पिता थे तो साथ थी
घने बरगद की छाँव सर पर हमेशा
बरसता था नेह का नूर
सजा रहता था माँ का हर प्रहर
माँ के हाथो के कंगन थे पिता
सिन्दूर,मेहँदी,बिछुआ,पायल थे पिता
नेग,दस्तूर और त्यौहार थे पिता
चौके,चूल्हे और आँगन की बहार थे पिता
नहीँ लगता था हमको डर किसी से
अभावों में भी खुशियां थीं हमेशा
पिता पुचकार लेते थे
भरोसा हमको देते थे
नहीं वाकिफ थे हम मजबूरियों से
कि आँसू वे हमारे
झेल लेते थे हथेली पर
सोख लेते थे वे खारापन
गलाकर खुद को
और धरते थे हथेली पर
सुखो के कई सारे पल
पिता थे
था हमारे साथ जीवन
जिसे अब ढूंढती है जिंदगी
- संतोष श्रीवास्तव
प्रकाशन : कहानी,उपन्यास,कविता,स्त्री विमर्श तथा गजल विधाओ पर अब तक १७ किताबे प्रकाशित
सम्मान: २ अंतरराष्ट्रीय तथा १६ राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके है।
शिक्षा: डीम्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की मानद उपाधि।
अन्य: प्रतिवर्ष हेमन्त स्मृति कविता सम्मान तथा विजय वर्मा कथा सम्मान का आयोजन।
सम्प्रति: मुम्बई विश्ववद्यालय में कोआर्डिनेटर