सूरीनाम और नीदरलैंड मिलाकर पुष्पिता अवस्थी को वहां रहते हुए लगभग सत्रह बरस होने को आए परन्तु इस डेढ़ दशक से कुछ ही ज्यादा समय में उनकी कविता, कहानी व कथेतर गद्य की लगभग दो दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रवासी भारतीय लेखकों में उनका नाम प्रतिष्ठा से लिया जाता है जिन्होंने विश्व के अनेक देशों की गहन यात्राएं की हैं और अब यह उपन्यास उनके लेखन और रचनात्मक अनुभवों को एक बड़ा आयाम देता है क्योंकि पहली बार किसी प्रवासी भारतीय लेखिका ने सूरीनाम और कैरेबियाई देश को उपन्यास का विषय बनाया है तथा गिरमिटिया परंपरा में सूरीनाम की धरती पर आए मेहनतकश पूर्वी उत्तर प्रदेश के मजदूरों यानी भारतवंशियों की संघर्षगाथा को शब्दबद्ध किया है।
छिन्नमूल शीर्षक से आए इस उपन्यास के नाम से ही यह ध्वनित होता है कि यह उन लोगों की कहानी है जो अपनी जड़ों से कटे हैं, जिन्होंने पराए देश में अपनी संस्कृति अपने धर्म और विश्वासों के बीज बोए हैं तथा परायी धरती को अपने खून- पसीने से सींच कर पल्लवित और पुष्पित किया है। प्राय: यहां दूतावास में भारत से लोग आते रहे हैं जिन पर यह दायित्व होता है कि वे राजदूतावास से जुड़ कर यहां भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार करें, उनके जीवन स्तर में सुधार सुनिश्चित करें तथा स्थानीय प्रशासन से उन्हें हर संभव सहयोग मुहैया करवाएं पर प्राय: लोग किसी तरह यहां अपनी तैनाती की अवधि बिताकर चले जाते हैं। इसके विपरीत, पुष्पिता अवस्थी ने न केवल अपने दूतावास के कार्यकाल में सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन सुनिश्चित करवाया बल्कि भारतवंशियों की संस्कृति पर कार्य के अलावा सूरीनामी कवियों लेखकों की रचनाओं के चयन संपादित किए एवं कथा सूरीनाम, कविता सूरीनाम व सूरीनाम एवं नीदरलैंड जैसी परिचयात्मक पुस्तक का संपादन भी किया। वहां के सुपरिचित कवि जीत नराइन की कविताओं का चयन भी संकलित संपादित किया व सूरीनामी भारतवंशियों के लिए हिंदी की कक्षाएं भी चलाईं।
सूरीनाम पर इससे पहले डच भाषा में उपन्यास लिखे गए हैं पर वे प्राय: नीग्रो समाज के संघर्ष को उजागर करते हैं। सरनामी भाषा में भी कुछ उपन्यास लिखे गए हैं पर वे सर्वथा डच सांस्कृतिक आंखों से देखे गए वृत्तांत हैं। किसी प्रवासी भारतीय लेखक द्वारा कैरेबियाई व सूरीनामी भारतवंशियों के संघर्ष पर हिंदी में लिखा यह पहला उपन्यास है जो एक तरफ हिंदुस्तानी संस्कृति के दोगले और मुखौटेदार चेहरों की असलियत अनावृत्त करता है दूसरी तरफ एक सौ साठ बरस के अंतराल में यहां पनपी सूरीनाम हिंदुस्तानी संस्कृति की अन्तर्पर्तो को भी उदघाटित करता है। अतीत में जब पाल वाले जल जहाजों से हिंदुस्तानी यहां लाए गए थे तो उन पर गोरे डच कालोनाइजर के क्रूर शोषक हत्यारे कोड़े बरसाते थे, आज यहां उन्हीं हिंदुस्तानियों की आबादी 42 प्रतिशत है। अपना सब कुछ छोड़ कर आए भारतवंशियों का अब हिंदुस्तान से भी संपर्क लगभग कट सा गया है। वे लौटना भी चाहे तो असंभव है पर वहां की परंपराओं को यहां की माटी में जैसे रोप कर हरा भरा बनाए रखा है। सूरीनाम की भारतवंशी संस्कृति व सरनामी हिंदी से सुपरिचित व भारतवंशियों के रहन सहन, जीविका, पारिवारिक संबंधों को गहरे जीने एवं महसूस करने वाली पुष्पिता अवस्थी ने न केवल सूरीनाम के भौगोलिक परिवेश, जन जीवन व पर्यावरण को पूरी समझ के साथ उकेरा है बल्कि भारतवंशियों के हालात, तथा नीग्रो की लुटेरी प्रवृत्तियों तक को भी बहुत गहराई से विश्लेषित किया है।
