चंट चूहा और सीधा-सादा साँप

एक बार एक साँप और चूहे में इस बात को लेकर बहस छिड़ गई कि उन दोनों में से कौन ऐसा है जो आदमी के लिए ज्यादा ख़तरनाक साबित हो सकता है। चूहा अपने बारे में बढ़ चढ़कर बता रहा था और साँप अपने बारे में। सच तो यह था कि साँप न तो अधिक ज़हरीला था और न ही चालाक, पर चूहा पूरा चंट था। जब दोनों के बीच होने वाली बहस का बहुत देर तक कोई नतीजा नहीं निकला तो चूहे ने साँप के सामने एक सुझाव रखा।
चूहा बोला ‘हम दोनों ऐसा करते हैं कि किसी आदमी के पास चलते हैं। वहां पहले तुम उस आदमी को चुपके से काटकर छिप जाना ताकि वह तुम्हें देख न पाये और इसी बीच मैं उसके सामने से होशियारी के साथ भागता हुआ निकल जाऊंगा। फिर थोड़ी देर में दूसरी बार मैं उसे चुपचाप काटूंगा और तुम उसके सामने से सावधानीपूर्वक गुज़र जाना। फिर देखेंगे क्या होता है ? किसके काटने का असर आदमी के ऊपर कितना होता है ?’
साँप मान गया। वह तो यही समझता था कि साँप की बिरादरी में पैदा होने का मतलब ही है जहरीला होना और यह सिर्फ उसके ज़हर का ही असर होता है जिससे आदमी मर जाता है पर चंट चूहा असलियत जानता था। दोनों ने वही किया जो तय हुआ था। साँप के काटने पर जब आदमी ने इधर-उधर देखा तो उसे एक चूहा भागता नज़र आया। वह बेफिक्र हो गया। सोचा चलो चूहा ही तो था और वाकई उसे कुछ नहीं हुआ क्योंकि साँप तो जहरीला था ही नहीं। परन्तु दूसरी बार जब चूहे ने काटा और आदमी ने साँप को वहां से भागते देखा तो उसके होश उड़ गये। उसने समझा कि साँप ने उसे डस लिया है और बस इसी दहशत में वह मर गया।
यह देखकर चूहा साँप से बोला ‘देखी मेरी ताकत ! तुम्हारे डसने पर जिसे कुछ भी नहीं हुआ, वह मेरे काटते ही लुढ़क गया। सांप बेचारा सीधा-सादा तो था ही, उसे लगा चूहा सच ही कह रहा है।         यह तो हुई कहानी की बात जिसमें चंट चूहे ने अपनी बुद्धि से काम लेकर यह दिखा दिया कि वह आदमी के लिए साँप से ज्यादा ख़तरनाक है, पर वास्तव में तो बात कुछ और ही थी। आदमी की मौत किसी तरह के ज़हर के प्रभाव से तो हुई ही नहीं थी। वह तो मरा था सिर्फ़ इस दहशत से कि साँप ने उसे काट खाया है जबकि वास्तव में उस बार चूहे ने उसे काटा था।
अक्सर होता भी यही है। सच है कि साँप के काटने से उतने लोग नहीं मरते जितने सिर्फ़ दहशत के कारण मर जाते हैं क्योंकि सारे साँप इतने ज़हरीले होते ही नहीं जिनके काटने पर आदमी की मौत हो जाये। वास्तविकता तो यह है कि ढ़ाई हजा़र से ऊपर की किस्म वाले साँपों के परिवार में ऐसे सदस्य तो ढ़ाई सौ भी नहीं मिलेंगे जो ज़हरीले हों और फिर इन ज़हरीले सदस्यों में केवल कुछ ही किस्मों में इतना ज़हर होता है जिनके काटने से आदमी की मौत हो सके।
कितने आश्चर्य की बात है कि अपने सिर्फ कुछ इने गिने किस्म के ज़हरीले सदस्यों के कारण सर्पों का पूरा कुनबा ही अपने घातक ज़हर के लिये बदनाम है और यही भ्रम हर साल हजारों अबोध इंसानों की अकाल मृत्यु का कारण बन जाता है। इतना ही नहीं इसी अज्ञानता के चलते इस जीव के कुनबे की उन विषरहित किस्मों तक को भी इंसान की लाठियों का शिकार बनना पड़ता है जो अन्यथा खेतों-खलिहानों से हर वर्ष हजारों क्विंटल अनाज की तबाही कर देने वाले चूहे जैसे जीव का खात्मा कर हमारे लिये एक फायदेमंद दोस्त की भूमिका अदा करते हैं। दोस्त और दुश्मन के बीच अन्तर न पहचान पाने का हमारा यह अवगुण हमारे लिये कितना महंगा पड़ता है, इसे समझना भला आसान है क्या ?
 

