एक दिन सुबह सवेरे
एक प्यारी सी नन्ही सी
चिड़िया आ गयी
घर के अन्दर|
लाख कोशिश की
बाहर निकल जाये
नहीं मानी|
ड्राइंग रूम किचन
बैडरूम बरामदा
सारा घर घूम आयी
चहकती हुई
छोटी बच्ची की तरह|
थक कर बैठ गयी
सीड़ियों पर
शायद भूख प्यास के मारे|
झट पट खा गयी
सीड़ी पर रखा दाना पानी
फिर थोड़ी देर
बैठी रही
देखती रही घर की एक एक चीज़|
एकाएक दरवाजे से बाहर
उड़ गयी फुर्र करके|
मुझे लगा
शायद वो माँ थी
मुझे पता है
माँ चाहती थी
मेरा अपना घर
नाती पोते
चली गयी असमय
शायद
वो चिड़िया माँ थी मेरी
देखने आयी थी
मेरा घर मेरे बच्चे|
- पंकज भाटिया ‘कमल’
शिक्षा: एम् एस सी (भौतिकी), एम् बी ए
व्यवसाय: मुंबई में मल्टी नेशनल आई टी कंपनी में सेल्स मेनेजर
लेखन संप्रति : स्वतन्त्र लेखन
लेखन विधा: छंदमुक्त कविता, आलेख, निबन्ध आदि
पिछले चौदह वर्षों से विभिन्न हिंदी एवं अंगेजी पत्र पत्रिकाओं में सम सामयिक विषयों पर आलेख प्रकाशित
प्रथम कविता संग्रह शीघ्र प्रकाशन के लिए तैयार