चिर पराई

 

“आठवें एवेन्यू से कोच नायग्रा फाल के लिए रवाना होगी . यात्रियों से निवेदन है कि ठीक साढ़े आठ बजे अपना स्थान ग्रहण कर लें . ”

ब्रोशर में लिखे निर्देशानुसार राजन और मै समय से पहुँच गए . आगे की ओर दो अच्छी सी सीटें मिल गईं . टूर की गाइड हमारे सामनेवाली सीट पर थी . कमेंट्री सुनने में आसानी रहेगी . साढ़े आठ बज गया पर बस नहीं चली . दो चार और लोग भी , जो शायद लेट थे , बस में चढ़े . सौरी सौरी कहते हुए यथास्थान बैठ गए . आठ चालीस हो गया पर बस नहीं चली . टूर की गाइड तटस्थ बैठी रही . किसी ने भी जिज्ञासा नहीं दिखलाई . ना ही बस ना चलने का कारण पूछा .

नौ बजे राजन ने गाइड से पूछा . उसने हमारी पीछे वाली सीट की ओर इशारा किया और बताया कि कोई टॉयलेट में गया है . आ जाए तो चलते हैं .

हमारी पीछे की सीट पर कोई दिखाई नहीं दिया . कुर्सियों की पीठें काफी ऊंची थीं . इस कारण खड़े होकर ही देखा जा सकता था . तभी हमें हिंदी में बात करते देखकर पीछे वाली सवारी ने हमें नमस्ते कहा . हमने भी झाँककर अपना परिचय दिया . वह एक ठिंगनी सी पतली दुबली मराठी स्त्री थीं . साड़ी पहने थीं . उन्होंने सकुचाते हुए बताया कि उनके पति निवृत्त होने गए हैं .

” सबको देर करवा रहे हैं . क्या करूँ . —-”

” अरे इसमें घबराना या शर्मिन्दा क्या होना . प्राकृतिक नियम शरीर के संग ही लगे रहते हैं . सुबह का समय ठहरा . ”

” नहीं बहनजी —- अब आपको क्या बतलाऊँ — बड़ी गड़बड़ की इन्होंने !घर से बाहर निकलकर क्या बदपरहेज़ी करनी चाहिए ? जहां जो मिला जीम लिया . अब बीमार पड़ गए ना . ”

” घर से बाहर निकल कर ही भोजन गडबडाता है . आप इतनी व्याकुल ना होईये .”

वह शायद गुस्से में थीं . अपनी झुंझलाहट निकालना चाहती थीं . आगे से चुप ना रह सकीं . बोलीं —

” पर यह कोई बच्चा तो हैं नहीं ? अपनी उम्र का भी तो कोई ख्याल रखना चाहिए . यह उम्र क्या छोले भठूरे खाने की और लस्सी पीने की रह गयी है ? सत्तर वर्ष के हो गए . इनकी सत्तरहवीं वर्षगाँठ के उपलक्ष में हमने अमेरिका का टूर लिया है . पर इन्होंने ? जो दोस्तों ने कहा मान लिया . पत्नी की सुनने का धर्म ही नहीं . —कल शाम अपने दोस्त निखिल को इंडिया फोन किया . न्यू योर्क में में अच्छा भारतीय भोजन कहाँ मिलेगा . यहाँ तो कोई अच्छा रेस्टोरेंट नज़र नहीं आया . उसी ने बताया कि न्यू जर्सी चले जाओ . सारा न्यू योर्क पार करके जाने कहाँ कोने कुच्चहर में एक सरदार जी का ढाबा बता दिया . ढूंढते ढूंढते जब हम पहुंचे , रात का आठ बज गया था . दोस्त का नाम लिया तो उसने हमसे पैसे भी नहीं लिए . ऐसा करना चाहिए क्या ? बिजनस तो बिजनस है . बस माले मुफ्त , दिले बेरहम . खूब धसक के खा लिया . सब कुछ ट्राई किया . साग पनीर और मक्की की रोटी ., छोले भठूरे , चाट पापडी , गुलाब जामुन , दही बड़े —- कुछ भी नहीं छोड़ा . ऊपर से लस्सी पी ली . . इतना लालच करो तो पेट कोई हंडिया तो है नहीं . मशीन ख़राब हो गयी . अब भुगतो !! सुबह से बार बार —”