 

- आइवर यूशियल 

आइवर यूशियल उर्फ़ रवि लैटू उत्तर प्रदेश के पवित्र शहर इलाहबाद में १० अगस्त १९४७ को जन्मे। इलाहबाद शहर ने दुनिआ को एक से बढ़ कर एक बुद्धिजीवियों, राजनेताओं और रचनात्मक व्यक्तित्व के धनी लोग दिए हैं। भारतीय परिवार की परंपराओं को बनाए रखते हुए,आइवर ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की लेकिन तकनीकी क्षेत्र छोड़ रचनात्मक लेखन की आकर्षक दुनिया में कार्यरत रहे।  बच्चों के बीच विज्ञान लोकप्रियकरण के महत्वपूर्ण कार्य की शुरुआत सन् १९८१  से और तब से अब तक इससे संबंधित विषय पर देश के प्रतिष्ठित प्रकाशकों द्वारा ( विभिन्न देशी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद के अतिरिक्त ) ७५ से ऊपर ज्ञानवर्धक एवं मनोरंजक पुस्तकें और समाचारपत्रों एवम् बाल-पत्रिकाओं में हजारों की संख्या में स्वनिर्मित चित्रों के साथ ज्ञान-विज्ञान आधारित रोचक लेख प्रकाशित किये l 

 

लेखक के रूप में

 

विशेष कार्य: बच्चों के बीच विज्ञान के लोकप्रियीकरण.

 

सिद्धांत: नई पीढ़ी में पढ़ने की आदत और किताबों के लिए गहरे प्रेम को बनाना

 

लेखन शैली: युवा पाठक को ज्ञान हस्तांतरित करने के लिए मीठे शब्दों का उपयोग जिससे पाठक इसे मृदू भावना से समझ सकें

 

अवधारणा: विज्ञान और गणित केवल विषय नहीं हैं ये वास्तव में हैं हमारे जीवन के आवश्यक हिस्से इसलिए दोनों को  एक बहुत ही रोचकमनोरंजक और व्यावहारिक उदाहरण देते हुए सरल तरीके से पढ़ाना चाहिए

 

इच्छा: यदि प्रत्येक इलाके में नहीं तो प्रत्येक शहर में कम से कम एक मनोरंजन केंद्र‘ बनें जहां बच्चे उनकी रचनात्मक प्यास बुझो

 

उम्मीद: ऐसे अवसरों की तलाश में जिसके माध्यम से युवा पीढ़ी के लिए न केवल लेखन और चित्रण बल्कि अन्य माध्यम-जैसे ऑडियो-वीडियो के साथ भी अधिक से अधिक ज्ञान प्रदान किया किया जा सके

 

अनुभव: बच्चों की पहली हिंदी साप्ताहिक पत्रिका एजेंसी “ग्यासिम” के लगभग एक दशक के लिए संपादक रहे

 

सपना: बहुत ही कम कीमत पर किशोरों के लिए एक अच्छी रूप-रेखा वाली और पूरी तरह से सचित्र विज्ञान पत्रिका प्रकाशित करना

 

उपलब्धि: देश भर से बच्चों के ६०००० अधिक प्रशंसक ई-मेल 

 

पुरस्कार : दिलचस्प हैअभी तक एक भी नहीं

 

इन ७१ हिंदी और अंग्रेजी पुस्तकों में से में कुछ का अनुवाद तेलगुबंगालीअसमिया और कन्नड़ किया गया है। इन प्रकाशनों के अलावाप्रतिष्ठित पत्रिकाओं और बच्चों के पत्रिकाओं में हजारों लेखों छपे हैं।

 

 

एक कलाकार के रूप में

 

नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में कई सालों से लगातार भारतीय मंडप का अंदरूनी रूप-रेखा तैयार किया,

 प्रकाशनों और पत्रिकाओं के लिए चित्रणआवरण रूप-रेखा और ख़ाका तैयार किया,

 रक्षा सेवा के लिए विशेष रूप से ट्राफियांकपस्मृति चिन्ह और स्मृति चिन्ह की डिजाइनिंग

और एन सी ई आर टीनई दिल्ली के लिए “बाल साहित्य पुष्कर” १९९७ की रूप-रेखा बनाना,

 बधाई पत्रक की रूप-रेखा बनाया और आवश्यकता अनुसार निर्यात के लिए हाथ चित्रित पत्रक बनाया,

 एक पूर्ण दशक के लिए बाटिक माध्यम के साथ काम किया और प्रयोग किया।

कई प्रदर्शनियों में अपने चित्रों के साथ भाग लिया १९७७ में त्रिवेणी गैलरीनई दिल्ली में प्रथम एक आदमी का प्रदर्शनी का आयोजन किया।

 वर्ष १९७६ और ७७ मेंन्यू यॉर्क वर्ल्ड ट्रेड फेयर में, “डी.एस.आई.डी.सी.नई दिल्ली” की तरफ से भारतीय पारंपरिक कला बाटिक पेंटिंग्स का प्रतिनिधित्व किया   

 

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