१
वो बुज़ुर्ग है !
नहीं……,
उसकी छत्र-छाया में
बैठो तो सही
आज के तूफानों से बचाने वाला
वो ही तो
मज़बूत दुर्ग है ।
२
कुछ !रिश्ते
कितने आम हो गए !
बस हस्ताक्षर से ही.…
तमाम हो गए !
३
महानगर की
वो छोटी- सी लड़की
पता भी न चला.…
जाने कब
बड़ी हो गई ?
किसी विरोध में
भीड़ के साथ
वो भी खड़ी हो गई !
- ज्योत्स्ना प्रदीप
शिक्षा : एम.ए (अंग्रेज़ी),बी.एड.
लेखन विधाएँ : कविता, गीत, ग़ज़ल, बालगीत, क्षणिकाएँ, हाइकु, तांका, सेदोका, चोका, माहिया और लेख।
सहयोगी संकलन : आखर-आखर गंध (काव्य संकलन)
उर्वरा (हाइकु संकलन)
पंचपर्णा-3 (काव्य संकलन)
हिन्दी हाइकु प्रकृति-काव्यकोश
प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन जैसे कादम्बिनी, अभिनव-इमरोज, उदंती, अविराम साहित्यिकी, सुखी-समृद्ध परिवार, हिन्दी चेतना ,साहित्यकलश आदि।
प्रसारण : जालंधर दूरदर्शन से कविता पाठ।
संप्रति : साहित्य-साधना मे रत।