थी .”
“कौन सी फिल्म दिखाओगे ?”
” तुम्हारे साथ तो रोमांटिक ही चलेगी .”
” हमेशा गुड़िया कि तरह ट्रीट करते हो , चाहते हो हमेशा वही करूँ जो तुम चाहो .”
” मैं भी तो तुम्हारा कहा ही करता हूँ .”
” तो एहसान करते हो क्या ? तुम्हारी मजबूरी है कि मेरा कहा मानो ”
” क्या मतलब ?”
” मतलब ये मजनूं मियां कि तुम्हारे पास कोई विकल्प ही नहीं है .”
” तुम्हारे पास तो जैसे लाइन लगी है कि एक के हटते ही अगला तैयार ?”
” तुम पीछे हट जाओ , तुम्हे खुद ही पता चल जाएगा ?”
” …………………………………………….!”
” चुप क्यों हो गए ? कुछ नहीं है न कहने को …साहब की बोलती बंद क्यों .हो गयी .”
“………………………………………………..!”
” अरे हिम्मत है तो कुछ भी बोलो .”
“………………………………………!”
उसकी जबान को लकवे ने निष्क्रिय कर दिया और उसकी चेतना से संवेदना गायब हो गयी . वह रिश्तों की इन अवैद्य सच्चाइयों का सामना करने के लिए तैयार नहीं था . उसकी इच्छा हुई कि वह संबंधों की इस कालिख से स्वयं को मुक्त कर ले . जिस उद्गार को वह अनंत ऊर्जा का स्रोत मान प्रेम के रूप में अपने अंतर मन में प्रतिष्ठित किये बैठा था , वह उसके सामने स्वयं द्वारा सृजित की हुई विष धारा में घिरकर प्रलय की घोषणा कर रही थी .
वह यंत्र – वत उठा .उसके सिले हुए होंठ बड़बड़ाये , ” तुम अपने दम्भ के दलदल में स्वयं ही दफन हो जाओगी , मेरे लिए तुम्हारा और अधिक साथ देना किसी छिद्रित नाव को खेना है , जिसका डूबना तय है .
- सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
जन्म - स्थान : जगाधरी ( यमुना नगर – हरियाणा )
शिक्षा : स्नातकोत्तर ( प्राणी – विज्ञान ) कानपुर , बी . एड . ( हिसार – हरियाणा )
लेखन विधा : लघुकथा , कहानी , बाल – कथा , कविता , बाल – कविता , पत्र – लेखन , डायरी – लेखन , सामयिक विषय आदि .
प्रथम प्रकाशित रचना : कहानी : ” लाखों रूपये ” – क्राईस चर्च कालेज , पत्रिका – कानपुर ( वर्ष – 1971 )
अन्य प्रकाशन : 1 . देश की बहुत सी साहित्यिक पत्रिकाओं मे सभी विधाओं में निरन्तर प्रकाशन ( पत्रिका कोई भी हो – वह महत्व पूर्ण होती है , छोटी – बड़ी का कोई प्रश्न नहीं है। )
2 . आज़ादी ( लघुकथा – संगृह ) ,
3. विष – कन्या ( लघुकथा – संगृह ) ,
4. ” तीसरा पैग “ ( लघुकथा – संगृह ) ,
5 . बन्धन – मुक्त तथा अन्य कहानियां ( कहानी – संगृह )
6 . मेरे देश कि बात ( कविता – संगृह ) .
7 . ” बर्थ - डे , नन्हें चाचा का ( बाल - कथा – संगृह ) ,
सम्पादन : 1 . तैरते – पत्थर डूबते कागज़ “ एवम
2. ” दरकते किनारे ” ,( दोनों लघुकथा – संगृह )
3 . बिटीया तथा अन्य कहानियां ( कहानी – संगृह )
पुरूस्कार : 1 . हिंदी – अकादमी ( दिल्ली ) , दैनिक हिंदुस्तान ( दिल्ली ) से पुरुस्कृत
2 . भगवती – प्रसाद न्यास , गाज़ियाबाद से कहानी बिटिया पुरुस्कृत
3 . ” अनुराग सेवा संस्थान ” लाल – सोट ( दौसा – राजस्थान ) द्वारा लघुकथा – संगृह ”विष – कन्या“ को वर्ष – 2009 में स्वर्गीय गोपाल प्रसाद पाखंला स्मृति - साहित्य सम्मान
आजीविका : शिक्षा निदेशालय , दिल्ली के अंतर्गत 3 2 वर्ष तक जीव – विज्ञानं के प्रवक्ता पद पर कार्य करने के पश्चात नवम्बर 2013 में अवकाश – प्राप्ति : (अब या तब लेखन से सन्तोष )
सम्पर्क : साहिबाबाद, उत्तरप्रदेश- 201005