छिन्नमूल की मुख्य किरदार ललिता सूरीनाम में किसी पार्टी में देर रात अकेले होने व बारिश बूंदों के जबर्दस्त आसार को देखते हुए दूर घर पहुंचने की विकलता व सूरीनामी लुटेरे परिवेश को देखते हुए जिस भय से ललिता ग्रस्त होती है उससे वही रहने वाला रोहित जो एक व्यवसायी व शरीफ इंसान है, चुटकियों में भयमुक्त करता है। कार में लिफ्ट देने के साथ ही अपनी सुजनता का परिचय देने वाले रोहित के प्रति धीरे धीरे ललिता में खिंचाव पैदा होता है। वह इस बीच बीमारी होने पर एक आपरेशन के लिए अस्पताल दाखिल होती है जिस दौरान रोहित ऐसी देखभाल करता है कि वहां से वह उसे अपने घर न जाने देकर मनुहारपूर्वक अपने घर ले आता है जहां पहुंच कर वह घर जैसा महसूस करती है । रोहित मूलत: भारतवंशियों की ही संतान है जो कभी दो तीन पीढ़ियों पहले सूरीनाम आए और अब उसका हालैंड का कारोबार है। दो दिल कैसे उत्तरोत्तर एक होते जाते है परिस्थितियां इसे बहुत खूबसूरती से संभव करती हैं।
कालांतर में, रोहित का अपने पुरखों की याद को संरक्षित करने के लिए सूरीनाम में पुरखों की जमीन पर स्कूल व मंदिर आदि के निर्माण में लगना रोहित व ललिता का साझा स्वप्न बन जाता है। इसी बहाने ललिता सूरीनामी जीवन, भारतवंशियों की सांस्कृतिक परंपराओं, पारस्परिक रिश्तों, संबंधों में आते हुए पश्चिमी आधुनिकता के प्रभावों तथा अपने को न बदलने की एक जिद्दी धुन लिए सूरीनामी भारतवंशियों को अपने विवेक और अध्ययन में गहरे पोसती है। ऊंची तालीम व कारोबार के लिए सूरीनामियों की पहली पसंदीदा जगह हालैंड है इसलिए हालैंड के डच व भारतीय समाज पर भी तमाम टिप्पणियां यहां संवादों और किस्सागोई में समेटी गयी हैं। हालैंड के भारतीय व डचभाषाभाषी समाज में सेक्स और यौनिकता के प्रति खुलेपन को भी बेबाकी से चित्रित किया गया है जहां बिना विवाह किए रहने की छूट है तथा समाज में मर्दवादी दृष्टि का बोलबाला है।
किस्सागोई का केंद्र यों तो सूरीनाम व हालैंड ही है पर इसके नैरेटिव में कैरेबियाई देशों के हवाले भी आए हैं। जैसे लेखिका कहती है, ”‘सूरीनाम’ की धरती ही नहीं, ब्रिटिश गयाना, फ्रेंच गयाना, वेनेजुएला, पेरु, चिली और ब्राजील आदि के जंगल या यूं कहें पूरे दक्षिण अमेरिका के जंगलों को देखकर ऐसा लगता है कि पृथ्वी का यह हिस्सा आज भी कुंआरी कन्या की तरह है। जंगल आज भी मौलिक रूप में जीवित है जिसे भोगवादी आँखों ने अभी तक स्पर्श नहीं किया है। यूं मानों इसे अभी सिगरेट की तरह सुलगाकर पिया नहीं है।” इस तरह यह उपन्यास केवल ललिता व रोहित के प्रेम व दाम्पत्य की दास्तान ही नहीं, नीदरलैंड व सूरीनामी समाज, संस्कृति व भारतवंशियों के रहन सहन, उनके प्रति सूरीनामी प्रशासन के रवैये का भी एक व्यापक व संजीदा आख्यान बन गया है जिसे पुष्पिता अवस्थी ने अपने प्रवासी भारतीय मन मिजाज के अनुरूप एवं किस्सागोई के चुम्बकीय भाषायी आकर्षणों के साथ रूपायित किया है। इसके वृत्तांतों में रिपोर्ताज़ की महक है पर इसके बावजूद किस्सागोई कहीं आहत नहीं होती।
- डॉ ओम निश्चल
मूल नाम : ओम कुमार मिश्र
जन्म : 15 दिसम्बर , प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)
भाषा : हिंदी
विधाएँ : कविता, गीत, आलोचना
मुख्य कृतियाँ :
कविता संग्रह : शब्द सक्रिय हैं
आलोचना : द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी : सृजन और मूल्यांकन
संपादन : द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी रचनावली, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी : साहित्य का स्वाधीन विवेक, जियो उस प्यार में जो मैंने तुम्हें दिया है : अज्ञेय की प्रेम कविताएँ, अज्ञेय आलोचना संचयन
सह संपादन : अधुनान्तिक बांग्ला कविता, बैंकिंग बांग्मय सीरिज, व्यावसायिक हिन्दी, तत्सम् शब्दकोश
सम्मान: हिन्दी अकादमी द्वारा नवोदित लेखक पुरस्कार
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