ओ साँच पथिक! मुस्काके चल
बस अपने पाँव जमाके चल
यह माना धूप करारी है
अभी ऋतु (रितु)चक्र भ्रमकारी है
हैं दिवस अभी कुछ भारी से
और रात अधिक अँधियारी है
पर,इनसे आँख मिलाके चल
बस अपने पाँव जमाके चल
इक इक पड़ाव जब बीतेगा
हर मोड़ से तू कुछ सीखेगा
पायेगा क्षितिज तूं अंतत:
इक जुगनू तम से जीतेगा
खुद को मनधीर बनाके चल
बस अपने पाँव जमाके चल
आने वाला कल जो बाँचे
तेरे शब्दों को जब जाँचे
ढल जाये वो तुझमें ऐसा
गढ़ देना कुछ ऐसे साँचे
अपने पद चिह्न बनाके चल
बस अपने पाँव जमाके चल
है इस जीवन का सार यही
आना-जाना संसार यही
मोह के धागों के बंधन सब
हाँ नाते-रिश्तेदार यही
सब फूल शूल अपनाके चल
बस अपने पाँव जमाके चल
- परमजीत कौर ‘रीत’
पिता - श्री हरनेक सिंह
माता - श्री मती मनजीतकौर
जन्म - १५ नवंबर
जन्मस्थान- श्री मुक्तसर साहिब(पंजाब)
शिक्षा - एम.ए. बी.एड
साहित्य सृजन - कतिपय विभिन्न संकलनों( कुंडलिया संचयन,२१वीं सदी के श्रेष्ठ कवि एवं कवियत्रियाँ, श्रेष्ठ काव्य प्रभा,हरीगंधा का छंद विशेषांक,शोधदिशा का दोहा विशेषांक एवं वेब पत्रिका अनुभूति )में प्रकाशित रचनाएं,,
सम्प्रति - अध्यापन एवं लेखन
पता - होमलैंड सिटी , श्री गंगानगर(राजस्थान)