सुनाते सुनाते उनकी आँखें भर आईं . तभी ड्राइवर ने पास आकर कुछ समझाया तो वह उतर कर नीचे चलीं गईं . करीब दस मिनट के बाद फिर अपनी जगह आ बैठीं . बताया .” नई पैंट और जांघिया सूटकेस में से निकाल कर दिया है . सब खराब कर दिया . ”

” आप यहाँ हैं तो वह अकेले परेशान हो रहे होंगे . मेरे ख्याल से आप स्वयं जाकर देख लीजिये .”

” नहीं उनकी भतीजी सुनंदा है ना साथ . वही सब देख रही है . हमें छोड़ने आई थी . बीस साल से यहाँ ही रह रही है मैनहैटन में . उसका पति बैंक में है दोनों नौकरी करते हैं . दो बच्चे हैं अब तो कॉलिज जाने वाले हैं . हम उसी के पास ठहरे हैं . कल रात से ही इनका पेट खराब था .फिर आज यहाँ नहीं आना था ! मगर चमड़ी से ज्यादा दमड़ी प्यारी है . इस टूर का अडवांस पैसा भर चुके थे . रात को सुनंदा के घर कोई दवा भी नहीं निकली . फिर सुबह इतनी जल्दी निकलना था तो कैसे होता . बस में बैठे भी नहीं थे कि फिर से जाना पड़ा . शुकर है कि अभी कुछ समय बाक़ी था . चलती बस में कुछ होता तो ? मेरी तो ना मानने की कसम खा रखी है . अच्छा था कि सुनंदा अभी यहीं पर थी . वरना केवल झगडा ही होता . ”

” आप इतना परेशान ना हों . हम लोग हैं ना आपके साथ . मेरे पर्स में इमोडियम का पत्ता हमेशा साथ रहता है . अभी आयेंगे तो एक गोली खिला दीजिएगा . पेट ठहर जाएगा .”

पूरा एक घंटा लगा . उनके पति , छोटी कद काठी के , दुबले पतले , हांफते रपटते , बस में चढ़े . कमजोरी उनकी नस नस से टपक रही थी . शरीर का आयतन इतना कम होने पर भी कोई आदमी इतना कैसे खा सकता है देखकर आश्चर्य हुआ . मुश्किल से आठ या नौ स्टोन के रहे होंगे . गाइड स्त्री ने सहारा देकर उन्हें खिडकी की तरफ बैठाया . मैंने गोली निकाल कर उन्हें दी तो उन्होंने बिना पानी के ही सटक ली . पत्नी ने कहा पानी पी लो तो मना कर दिया . गाईड स्त्री ने भी कहा की पेचिश में पानी पीना बहुत जरूरी है क्योंकि शरीर का सारा पानी निकल जाता है . पर वह अपनी जिद पर अड़े रहे .

बस आखिरकार चल पड़ी . एक गुनगुनाहट सी उठी . समझ लिया की सबने चैन की साँस ली है . कुछ ने प्रकट में , पर करीब करीब सबने अपने अपने इष्टदेव का मन में स्मरण किया . गाइड ने अपना माईक सँभाला . मैंने पानी का गिलास भरा और सीटों की दरार में से पीछे बढ़ा दिया . उन्हों ने चुपचाप एक आज्ञाकारी बालक की तरह सारा पी लिया . मेरे चेहरे की दृढ़ता शायद असर कर गयी या वे सचमुच अपनी पत्नी से भाव खाते थे . जो कि सब भारतीय स्त्रियों का सामान्य अनुभव है . ‘ आ माई विधाता , अपनों से वैर ,बेगानों से नाता ‘ .

