डरते थे सुनकर जैसे सब, गब्बर सिंह का नाम
छाया है जग में वैसे ही, मंदी का कोहराम
मंदी का कोहराम, मैनेजर हैं धमकाते
हाइक पूछो, तो फायरिंग के फ़िगर दिखाते
धुक धुक करके सबकी नैया खिसक रही है
करियर की गाड़ी धन्नो सी बिदक रही है
कैबिन में बैठे गब्बर सा रौब जमाते
और बसंती समझ काँच पर नाच नचाते
वीकेंड भी अब ऑफिस में ही मना रहे हैं
आईटी में आने की कीमत चुका रहे हैं
फिल्म की इच्छा कोने में कहीं सिसक रही है
करियर की गाड़ी धन्नो सी बिदक रही है
यह मंदी तो चौके छकके छुड़ा रही है
ट्रेनी से डाइरेक्टर सबको नचा रही है
मम्मी पापा को जो घर पर आँख दिखाते
बड़े प्यार से ऑफिस में सर से बतियाते
यस सर यस सर करके सबकी निपट रही है
करियर की गाड़ी धन्नो सी बिदक रही है
जैसे तैसे रोज नौकरी बचा रहे हैं
जिम जाने की इच्छा मन में दबा रहे हैं
मैनेजर से पहले आकर देर में जाते
काम में पगलेट हो गए हों ऐसा दर्शाते
हंसी आ गयी तो वो सबको खटक रही है
करियर की गाड़ी धन्नो सी बिदक रही है
-नीरज त्रिपाठी
शिक्षा- एम. सी. ए.
कार्यक्षेत्र – हिंदी और अंग्रेजी में स्कूली दिनों से लिखते रहे हैं | साथ ही परिवार और दोस्तों के जमघट में कवितायेँ पढ़ते रहे हैं |
खाली समय में कवितायेँ लिखना व अध्यात्मिक पुस्तके पढ़ना प्रिय है |
प्रतिदिन प्राणायाम का अभ्यास करते हैं और जीवन का एकमात्र लक्ष्य खुश रहना और लोगों में खुशियाँ फैलाना है |
कार्यस्थल – माइक्रोसॉफ्ट, हैदराबाद