मानव की आदत बन गयी थी कि सुलभा से मुलाक़ात के बाद जब उससे अलग होता तो उसे थैंकयू जरूर बोलता . सुलभा मुस्कराहट के साथ उसके होठों पर एक ऊँगली टिका देती ,मानव पर अपनत्व से भरपूर दृष्टि पात करती और फिर वे एक – दूसरे से विदा ले लेते . इस बार भी जब मानव ने थैंकयू कहा तो सुलभा न तो मुस्कराई और न ही मानव के होठों पर अपनी ऊँगली टिकाई . आज सुलभा के चेहरे की लकीरों में मुस्कुराहट भरी चंचल लहरों के स्थान पर गंभीरता का ठहराव पसरा हुआ था .
सुलभा की ओढ़ी हुई गंभीरता ने मानव को सकते में डाल दिया . उसने सुलभा के हाथों को अपने हाथों में समेटते हुए कहा , ” सुलभी सब ठीक तो है न ! आज तुमने बॉय नहीं कहा ? ”
सुलभा कुछ क्षण तक बिना पलक झपकाये मानव की ओर देखती रही और फिर उसके सीने पर अपना सिर टिका कर बोली , ” मानव तुम मेरे लिए सिर्फ नाम के मानव नहीं हो .जब भी तुमसे मिलती हूँ , तुमसे बातें करती हूँ तो मुझे लगता है कि मैं एक ऐसे शक्श के आत्मीय सम्पर्क में हूँ जो इंसानियत के सभी गुणों से भरपूर एक सच्चा मानव है . तुम्हारे साथ बिताया हर क्षण मेरे रोम – रोम में आन्दमयी ख़ुशी के – साथ सुरक्षा का भावनात्मक कवच उढ़ाता है .तुम्हें अपने पास पाकर मुझे लगता है कि मैं जीवन की हर चिंता से मुक्त हूँ , तुम्हे देखकर , तुम्हारे साथ बातें करके ,तुम्हारे साथ आनंददायी समय साझा करके , जीवन के प्रति मेरा लगाव पुख्ता होता है इसलिए तुम्हारे द्वारा कहे गए थैंकयू पर , मुझसे अधिक अधिकार ,तुम्हारा है . ”
” पर सुलभी अपने समर्पण से जो ………….!”
” बस अब और कुछ नही . चलती हूँ और इस बार थैंकयू मैं कहूँगी , तुम्हे कहना है तो तुम भी कह सकते हो क्योंकि तुमसे थैंकयू सुनने की मुझे आदत पड़ चुकी है . . ” सुलभा ने मानव की एक ऊँगली को अपने हाथ से पकड़ा और फिर धीरे से उसे अपने होठों से लगा लिया .
- सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
जन्म - स्थान : जगाधरी ( यमुना नगर – हरियाणा )
शिक्षा : स्नातकोत्तर ( प्राणी – विज्ञान ) कानपुर , बी . एड . ( हिसार – हरियाणा )
लेखन विधा : लघुकथा , कहानी , बाल – कथा , कविता , बाल – कविता , पत्र – लेखन , डायरी – लेखन , सामयिक विषय आदि .
प्रथम प्रकाशित रचना : कहानी : ” लाखों रूपये ” – क्राईस चर्च कालेज , पत्रिका – कानपुर ( वर्ष – 1971 )
अन्य प्रकाशन : 1 . देश की बहुत सी साहित्यिक पत्रिकाओं मे सभी विधाओं में निरन्तर प्रकाशन ( पत्रिका कोई भी हो – वह महत्व पूर्ण होती है , छोटी – बड़ी का कोई प्रश्न नहीं है। )
2 . आज़ादी ( लघुकथा – संगृह ) ,
3. विष – कन्या ( लघुकथा – संगृह ) ,
4. ” तीसरा पैग “ ( लघुकथा – संगृह ) ,
5 . बन्धन – मुक्त तथा अन्य कहानियां ( कहानी – संगृह )
6 . मेरे देश कि बात ( कविता – संगृह ) .
7 . ” बर्थ - डे , नन्हें चाचा का ( बाल - कथा – संगृह ) ,
सम्पादन : 1 . तैरते – पत्थर डूबते कागज़ “ एवम
2. ” दरकते किनारे ” ,( दोनों लघुकथा – संगृह )
3 . बिटीया तथा अन्य कहानियां ( कहानी – संगृह )
पुरस्कार : 1 . हिंदी – अकादमी ( दिल्ली ) , दैनिक हिंदुस्तान ( दिल्ली ) से पुरुस्कृत
2 . भगवती – प्रसाद न्यास , गाज़ियाबाद से कहानी बिटिया पुरुस्कृत
3 . ” अनुराग सेवा संस्थान ” लाल – सोट ( दौसा – राजस्थान ) द्वारा लघुकथा – संगृह ”विष – कन्या“ को वर्ष – 2009 में स्वर्गीय गोपाल प्रसाद पाखंला स्मृति - साहित्य सम्मान
आजीविका : शिक्षा निदेशालय , दिल्ली के अंतर्गत 3 2 वर्ष तक जीव – विज्ञानं के प्रवक्ता पद पर कार्य करने के पश्चात नवम्बर 2013 में अवकाश – प्राप्ति : (अब या तब लेखन से सन्तोष )
सम्पर्क : साहिबाबाद, उत्तरप्रदेश- 201005