लंच के लिए हम एक मोटेल पर रुके . बस से उतर कर उन्होंने राजन से हाथ मिलाया . ” माईसेल्फ गोकुलदास भावे फ्रॉम बेलगाम . दिस माई वाईफ शांता . ”

राजन ने भी अपना परिचय दिया . फिर पूछा ” आपकी तबीयत ठीक है ना ? अगर जरूरत पड़े तो मै साथ चलूँ क्या ? ”

” नहीं अभी मै ठीक हूँ . पर भूख नहीं है बिलकुल . ”

” फिर भी आपको कुछ खा लेना चाहिए , सफ़र अभी लंबा है . चाय और दो बिस्कुट ही ले लीजिये . ”

” बिस्कुट अभी रहने दें . सिर्फ चाय चलेगी . ”

चाय के संग दूसरी गोली भी खाई . उसके बाद दोनों पति पत्नी सोते हुए चले . शाम को पहुंचते ही डिनर खाया सबने . शांता बहन हमारे संग ही हो लीं . कहने लगीं कि आपका साथ होगा तो यह बात तो करेंगे ढंग से वरना फिर कुछ उल जलूल बोलेंगे . वह सुन कर चमके , ” उल जलूल क्या ? निखिल ने बताया था ना कि यहाँ भी उस सरदार का ढाबा है . मुझे वहीँ खाना था पर तेरी बद दुआ से अभी मेरा पेट ही खराब हो गया . मुझे खाते नहीं देख सकती ! ”

देखो , देखो इनको ! कैसे झगड़ने के मूड में रहते हैं हरदम . !! ”

बेचारी शांता बहन हमारे साथ खाना खाने चली आईं . शुद्ध शाकाहारी भोजन मिलता भी क्या . पालक का सूप और टोस्ट ही खा पाईं .

भोजन के बाद सभी यात्री होटल के बाहर एकत्र हुए . टूर की गाइड हमें शाम की रंगीन रोशनियों में नायग्रा फाल की सुन्दरता दिखाने ले चली . भावे दंपत्ति कहीं दिखाई नहीं दिए .

अगले दिन हम फिर से झरना देखने गए . भावे दम्पत्ति भी साथ थे . दर्शकों के लिए टेरेस पर लगभग सभी नजर आये पर मिस्टर भावे नहीं दिखे . अलबत्ता शांता बहन एक ओर अकेली खड़ी रेलिंग को पकड़कर झरने को निहार रही थीं . मुझे लगा झरने से ज्यादा वह प्रकृति की महानता से अभिभूत थीं .

सूर्य की रौशनी पानी कि बूंदों से विकीरण व् अपवर्तन की प्रक्रिया के कारण असंख्यों इन्द्रधनुषों की सृष्टि कर रही थी . उनसे ज़रा नीचे ऊपर से गिरती अनवरत जलधारा के भारी निर्झर से उठे महीन जलकण वातावरण में सतरंगी धुंध बन कर छाये हुए थे . जिनके वैषम्य में स्फटिक के जैसा सफ़ेद फेन नीले पानी पर घुमावदार आकृतियाँ बनाता प्रवाहित हो रहा था .

दृश्य की सुन्दरता में डूबी मै गाइड के निर्देशानुसार सभी स्थानों पर रुक रुक कर ,झरने की विशालता को आत्मसात करती हुई , अपने ही ध्यान में मगन घूमती रही . अपना कोई देशवासी संसार के किसी दूरस्थ स्थान में मिल जाय तो रिश्तेदारों से अधिक आत्मीय लगता है . शांता बहन की पीठ मेरी ओर थी . गहरी लाल साड़ी और ढीले जूड़े में वह सौम्यता की प्रतिमा लग रहीं थीं . मै लपक कर उनके पास पहुँच ली . मेरी आहट सुनकर उन्होंने झटपट टिश्यु से अपनी आँखें पोंछीं . और गले में लटकता सुनहरी फ्रेम का चश्मा आँखों पर चढ़ा लिया . परन्तु अपना अवसाद वह छुपा ना सकीं . मेरे अभिवादन करने पर वह खिल उठीं . मैंने उनके पास खड़े होकर राजन से फोटो खींचने को कहा तो वह गदगद हो गईं . राजन ने अनायास पूछा , ” भाईसाहब को नहीं लाईं ? तबीयत तो ठीक है ना ? ”

” हाँ आपकी गोली ने अच्छा असर किया . आये तो हैं मगर कहीं दुबक कर बैठे हैं . बहुत जिद्दी हैं . ”

” अरे यहाँ आकर क्या रूठना ! ” मैंने कहा तो वह हताश स्वर में बोलीं .

