टाइम नहीं है , बहुत बिजी चल रहा है

आज की व्यस्त और भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में, सभी एक वाक्य अवश्य बोलते हैं। “टाइम नहीं है , बहुत बिजी चल रहा है”।
यह वाक्य बोलते समय अक्सर लोगों के हाथ में एक स्मार्ट फ़ोन होता है और वो उस पर व्यस्त होते हैं। अब आज-कल इतनी सारी बातें होती हैं कि, दोस्तों और रिश्तेदारों को बताना पड़ता है। तो फेसबुक, ट्विटर, और व्हाट्स ऐप्प जैसी जगहों पर एक पोस्ट कर दीजिए और बस पूरी दुनिया को पता चल जायेगा। फिर चल पड़ेगा पसंद और टिप्पणी का दौर। आलम ये हो जाता है कि, लोग वाहन चलाते समय भी एक हाथ और एक उंगली जवाब देने में व्यस्त रखते है। भाई कम से कम वाहन चलाते समय तो सड़क पर देख लो। आपका तो नहीं पता किन्तु औरों का जीवन बहुत कीमती है।

“टाइम नहीं है , बहुत बिजी चल रहा है”। यह वाक्य एक अतिशयोक्ति बन कर रह गया है, क्योंकि लोग अपने स्मार्ट फ़ोन के लिए हो ना हो समय निकाल ही लेते हैं। हमारा स्मार्ट फ़ोन, हमारा बनावटी जीवन बनता जा रहा है और हम इसके कैदी बनते जा रहे है। एक समय था जब दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के घर जाते थे, साथ में बैठते थे, वार्तालाप करते थे। आज आमने सामने वार्तालाप का समय ना मिल पाने का कारण और इसके कारण स्मार्ट फ़ोन की बिक्री में निरंतर बढ़ोत्तरी है। जो कहना है बस लिख दीजिए, सामने वाले की बात अच्छी लगे तो चेहरे के भाव का एक चित्र भेज दीजिए। बात अत्यधिक अच्छी और व्यंगात्मक लगे तो, तो अंग्रेजी के तीन अक्षर लिख दीजिए, “LOL”। इसका अंग्रेजी अर्थ है “लाफ आउट लाउड ” और यदि इसका हिंदी अर्थ है “जबरदस्त हंसी”।

पहले जो काम साथ में बैठ कर ज़ोर के ठहाके लगा के होता था, वही काम आज-कल “लो ल ” लिख कर होता है। है ना कमाल की बात, आपकी ऊर्जा भी नष्ट नहीं हुई और ध्वनि प्रदुषण भी नहीं हुआ। अब सवाल ये उठता है कि, “लो ल ” लिख कर क्या हम सही में खुश हुए ? ज़ोर के ठहाके लगाने का आनंद “लो ल ” से मिलता है क्या ? शायद नहीं। ये हमारे बनावटी जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। धीरे -धीरे ठहाकों से होने वाले चेहरे के व्यायाम और मिलने वाली मानसिक संतुष्टि, दोनों ही विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके हैं।

समय बदल रहा है। आज-कल बच्चे मैदान में कम स्मार्ट फ़ोन पर ज्यादा समय व्यतीत करते हैं। आज से १५ साल पहले, अधिकांश बच्चे छरहरे शरीर वाले, चुस्त और फुर्तीले हुआ करते थे। आज के अधिकांश बच्चे, आलसी और अत्यधिक वज़न वाले होते जा रहे हैं। थोड़ा चलना और भागना हो जाये तो ये बच्चे थक के बैठ जाते हैं। कारण घर में बैठ कर मनोरंजन के साधनों में व्यस्त रहना। इसका एक कारण और भी है,आज-कल का अशुद्ध भोजन। मिलावटी और रासायनिक खादों की मदद से उपजा हुआ अन्न, फ़ास्ट फ़ूड की न जाने कितनी सारी भोजन की शृंखलाएँ जो प्रतिदिन हमारे शरीर में विष घोलती जा रही हैं। दुःख की बात ये है कि स्वादिष्ट होने की वजह से बच्चे और बड़े दोनों ही इन व्यंजनों को बड़े चाव से कहते हैं। ऐसे में ये माँ-बाप की जिम्मेदारी है कि, वो अपने बच्चों को इस प्रकार के भोजन से होने वाली हानियों से अवगत कराएं। इतना ही नहीं घर ही स्वादिष्ट और सेहतमंद भोजन बनाएं। वो भी क्या दिन थे, माँ रसोई में रोटी या देशी घी से निर्मित पराठे बनाते बनाते थक जाती थी किन्तु भाई बहनों में कौन अधिक खायेगा इसकी होड़ खत्म नहीं होती थी। ऐसा नहीं था की बच्चे शर्त की वज़ह से अधिक खा जाते थे, इसका कारण था दिन भर का शारीरिक परिश्रम। मैदान में दौड़ भाग से भरे खेल खेलना। आज बच्चा २ या ३ साल का होते होते यू ट्यूब पर अपने पसंद का मनोरंजन ढूंढने लगता है। वो भी क्या दिन थे जब बच्चे बारिश के पानी में कागज की नाव चलाकर, पकड़न पकड़ाई खेल कर, साईकिल दौड़ कर के और ऐसे ही ढेरों खेल खेल कर जब थक जाते थे, तब वो मोहल्ले की चौपाल पर बैठ कर दादा-दादी से किस्से और कहानी सुना करते थे। रात में सभी मिल कर एक साथ भोजन करते थे, दादा-दादी, माँ-बाप और बच्चे। आज माँ-बाप दोनों नौकरी वाले होते हैं। बच्चे अधिकांश समय घर में अकेले रहते हैं। इस समय का सही उपयोग कर रहे हैं या गलत ये देखने के लिए दादा-दादी भी साथ नहीं होते।

हम आधुनिक चकाचौंध में खोते जा रहे हैं। हर किसी को कृत्रिम जीवन की आदत पड़ती जा रही है। दुनिया भाग रही है और हम भी साथ में भागते जा रहे हैं। इस भाग दौड़ में हम इतने व्यस्त हो गए हैं कि , अपने आप से, अपने परिवार से, अपने रिश्तेदारों से निरंतर दूर होते जा रहे हैं। तनिक ठहरिये, अपने आप को समय दीजिए, अपने परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों को समय दीजिए। एक बार फिर से वो असली ठहाकों भरी ज़िन्दगी का आनंद लीजिए। वो भी क्या दिन थे उन्हें फिर से जी लीजिए।

आप स्मार्ट फ़ोन के गुलाम न बनकर उनका यथोचित उपयोग करें और इस सुन्दर जीवन एवं प्रकृति का आनंद उठायें।

 

-अमित सिंह 

फ्रांस की कंपनी बेईसिप-फ्रंलेब के कुवैत ऑफिस में में सीनियर पेट्रोलियम जियोलॉजिस्ट के पद पे कार्यरत हैं |

हिंदी लेखन में रूचि रहने वाले अमित कुवैत में रहते हुए अपनी भाषा से जुड़े रहने और भारत के बाहर उसके प्रसार में तत्पर हैं | 

 

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