ग़ज़ल : सुशील ‘साहिल’

 

१.

कोई दूजा नहीं बस एक वो ही याद करती है

मुझे अब भी दिले-बीमार पगली याद करती है

 

नहीं है माँ, तो क्या मैं तोड़ डालूँ गाँव से रिश्ता

वो टूटी झोपड़ी में अब भी मौसी याद करती है

 

किसे मतलब है मेरी हिचकियों से इस ज़माने में

मुझे तो इक वही आंगन की तुलसी याद करती है

 

जिसे सुनता सुनाता है नहीं रातों को अब कोई

मुझे नानी की वो लम्बी कहानी याद करती है

 

परीशां हाल जिसको छोड़कर हम गाँव से निकले

सुना है अब भी वो ढलती जवानी याद करती है

 

२.
किसी की अधखिली अल्हड़ जवानी याद आती है

मुझे उस दौर की इक-इक कहानी याद आती है

 

जिसे मैं टुकड़ा-टुकड़ा करके दरिया में बहा आया

लहू से लिक्खी वो चिठ्ठी पुरानी याद आती है

 

मैं जिससे हार जाता था लगाकर रोज़ ही बाज़ी

वही कमअक्ल, पगली, इक दीवानी याद आती है

 

जो गुल बूटे बने रूमाल पे उस दस्ते नाज़ुक से

कशीदाकारी की वो इक निशानी याद आती है

 

जो गेसू से फ़िसलकर मेरे पहलू में चली आई

वो ख़ुशबू से मोअत्तर रातरानी याद आती है

 

 

- सुशील ‘साहिल’

जन्म : सुपौल ज़िला (बिहार )

शिक्षा : १. इंजीनियरिंग की डिग्री ( यांत्रिक), एम. आई. टी. मुज़फ्फ़रपुर

२. संगीत प्रभाकर , प्रयाग संगीत समीति इलाहबाद

३. संगीत विशारद , प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़

पेशा : प्रबन्धक(उत्खनन), इस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड, ललमटिया, गोड्डा-(झारखण्ड)

वर्तमान पता : जिला : गोड्डा , झारखण्ड , पिन : 814154

साहित्यिक/सांस्कृतिक गतिविधियाँ/उपलब्धियाँ:

- अखिल भारतीय स्तर पर विभिन्न मंचों से ग़ज़लों की प्रस्तुति

- सुगम संगीत एवं लोकगीत में आकाशवाणी का अनुबंधित कलाकार

- आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से कविताओं / ग़ज़लों का अनेकों प्रसारण

- हिंदी एवं उर्दू के प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में ग़ज़लों का प्रकाशन

सम्मान : 1. राजभाषा प्रेरक सम्मान वर्ष2011, गुरुकुल कांगड़ी
विश्वविद्यालय हरिद्वार 2. काव्यपाठ के लिए वर्ष 1912 में नागार्जुन
सम्मान (खगड़िया, बिहार ) एवं 3. कवि मथुरा प्रसाद ‘गुंजन’ सम्मान वर्ष
1912(मुंगेर बिहार ). 4 विद्यावाचस्पति सम्मान, विक्रमशिला
विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार, वर्ष 2013.

पुस्तक : ‘गुलेल’ ( ग़ज़ल संग्रह ) जिसका विमोचन श्रीलंका के कैंडी शहर
में 19.01.2014 को तथा विश्वपुस्तक मेला प्रगति मैदान दिल्ली में 23.
03.2014 को सम्पन्न हुआ

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