” उन्हें नहीं देखना है — इतनी दूर आकर — इतना खर्चा करके —जीवन में एक बार —-उन्हें यह सब नहीं देखना है . कितना समझाया ,पर नहीं माने . —-शायद आपके बुलाने पर आ जाएँ . एक यादगार के लिए फोटो तो खिंचवा लेते . ” शांता बहन एक ठंडी साँस लेकर चुप हो रहीं .

 

 

राजन हर एंगिल से नायग्रा फाल को कैमरे में क़ैद करना चाहते थे . ” मै देखता हूँ उन्हें ”. कहकर वह टेरेस पर निकल गए . मै शांता बहन के पास ही खड़ी रही . वह बोलीं , ” आप भी जाइए . यहाँ तो ऐसे ही चलता रहेगा . ”

” बहन आप जी छोटा न करें . मै हूँ न आपके पास . ये पति लोग तो ऐसे ही दिमाग दिखाते रहते हैं . ” —- .

मेरी बात को काटकर वह बोलीं . ,

” नहीं बहन वह ऐसे नहीं थे . हमारी तो लव मैरिज हुई थी . —मेरी बहने , जेठानियाँ आदि सब मुझसे ईर्ष्या करती थीं . पर — ”

उनका गला भर आया . यादों के अम्बार धुआँ बन कर उनकी आँखों में छा गए . आँसुओं को पीछे धकेलती हुई वह आगे बोलीं . ” मेरे पति का लम्बा चौड़ा परिवार था . पांच भाई , दो बहने . बिजनस साँझा , रहना सहना साँझा . . सास ससुर रूढ़ियों के गुलाम . बाद में भाई भाई का मनमुटाव , आपसी ईर्ष्या द्वेष . बँटवारा . जीवन की भोर में ही असह्य कटुता ! —- हम दोनों ने निश्चय किया कि हमारे एक ही संतान होगी . सौभाग्य से ईश्वर ने हमें एक पुत्र दिया . सुन्दर स्वस्थ व मेधावी . हमने उसका नाम गोविन्द रखा . परिवार से अलग हमने अपना खुद का कारोबार खोला . खूब चला . मेरा बेटा सदा अव्वल नंबर लाता . पढाई में भी और खेल कूद में भी . उसके दोस्तों से हमारा आँगन सदा गुलज़ार रहता . मेरे पति उसके पिता कम , मित्र अधिक थे . शाम को जब वे घर पर होते खूब हँसी मजाक .बहस .नोक झोंक होती . पढाई ख़तम करते ही उसे उसी कोलिज ने फिसिक्स का लेक्चरार बना दिया . उसने अपने ही प्रयत्न से बौस्टन में दाखिला करवा लिया . वह न्यूक्लिअर फिसिक्स पढना चाहता था . हम इस ख़ुशी में उसके जन्म दिन पर मसूरी दिखाने ले गए . साथ में निखिल भी था . वही जिसने सरदार जी का ढाबा बताया था . कैम्ती फाल देखकर बोला .कि बाप्पा ये कुछ नहीं .मै आपको नायग्रा फाल दिखलाऊँगा . बौस्टन के पास ही है . ”

एक बार फिर उनका गला भर आया . धार धार आँसुओं के बीच वह मुश्किल से बोल पाईं , ” बस उसी के बाद वह हमें सदा के लिए छोड़ गया ! ”

सुनकर मुझे लगा कि नायग्रा फाल जम गया है . उनके शब्द जड़ होकर हवा में तैर रहे हैं और मै बार बार उन्हें जोड़कर पढ़ रही हूँ . मेरे चारों ओर पानी की चौड़ी चौड़ी धाराएं विशाल हिम लम्ब बन कर लटक गयी हैं . झील का बहाव ग्लेसियर बन गया है कि लोग उसपर चल सकें . शांता बहन के दिल में पसरी मौत ने हजारों टन पानी के बहाव को स्तब्ध कर दिया . लगा कि यह लाखों किलोवाट का विद्युत् संचरण अचानक फ्यूज़ हो गया है . मेरी डबडबाई आँखों में सब डूबने उतराने लगा .

