कैसे-कैसे दे गई , दौलत दिल पर घाव ,
रिश्तों से मृदुता गई ,जीवन से रस भाव |
जीवन से रस भाव ,कहें ऋतु कैसी आई ,
स्वयं नीति गुमराह ,भटकती है तरुणाई |
स्वारथ साधें आप ,जतन कर जैसे-तैसे ,
लोभ दिखाए खेल , देखिये कैसे-कैसे ||1
जीवन में उत्साह से, सदा रहे भरपूर .
निर्मलता मन में रहे ,रहें कलुष से दूर .
रहें कलुष से दूर ,दिलों के कँवल खिले से .
हों खुशियों के हार ,तार से तार मिले से .
दिशा-दिशा हो धवल ,धूप आशा की मन में .
रहें सदा परिपूर्ण ,उमंगित इस जीवन में ||2
- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
जन्म स्थान : बिजनौर (उ0प्र0)
शिक्षा : संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि एवं पी-एच 0 डी0
शोध विषय : श्री मूलशंकरमाणिक्यलालयाज्ञनिक की संस्कृत नाट्यकृतियों का नाट्यशास्त्रीय अध्ययन।
प्रकाशन : ‘यादों के पाखी’(हाइकु-संग्रह ), ‘अलसाई चाँदनी’ (सेदोका –संग्रह ) एवं ‘उजास साथ रखना ‘(चोका-संग्रह) में स्थान पाया।
विविध राष्ट्रीय,अंतर्राष्ट्रीय (अंतर्जाल पर भी )पत्र-पत्रिकाओं ,ब्लॉग पर यथा – हिंदी चेतना,गर्भनाल ,अनुभूति ,अविराम साहित्यिकी ,रचनाकार ,सादर इंडिया ,उदंती ,लेखनी , , यादें ,अभिनव इमरोज़ ,सहज साहित्य ,त्रिवेणी ,हिंदी हाइकु ,विधान केसरी ,प्रभात केसरी ,नूतन भाषा-सेतु आदि में हाइकु,सेदोका,ताँका ,गीत ,कुंडलियाँ ,बाल कविताएँ ,समीक्षा ,लेख आदि विविध विधाओं में अनवरत प्रकाशन।
सम्प्रति निवास : वलसाड , गुजरात (भारत )