क्षणिकाएं

ना गंगोत्री
ना गोमुख
अब मेरा पता
वृद्धआश्रम

-०-

अब दिखते नहीं
बस्तियों के प्रतिबिम्ब मुझमे
जल का दर्पण
मैला जो हुआ

-०-

जलने लगी हैं
अब आँखें मेरी
शायद
चुभी है इनमे
तुम्हारे पापों की किरचें
-०-

अपनी लहरों के जख्म
सीते हुए
साँझ हुई
पर ज़ख्म है की
भरता ही नहीं

-०-

उठ रहा है
मेरे तट से धुवाँ
आज फिर
किसी घर में
मातम हुआ होगा

-०-

-०-
अंग्रेजी के जूते तले
कुचले गए
चप्पल में फसे
हिन्दी के पाँव
अंग्रेजी ने किया
विजय का अट्टहास
हिंदी मुस्कुराई
बोली
कुचल सकते हो
पर कर सकते नहीं
मेरा समूल नाश
मै दूब हूँ

-०-

स्नेह शब्दों से
जब छलकते हैं नयन
आँसूं मोती बन
लुढ़क जाता है हथेली पर
तब किसी अपने का आशीष
रुमाल बन
समेत लेता है उनको
सौपता है मुस्कान का फूल
हथेली को
और महकने लगता है
आने वाला हर वर्ष

 

-रचना श्रीवास्तव

प्रकाशित कृतियाँ: विभिन्न संग्रहों में कहानियाँ ,कवितायेँ ,हाइकु ,कहानियां ,लघुकथाएं ,प्रकाशित , भारत और अमेरिका के विभिन पत्र पत्रिकाओं में निरन्तर लेखन

सम्मान: हिन्द युग्म यूनीकवि सम्मान, कथा महोत्सव (अभिव्यक्ति )में कहानी को सम्मान

सम्प्रति: स्वतन्त्र पत्रकारिता

संपर्क: अमेरिका

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