” आपको भी मैंने उदास कर दिया . — क्या करूँ . ? —- बस तभी से यह ऐसे चिड चिड़े हो गए हैं . कब इनका मानसिक संतुलन किस ओर झुकेगा , कहना कठिन है . —- हाथ में आई खुशी जितनी लुभावनी होती है ,अन्दर की व्यथा उसे उतना ही अस्वीकार करती है . इन्हें सँभालने के लिए मै स्वयं स्थिरचित्त बनी रहती हूँ . स्त्री को ही अडजस्ट करना पड़ता है . प्रेम क्या फूलों और शोखियों की मदिरा है ? नहीं , हरगिज़ नहीं .—-! प्रेम फूलों और शिलाओं का रस है !! पहले मै फूल थी और वह मेरी धरा , अब वह द्रवित हैं और मै शिला !!! ”

” आप शिला ? अभी मेरे आने से पहले —- ”

” गोविन्द था मेरे पास ”. मुँह घुमाकर दूर देखते हुए उन्होंने कहा .” लगा कि वही हमें बुलाकर यह सब दिखा रहा है . उसके दोस्त निखिल ने ही हमारा प्रोग्राम सेट किया और हमें यहाँ भेजा . मेरे पति के जन्मदिन के उपलक्ष में . उसका मानना है कि गोविन्द जो कुछ अपने जीवन में करना चाहता था वह सब हमें करना चाहिए . गोविन्द की आत्मा की शांति के लिए ही मै यहाँ आई . ”

शांता बहन का आंसू भरा चेहरा बाहर के सुन्दर वातावरण से मैच नहीं कर रहा था . उनको मै प्रसाधन कक्ष की ओर ले गयी कि पानी पीकर स्वस्थ हो सकें . कदाचित उन्हें अपने पति के साथ होना चाहिए था . इतनी बड़ी त्रासदी वह मिल जुल कर बाँट लें यही ठीक होगा . वह अभी अन्दर ही थीं .मै थक कर एक बेंच पर बैठ गयी . वहीँ कुछ शिलाओं की ओट से किसी के हिंदी में बोलने की आवाज़ आई .

” साली को हनीमून चढ़ा है इस उम्र में . फोटो खिंचा लो . —पनौती साली सब खा गयी . मेरा बेटा भी . — क्या जुबान चलाती है — सूसाइड करेगी — मर मरना है तो — खड़ी क्यों है ? कूद जा न . एक रोटी ही तो मांगता हूँ . वह भी इसे नहीं बनानी , —मुझे खाते नहीं देख सकती . — मरना था तो घर में मरती . ये नायग्रा फाल की क्या जरूरत है . ”

मैंने झाँक कर देखा तो सचमुच गोकुलदास भावे को शिलाओं के बीच छुपकर बैठे हुए पाया . कैसे दुःख इंसान को क्या से क्या बना देता है . पेटूपन ,अकेले बडबडाना , झूठा गुस्सा करके बाहरी दुनिया को नकारना आदि सब लक्षण अवसाद के मानसिक रोग के समझ आये मुझे . मैंने उनके सामने जाकर नमस्ते की तो वह वापस धरती पर उतर आये . कपड़े झाड कर उठे और खिसियाने से बोले ,”सब लोग आ गए ? चलने का समय हो गया ? ”

”नहीं अभी करीब एक घंटा और बाक़ी है . आप फाल नहीं देखेंगे ? ”

” क्या देखना है फाल में ? अपना चचाई फाल क्या कम है ? धुआंधार की शोभा क्या कम है ? यह सब ओछे लोगों के चोंचले हैं . पैसे की बरबादी . हमारे देश में क्या नहीं है ? ”/

” है तो ! पर जब आप यहाँ तक आ गए हैं तो पत्नी का साथ निभाना चाहिए . आपका जन्मदिन है . बहन ने बताया . उसी के उपलक्ष में आप लोग यहाँ आये हैं . खुशी का दिन है ! ”

” सब ख़ुशी मालिक के हाथ में है . मुझे अब केवल राम भजन करना अच्छा लगता है ”.

