०१ -कसौटी
ये रात की
कैसी कसौटी है?
एक तो बिन चाँद के…
उस पर
आँसुओं में नहाकर
लौटी है!!!
ये रात की
कैसी कसौटी है?
एक तो बिन चाँद के…
उस पर
आँसुओं में नहाकर
लौटी है!!!
०२ -बदलाव
वो दरख्त
धीरे धीरे
ठूँठ में बदल गया
शायद
उसे भी कोई
छल गया!!
वो दरख्त
धीरे धीरे
ठूँठ में बदल गया
शायद
उसे भी कोई
छल गया!!
०३ -अहसान
ये अहसान
क्या कम है?
आज भी ….
उसकी बाज़ू
मेरे ही आँसुओं से
नम है!!
ये अहसान
क्या कम है?
आज भी ….
उसकी बाज़ू
मेरे ही आँसुओं से
नम है!!
04 -ताबीज़
उसनें खरीद लिया था
एक तावीज़ की तरह उसे
एक धागे के साथ
गले में बाँधे भी रक्खा
पर…..
कुछ मुरादें
पूरी होनें के बाद
सजा दिया
किसी कमरे के आले में
उसी एक धागे के साथ!!!
उसनें खरीद लिया था
एक तावीज़ की तरह उसे
एक धागे के साथ
गले में बाँधे भी रक्खा
पर…..
कुछ मुरादें
पूरी होनें के बाद
सजा दिया
किसी कमरे के आले में
उसी एक धागे के साथ!!!
०५ – बंदी
सपनें बंदी थे
आँखों की काली कारा में
भाग ही निकले
अपनें भाग का
भाग माँगनें!!
सपनें बंदी थे
आँखों की काली कारा में
भाग ही निकले
अपनें भाग का
भाग माँगनें!!
०६ – तार -तार सपनें
उसनें
सारी हदों को पार किया
उस मासूम का
हर सपना
भरे बाज़ार
तार- तार किया!!
उसनें
सारी हदों को पार किया
उस मासूम का
हर सपना
भरे बाज़ार
तार- तार किया!!
०७ -अँधेरे की औकात
अँधेरे नें…धोखे से
भोली साँझ को
रात में तब्दील किया.
पर …
चाँद को देख..
खुश थी रात
जान चुकी थी वो
अँधेरे की औकात!!!
अँधेरे नें…धोखे से
भोली साँझ को
रात में तब्दील किया.
पर …
चाँद को देख..
खुश थी रात
जान चुकी थी वो
अँधेरे की औकात!!!
०८ -लहूलुहान सूरज !!!
स्याह पड़ रहा था
नीले आसमान का चेहरा
शाम भी हैरान
सूरज
गिर रहा था
सागर से पिता की गोद में
होकर लहूलुहान !!!
स्याह पड़ रहा था
नीले आसमान का चेहरा
शाम भी हैरान
सूरज
गिर रहा था
सागर से पिता की गोद में
होकर लहूलुहान !!!
०९ – सौभाग्य
पलाश !
ये तेरा सौभाग्य
जो योगी सा तू
..वन में है रहता,
नगर में होता
तो जानें ….
क्या -क्या सहता !!!
पलाश !
ये तेरा सौभाग्य
जो योगी सा तू
..वन में है रहता,
नगर में होता
तो जानें ….
क्या -क्या सहता !!!
१० -दर्द
मन नें जब
तन्हा सफ़र
समेटा था
आँसुओं में भीगे
रात से काले गेसू
हैरान थे …
हर रात साथ उसके जब
दर्द लेटा था ।
मन नें जब
तन्हा सफ़र
समेटा था
आँसुओं में भीगे
रात से काले गेसू
हैरान थे …
हर रात साथ उसके जब
दर्द लेटा था ।
११ -
उस बच्ची की
मासूम समझ ा
जानें क्या भाँप गई
किसी पेड़ की पत्ती के
स्पर्श से भी
वो काँप गई !!
उस बच्ची की
मासूम समझ ा
जानें क्या भाँप गई
किसी पेड़ की पत्ती के
स्पर्श से भी
वो काँप गई !!
१२ – इश्क़
वो नदी
कितनी मासूम ..
प्यारी !
सागर के इश्क़
में डूबकर
हो गई खारी !!
वो नदी
कितनी मासूम ..
प्यारी !
सागर के इश्क़
में डूबकर
हो गई खारी !!
१३ – घाव एक शब्द का हमारे अपने ही…
एक शब्द से भी,
घाव दे जाते है।
उन्हे पता भी नहीं ,
वो जन्मों का अलगाव दे जाते है।
एक शब्द से भी,
घाव दे जाते है।
उन्हे पता भी नहीं ,
वो जन्मों का अलगाव दे जाते है।
१४ -अन्तर
नागफनी..
काँटों से भरी …पर सीधी,
उसे छूने से हर कोई कतराता है।
वो छुई -मुई….
हया से सिमटी,
तभी तो ,जो चाहे उसे
यूँ ही छू जाता है।
नागफनी..
काँटों से भरी …पर सीधी,
उसे छूने से हर कोई कतराता है।
वो छुई -मुई….
हया से सिमटी,
तभी तो ,जो चाहे उसे
यूँ ही छू जाता है।
१५ – संवेदना
काँटों में भ़ी है संवेदना
छू न लेना ,
रक्त बहा देंगे।
आता है इन्हें भी …
तेरा जिस्म भेदना।
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काँटों में भ़ी है संवेदना
छू न लेना ,
रक्त बहा देंगे।
आता है इन्हें भी …
तेरा जिस्म भेदना।
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- ज्योत्स्ना प्रदीप
शिक्षा : एम.ए (अंग्रेज़ी),बी.एड.
लेखन विधाएँ : कविता, गीत, ग़ज़ल, बालगीत, क्षणिकाएँ, हाइकु, तांका, सेदोका, चोका, माहिया और लेख।
सहयोगी संकलन : आखर-आखर गंध (काव्य संकलन)
उर्वरा (हाइकु संकलन)
पंचपर्णा-3 (काव्य संकलन)
हिन्दी हाइकु प्रकृति-काव्यकोश
प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन जैसे कादम्बिनी, अभिनव-इमरोज, उदंती, अविराम साहित्यिकी, सुखी-समृद्ध परिवार, हिन्दी चेतना ,साहित्यकलश आदि।
प्रसारण : जालंधर दूरदर्शन से कविता पाठ।
संप्रति : साहित्य-साधना मे रत।