चिड़िया

 

ऊँची उड़ान, खुले आसमान की चाह में,
छोड़ जंगल का घर, चिड़िया आ गयी थी शहर,
पर शहर आकर, चिड़िया डर गयी है,
उसके उड़ने की आरज़ू ,मर गयी है,
चिड़िया जान गयी है ,यंहा गली-गली में शिकारी हैं,
बहरूपिये सदाचारी हैं,
जाने कब कंही से कोई आ के उसे दबोच ले,
जाने कब कोई उसके मुस्कुराते पंख नोच ले ,
अब चिड़िया नहीं चाहती आज़ादी,
नहीं चाहती खुला आसमान, नहीं चाहती पंख
अब उसे सूरज के उजालों से ,कंही ज्यादा रोशन लगता है ,
पत्तों के झुरमुट का अँधेरा,
खुली हवाओं से ज्यादा सुकून देती हैं ,
उसे तिनको के घोसलें की चुभती दीवारें,
चिड़िया सचमुच बहुत डर गयी है,
मैंने बहुत दिनों से उसे नहीं देखा,
लगता है, वो फिर से,
अपने जंगल वाले घर गयी है ।

 

- हेमा चन्दानी ‘अंजुलि’

अभिनेत्री व् कवियत्री हूँ, जन्मस्थान जयपुर है, पिछले ८ वर्षों से मुम्बई में अभिनय व् लेखन के क्षेत्र में कार्यरत हूँ , पिछले १८ वर्षों से रंगमंच  से भी जुड़ाव रहा है,शास्त्रीय संगीत [गायन] में एम  ए किया है, कुछ वर्ष कत्थक नृत्य कि भी शिक्षा ली, २०१४ में अंतर्राष्ट्रीय लघु कथा प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया .

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