मैंने बच्चों की तरह उनका हाथ पकड़ कर दुलार से कहा ” आइये मेरे साथ . भगवान् का बनाया एक और करिश्मा देखिये .सब नदियाँ गंगा के समान ही पवित्र हैं . सब मनुष्यों का पोषण करती हैं . चलिए प्रणाम करिए . ” वह रुआंसे से मेरे साथ चलने लगे .सारे टेरेस का चक्कर लगाया . बोले

” बीस साल पहले हमारा जवान बेटा मर गया . उसे पेट का रोग लगा था पर वह उससे नहीं मरा . साले डाक्टर ने उसे गलत इंजेक्शन दे दिया ,जिससे ह्रदय की गति रुक गयी . तभी से मेरा मन कहीं नहीं रमता . ”

” आपसे कहीं ज्यादा दुःख तो शांता बहन को होता होगा जिसने उसे जन्म दिया . ” ” पर ये तो तगड़ी है न . सब कुछ संभाल लेती है . जरा विचलित नहीं होती . ”

” कहाँ ! आपसे आधी तो देह है उनकी . ”

” हाँ पर उसका मानसिक बल बहुत है . इच्छा शक्ति . ! ”

” फिर भी तो आप उनसे झगड़ते रहते हैं .!”

” मै नहीं . वही कोई मेरी बात नहीं मानती है . ”

” आप मानते हैं क्या ? उनके साथ आपने फाल देखा ? यहाँ आकर क्या आपको कुछ भी अच्छा नहीं लगा ?”

” लगा लगा . ” उनकी आवाज़ कुछ नरम पड़ गयी . शायद मन का तनाव कम हुआ . कहने लगे .

” झगडा बताऊँ क्या है ? मेरा मशीन के पुर्जे बनाने का कारखाना है . हम दोनों चलाते हैं . मै देस परदेस जाकर आडर लाता हूँ . यह ऑफिस संभालती है . मुझसे ज्यादा होशियार है . परन्तु मुझे अब किसी को तो बैठाना है न . लड़का तो मर गया . भाई के दो बच्चे हैं . लड़का होनहार नहीं है . बिगड़ा है बहुत . यह लड़की है . बीस सालों से यहीं रह रही है . पीछे नाइन इलेवन के बाद से , आपको तो पता ही है कि कितना डिप्रेशन आया है . इसका पति बैंक में था . बेचारा ‘ ले आफ” हो गया . मै चाहता हूँ कि उसे भारत ले जाकर जमा दूं . पर ये मना करती है . ”

 

”आपने कभी उनसे पूछा कि वह किसे देना चाहती हैं ?”

” देने की तो बात ही मत करो इस स्त्री से . कहती है कि बेटे के नाम से स्कूल खोलेगी . वह साइंस का टीचर था . उसका सारा हक़ विद्या में जाना चाहिए . —- बस ससुराल के नाम से चिढ़ जाती है . मुझे आत्महत्या की धमकी दी . पति की रोटी लुटका कर शहीद होना चाहती है . हँह ! ”

” आपको अपनी रोटी की शायद ज्यादा चिंता है . उनके मरने का गम नहीं ?”

” है ना . वह ना खिलाये तो मुझे कुछ पचता है क्या ? देखा नहीं मेरा क्या हाल हुआ ? वह मर जायेगी तब मै क्या जिन्दा रह पाऊंगा ? ”

” तब तो आपको उनकी बात मान लेनी चाहिए . ”

” कैसे मान लूं . सुनंदा भी तो मेरी बेटी है . उसका पति बेकार बैठा रहे तो क्या चैन पड़ेगा इसे ? ”

” अच्छा एक बात खूब ठन्डे दिल से सोंच कर बताइये . पिछले बीस साल में सुनंदा कितनी बार आपके पास बेलगाम आकर रही है ?”

