आख़िर भारत की आजादी के छह दशक से भी ज्यादा अर्से के बाद भी क्यों भारतीय दीक्षांत समारोहों में ब्रिटिश राज की रंगीन चोगे (गाउन) व टोपी (कैप) पहनते हैं?
यह दुख का विषय है कि आज भी हम उस पश्चिमी शिक्षा से वशीभूत हो सही और गलत का आंकलन ठीक तरह से नहीं कर पा रहे हैं। हमारे देश में आज भी वही व्यवस्था चल रही है जो अंग्रेजों ने चलाया था ।यह सच है कि हमारे देश ने भले ही ब्रिटिश राज से १९४७ स्वतंत्रता पा ली । आज़ादी के 65 साल बाद भी हम गुलाम है ।
आजादी के 66 साल बाद भी भारत में अगर कोई आज भी जब कहीं दीक्षान्त समारोह में डिग्रियां मिलती हैं तो एक रंगीन चोगे (गाउन) व टोपी (कैप) पहनते हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।गाउन पहनने कि परम्परा अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है और आज देश आजाद होने के इतने सालों के बावजूद हम आज तक ऐसे पवित्र समारोह में अंग्रेजों द्वारा दिए गए पश्चिम संस्कारों का अनुसरन करना गलत है इसलिए दीक्षांत समारोह के गाउन कि जगह भारतीय परिधान होना चाहिए।
डिग्री लेते समय गाउन पहनना भारतीय संस्कृति नहीं है बल्कि यह भारत को अंग्रेजों द्वारा सौंपी गई एक प्रथा है। गाउन ब्रिटिश साम्राज्य की गुलामी का प्रतीक है। इसको अब तक अपनाए रहने का मतलब है कि हम मानसिक रूप से अभी अंग्रेजों के गुलाम बने हुए हैं। अब समय आ गया है कि हमें इससे मुक्ति ले लेनी चाहिए|
– ‘भारत रत्न’ चंद्रशेखर वेंकट रामन —*:पहला सच्चा देशप्रेमी और स्वाभिमानी भारतीय जिसने 1930 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार समारोह में कन्वोकेशन गाउन (चोगे) व टोपी (कैप) पहनने से इंकार कर दिया था।भारतीय संस्कृति से चंद्रशेखर वेंकट रामन को हमेशा ही लगाव रहा। उन्होंने अपनी भारतीय पहचान को हमेशा बनाए रखा। चंद्रशेखर वेंकट रामन ने नोबेल पुरस्कार समारोह में भारतीय मुख्य व पारम्परिक पहनावा साफे (पगड़ी) सिर पर बांधा था।चंद्रशेखर वेंकट रामन पहले व्यक्ति थे जिन्होंने वैज्ञानिक संसार में भारत को ख्याति दिलाई। ‘रमन प्रभाव’ की खोज 28 फ़रवरी 1928 को हुई थी। भारत सरकार ने ‘भारत रत्न’ की सर्वोच्च उपाधि देकर सम्मानित किया।
12 जनवरी, 2012 को त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने त्रिपुरा केंद्रीय विश्वविद्यालय के नौवें दीक्षांत समारोह में पारंपरिक गाउन पहनने से इंकार कर दिया। मुख्यमंत्री माणिक सरकार दीक्षांत समारोह के दौरान सफेद कुर्ता-पाजामा में दिखे जबकि अन्य सभी अतिथि गाउन पहने रहे। माणिक सरकार ने इस विश्वविद्यालय के आठवें दीक्षांत समारोह में भी ब्रिटिश काल से चली आ रहीं गाउन पहनने की परंपरा का निर्वाह नहीं किया था।
केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने भोपाल स्थित भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के 2 अप्रैल 2010 में आयोजित दीक्षांत समारोह के दौरान गाउन पहनने से इंकार कर दिया था। रमेश ने कहा, “मुझे अभी तक समझ में नहीं आता कि भारत की आजादी के छह दशक से भी ज्यादा अर्से के बाद भी हम क्यों इन बर्बर औपनिवेशिक अवशेषों से चिपके हुए हैं।”
भारतीय विश्वविद्यालयों में दीक्षांत समारोहों में रंगीन चोगे (गाउन) व टोपी (कैप) ब्रिटिश राज की परंपराएँ बंद होनी चाहिए? जागो भारतीय जागो !! जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!
- युद्धवीर सिंह लांबा ” भारतीय “
व्यवसाय:
मै युद्धवीर सिंह लांबा ” भारतीय “ वर्तमान में हरियाणा प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली रोहतक रोड स्थित (एनएच -10) बहादुरगढ़ , जिला. झज्जर , हरियाणा राज्य , भारत में प्रशासनिक अधिकारी के रूप में 23 मई 2012 से काम कर रहा है|
मैने एस.डी. प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन संस्थान, इसराना, पानीपत ( हरियाणा ) (एनसी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग टेक्निकल कैंपस की सहयोगी संस्था) में 3 मई 2007 से 22 मई 2012 तक कार्यालय अधीक्षक के रूप में कार्य किया। मैने 27अगस्त, 2011 को रामलीला मैदान, दिल्ली में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के जनलोकपाल बिल पारित की मांग लेकर अनिश्चितकालीन अनशन में भाग लिया था |
शिक्षा:
मैने राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय , झज्जर ( हरियाणा ) से बी.ए. और महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (ए-ग्रेड), रोहतक (हरियाणा ) से एमए (राजनीति विज्ञान ) पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी, जालंधर ( पंजाब ) से पीजीडीसीए पारित कर और लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, फगवाड़ा ( पंजाब ) से M.SC ( कंप्यूटर विज्ञान ) कर रहा है|
शौक: मुझे फेसबुक में भारतीय संस्कृति के लिए लिखना बहुत पसंद है ।