ग्राम्य-किशोरी

भोलापन है
एक अजीब सी लय है
उसकी आँखों में

एक खुशबु,जो खींच लेती है
एक चुम्बकीय आकर्षण
उसके नैसर्गिक सौन्दर्य में

रजस्वला होने का अर्थ
जानने लगी है वो
उसका बचपन अंगड़ाई ले के
विदा हो रहा हौले-हौले

अपने कैशोर्य और कौमार्य के
ओज से अनजान / वो अरण्य की
एक चंचल हिरणी
चौकड़ी भरती मदमस्त/अल्हड़ अठखेलियां
किसी अनजान आहट के पाते ही
चौकन्नी हो जाती
सिर्फ अपने लिए ही है उसका अनगढ़ श्रृंगार
.वो नही जानती संवरना/किसी और के
लिये भी हुआ करता है

दमकता है/लौंग का नगीना
मचलता है कण्ठहार…
.और वो झूम-झूम जाती
आँखों में तैरते सपने/मानों
ओस की बूंदों से चमकते
वो नही जानती पोज बनाना
उसे किसी कैनवास में सिमटने के लिए
थोड़े ही न गढ़ा है/कुदरत ने
किसी कूची के बस में नही/उसे उकेरना
वो पढ़ नहीं /जी रही है ज़िन्दगी का सबक
वन्य प्राणियों/ लताओं डालियों और बालियों से
और हर इम्तेहान में/उतर रही है खरी
देखना एक दिन/ये जंगल ये ज़मीन/ ये पहाड़
और दूधिया नदियाँ उसे
उतारेंगी मैदान में
तुम्हारे खदबदाते बासे शहर के मुक़ाबले
…..और वो अपने साफ़-शफ्फाक वज़ूद से
मिटा देगी अँधेरे का रेशा रेशा
जी उट्ठेगा तुम्हारा शहर
…. उसकी रोशनी का एक कतरा लेके
उम्र भर के लिए !

 
- आरती तिवारी

जन्मतिथि- 08 जनवरी
शिक्षा- एम. ए., बी. एड.
सम्प्रति- पूर्व अध्यापिका केन्द्रीय विद्यालय पचमढ़ी
प्रकाशन- नई दुनिया, दैनिक भास्कर जैसे प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्रों में कविताएँ/आलेख व पत्र प्रकाशित
साहित्य सरस्वती, वीणा सृजन की आंच, शब्द प्रवाह, हस्ताक्षर जैसी कई साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित

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