कुण्डलियाँ – सतविन्द्र कुमार राणा

1
माना होता है समय, भाई रे बलवान
लेकिन उसको साध कर, बनते कई महान
बनते कई महान, विचारें इसकी महता
यह नदिया की धार, न जीवन उनका बहता
सतविंदर कह भाग्य, समय को ही क्यों जाना
नहीं सही भगवान, तुल्य यदि इसको माना।
2
होते तीन सही नकद, तेरह नहीं उधार
लेकिन साच्चा हो हृदय, पक्का हो व्यवहार
पक्का हो व्यवहार, तभी है दुनिया दारी
कभी पड़े जब भीड़, चले है तभी उधारी
सतविंदर छल पाल, व्यक्ति रिश्तों को खोते
उसका चलता कार्य, खरे जो मन के होते!
3
हँस कर भाई काट लो, दिन जीवन के चार
छोटी-छोटी बात पर, सही न होती रार
सही न होती रार, बुद्धि भी तनती जाती
दूजा हो बेहाल, शान्ति खुद को कब आती
सतविंदर कह मेल, सही होता इस पथ पर
समय सख्त या नर्म, कटे फिर देखो हँस।
 4
चहुँदिश देखो हैं भरे, ऊर्जा के भंडार
अच्छी को गह लीजिये, तज दीजे बेकार
तज दीजे बेकार, सही का संचय भी हो
कभी करें ना व्यर्थ, इरादा ऐसा ही हो
सतविंदर हिय शांत, रखो तुम वासर-निश
गह लो सत्य विचार, मिले ऊर्जा जो चहुँदिश।
5
रखकर मुँह में राम को, छुरी बगल में दाब
ऐसे भी क्या मित्रता, कभी निभे है साब
कभी निभे है साब, मान लो बात हमारी
रिश्ता जो अनमोल, सभी रिश्तों पर भारी
सतविंदर वह मीत, खरा साथी जो पथ पर
सदा सही व्यवहार, करे  मन में सत रखकर।
6
खुद ही है जो फूटती, यह ऐसी है धार
मानो मन के भाव हैं, नहीं हृदय पर भार
नहीं हृदय पर भार, कठिन पर इसे निभाना
जो कहते हैं लोग, वही क्यों हमने माना
सतविंदर कह प्रेम, सहजता में कुदरत की
हो जाता जब देख, चले निभता यह खुद ही।
 - सतविन्द्र कुमार राणा

प्रकाशित: 5 लघुकथा साँझा संकलन,साँझा गजल संकलन,साँझा गीत संकलन, काव्य साँझा संकलन, अनेक प्रतिष्ठित साहित्यक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ, पत्रिकाओं के लघुकथा विशेषांकों में समीक्षाएं प्रकाशित,साहित्य सुधा, साहित्यिक वेब openbooksonline.com, ,साहित्यपेडिया, laghuktha.com,लघुकथा के परिंदे समूह में लगातार रचनाएँ प्रकाशित।
सह-सम्पादन: चलें नीड़ की ओर (लघुकथा संकलन प्रकाश्य), सहोदरी लघुकथा-१
सम्प्रति: हरियाणा स्कूल शिक्षा विभाग में विज्ञान अध्यापक पद पर कार्यरत्त।
शिक्षा: एमएससी गणित, बी एड, पत्राचार एवं जन संचार में पी जी डिप्लोमा।
स्थायी पता: ग्राम व डाक बाल राजपूतान, करनाल हरियाणा।

Leave a Reply