घर की यादों छोड़ो दामन
आओ ना यूं मन के आंगन।
द्वार पे मन के कपाट नही हैं।
मन चंचल फिरता है मेरा
जाने कब अंधेरी शाम का
होगा कब वो श्वेत सवेरा
आयेगा कब यादों में मधुबन
देगा खुशियों का वामन
घर की यादों छोड़ो दामन।
सुरभरी मदभरी आंखें जिसकी
नशा भर देगी जीवन में
सोया रहूंगा जिन्दगी भर मैं
उस साथी की बाहों में
जो होगी सुख-दुख की साथी
जो होगी निर्झर सावन,
घर की यादों छोड़ो दामन।
आंचल जिसका होगा रेशमी
और श्वेत कंपित तन
आंखें दोनों होंगी नीली
और होगा उज्जवल मन
लेकर आयेगी वो सभी बहारें
और लायेगी वो श्रावन
घर की यादों छोड़ो दामन।
आओ ना यूं मन के आंगन।
- नवल पाल
कंप्यूटर ऑपरेटर ,
झज्जर , भारत