ग़ज़ल: रघुनन्दन प्रसाद

 

चूड़ियाँ स्वागतम् गुनगुनाने लगी।
उर्मिला सी प्रिया खिखिलाने लगी।।
हद से आएंगे प्रियतम जब से सूना
हाथ मेंहदी से अपने सजाने लगी।।
ज़ुस्तजू है तमन्ना हैं अरमान भी
अश्क आँखों के प्रेयसी सुखाने लगी।।
अधरों पर हँसी गम कह न सकी
तन्हां रातें निगोड़ी सताने लगी।।
पिय के वाडे जिए वो आये नहीं
पीर विरही हिया को सताने लगी।।
तुम सुहागन सदा मैं रहूँ या न रहूँ
दैन्य वाणी ‘प्रखर’हो सुनाने लगी।।

 

- डॉ0 रघुनन्दन प्रसाद दीक्षित ‘प्रखर’

जन्म : 5 जून को जनपद फर्रूखाबाद (उ.प्र.)
शिक्षा : स्नातक

रचना कर्म : सीमा से आंगन तक (सैन्य जीवन पर आधारित काव्य संग्रह), अन्तिम
आग, राहे (काव्य)

प्रकाशन एवं प्रसारण : आकाशवाणी तवांग (अरूणाचल प्रदेश), जैन टीवी से
भेटवार्ता, आलेख तथा काव्य पाठ का प्रसारण, देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं
में आलेख, रचनाओं तथा समायिकी का सतत् प्रकाशन।

सम्मान : महादेवी वर्मा सम्मान (फर्रूखाबाद महोत्सव 2010) शारदा साहित्य
सम्मान (शारदा सहित्य मंच राजस्थान)

व्यवसाय : तीस वर्ष की सैन्य सेवा मे सूबेदार मेजर के पद से सेवा निवृत

सम्प्रति : सेवा निवृत के उपरान्त साहित्य सृजन में संलग्न


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