चौराहे

शायद माँ भी उन्ही चौराहों से गुज़री होगी
जिन चौराहों से आज मैं गुज़रती हूँ…
दरअसल माँ को पसंद नही चौराहों पे खड़े रहने वाले वो लोग
जो अपनी राह से भटके हुए होते हैं
और फिर वो दूसरों को भी भटकाने लगते हैं
शायद माँ ने बहुत नज़दीक से देखा है
चौराहे के उन लोगों को….
जो आती-जाती स्त्रियों पे कसते हैं फब्तियाँ
बुजुर्गों का उड़ते हैं मज़ाक
नौजवानों को करते हैं गुमराह
और बच्चों को करते है परेशान
चौराहों की दुकानों पे जमघट लगाए
अपने वजूद का अहसास कराने की भरपूर कोशिश करते ये लोग
चौराहे पे थूक कर पान की पीक
कर देते हैं पाक -सॉफ राहों और उनके राहगीरों के
दामन को गंदा…….
कोई क्यों नही समझाता इन्हे
की चौराहे भटकने के लिए नही होते
वो तो आपको अवसर देते हैं
जीवन की सर्वश्रेष्ठ राह चुनने का
चौराहों के लाल सिग्नल पे ठहर जाने का नाम ज़िंदगी नही है
बल्कि वक़्त के हरे सिग्नल को समझ के
उसके साथ आगे बढ़ जाने का नाम है ज़िंदगी ……
क्योंकि ठहर जाने पर तो नदी का पानी भी गंदा हो जाता है
इसलिए जो वक़्त की नदी के बहाव को समझ कर
उसकी धारा के साथ बहने की हिम्मत रखता है
वही अपनी मंज़िलों को पहुँचता है….
इसलिए तो प्रकृति भी सदा चलायमान रहती है
सूरज चाँद, तारे ,नदी, हवा,वक़्त यहाँ तक की पृथ्वी भी…
सब कुछ तो चलायमान है
तो फिर क्यों ठहर जाते हैं ये लोग
बेमकसद…….? चौराहों पे………..?
कोई क्यों नही समझाता इन्हे
चौराहों का महत्व…….

 

- हेमा चन्दानी ‘अंजुलि’

अभिनेत्री व् कवियत्री हूँ, जन्मस्थान जयपुर है, पिछले ८ वर्षों से मुम्बई में अभिनय व् लेखन के क्षेत्र में कार्यरत हूँ , पिछले १८ वर्षों से रंगमंच  से भी जुड़ाव रहा है,शास्त्रीय संगीत [गायन] में एम  ए किया है, कुछ वर्ष कत्थक नृत्य कि भी शिक्षा ली, २०१४ में अंतर्राष्ट्रीय लघु कथा प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया .

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