गीतिका – डॉ शिप्रा शिल्पी

पीड़ा से इक आँसू फूटा
दिल जाने कब कैसे टूटा
मन की पीड़ा मन में चुभती
अपना बन अपनों ने लूटा
नासमझे तुम विधि का लेखा
अपनों से जब नाता छूटा
पौधा रोपा नागफनी का
फूलो का खिलना है झूठा
जैसी करनी वैसी भरनी
मिलता फल तो क्यों है रूठा
फूलों को जो बोया होता
खिल जाता हर बूटा बूटा …………..

 

 

- डॉ शिप्रा शिल्पी

जन्मतिथि और स्थान -१४ दिसम्बर , बहराइच [उत्तरप्रदेश]

वर्तमान निवास : कोलोन ,जर्मनी

शिक्षा -  एम.ए ,एल.एल.बी, पीएच.डी [हिन्दी साहित्य ,इलक्ट्रोनिकमीडिया ]

रंगमंच ,मीडिया लेखन ,डेक्स टॉप पब्लिशिग में डिप्लोमा

कार्यअनुभव :

……………..: पूर्व  लेक्चरर, स्नातकोत्तर महाविद्यालय

……………..: लखनऊ दूरदर्शन में संचालक ,पटकथा लेखन , वृतचित्र निर्माण,साक्षात्कार             विज्ञापन एवं कुकीज लेखन

…………….: राष्ट्रीय फीचर्स नेटवर्क द्वारा चित्रकथाओ एवं आवरण पृष्ठों का रेखांकन लेखन की सभी विधाओं ,भारतीय पारंपरिक नृत्य एवं चित्रकला में अभिरुचि

उपलब्धियाँ…१- ‘साहित्यगौरव’ एवं उत्तर प्रदेश सांस्कृतिक विभाग द्वारा “युवासम्मान” आदि कई सम्मानोँ से सम्मानित

२- देश-विदेश की अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओँ मेँ रचनाओँ का निरन्तर  प्रकाशन

३- कई साझा संग्रहोँ मेँ रचनाएँ प्रकाशित

सम्पादन- अक्षरबंजारे, मीठी सी तल्खियां ,मोँगरे के फूल (साझा काव्य संग्रह)  (प्रकाशाधीन)

सम्प्रति …..: वर्तमान में जर्मनी के कोलोन शहर में हिन्दी क्लब द्वारा हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में सक्रिय सहभागिता

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