” वह भी नौकरी करती है . तीन चार वर्ष में आ जाती है . अब बच्चे बड़े हो गए हैं . उन्हें होलीडे पर भी तो जाना होता है . इसलिए भारत कम आती है . ज्यादातर अकेली . ” वह बड़ा समझा समझा कर दलील दे रहे थे .

” गोया पिछले बीस वर्षों में बीस दिन भी वह लोग बेलगाम में नहीं रहे आकर . परन्तु वह आपकी अपनी है . और शांता बहन ? —चिर पराई . ”

वह जैसे अपने ही अखाड़े में पिछाड दिए गए थे . मेरा मुँह देखने लगे . मैंने धर लिया .

” मिस्टर भावे , मेर तेर की बहस छोड़कर जरा वास्तविकता को पढ़िए .शांता बहन पूरे उद्योग की कर्णधार है . यह अभी आपने ही बताया . जवान बेटा खोकर उनका मन तो टूट ही चुका था परन्तु उन्होंने पूरे मनोयोग से अपनी ताकत अपने बिजनस में लगा दी .आपको समझ नहीं आया कि उनके परिश्रम के पीछे उनकी प्रेरणा क्या है . ?वह स्कूल क्यों बनाना चाहती है ? क्योंकि जो स्वप्न उनके पुत्र ने देखा था उसे वे साकार करना चाहती हैं . उनमे जो आहत माँ है , जो अपने पुत्र को चिरंजीवी देखना चाहती है ,उसे नहीं देख सके आप ? —- सुनंदा शादी के बाद से यहीं बसी है . उसके दोनों बच्चे यहीं जन्मे पले , ह्रदय से अमेरिकन हैं . अभी आपने ही बतलाया कि उन्हें भारत आना अच्छा नहीं लगता . भारत के एक छोटे से शहर में वह कभी भी नहीं रम पायेंगे . दूसरे उसका पति . वह क्या आपके खून का रिश्ता है ?सब ले दे कर वापिस यहीं लौट आयेगा . आज नहीं तो कल उसे दूसरी नौकरी तो मिल ही जायेगी . बड़ी बात यह है कि आप पुरानी चाल के विचार रखते हैं . खून पानी से ज्यादा गाढ़ा होता है . पतिभक्ति का कोई मूल्य नहीं ? इसका मतलब आप उनसे प्रेम नहीं करते ! ”

मेरी बात स्विच पर उंगली की तरह पड़ी .वह चौंक कर बोले ,” है , है ना ! ” हडबडा कर चारों ओर देखा . शांता बहन कहीं नज़र नहीं आई . घबराकर चीखे

” शांता ,शांता . — आपने कहीं देखा क्या उसे ?– कहती थी यहीं कूदकर जान दे देगी . बहुत पक्की है अपनी बात की . –अरे ढूँढो उसे ,जल्दी करो !—”

इधर से उधर भागने में गोकुलदास पसीना पसीना हो गए . सहसा उनकी नज़र टॉयलेट से बाहर आती पत्नी पर पड़ी . वह बिना हमारी ओर देखे , तीर से उस ओर भागे . उनका हाथ अपने हाथ में पकड़ कर बोले ” चलो हम लोग मोटरबोट में बैठकर नायग्रा फाल में नहायेंगे . यह भी गंगा स्नान जैसा ही है . ”

-कादंबरी मेहरा


प्रकाशित कृतियाँ: कुछ जग की …. (कहानी संग्रह ) स्टार पब्लिकेशन दिल्ली

                          पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) सामयिक पब्लिकेशन दिल्ली

                          रंगों के उस पार (कहानी संग्रह ) मनसा प्रकाशन लखनऊ

सम्मान: भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान २००९ हिंदी संस्थान लखनऊ

             पद्मानंद साहित्य सम्मान २०१० कथा यूं के

             एक्सेल्नेट सम्मान कानपूर २००५

             अखिल भारत वैचारिक क्रांति मंच २०११ लखनऊ

             ” पथ के फूल ” म० सायाजी युनिवेर्सिटी वड़ोदरा गुजरात द्वारा एम् ० ए० हिंदी के पाठ्यक्रम में निर्धारित

संपर्क: यु के

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