कुछ माहिए – प्राण शर्मा

भीख


हर बार नहीं मिलती
भीख भिखारी को
हर द्वार नहीं मिलती

न्योता

हर बार नहीं करते
अपनों का न्योता
इनकार नहीं करते

झगड़ा

झगड़ा न हुआ होता
सुन्दर सा अपना
घर – बार बना होता

आशा

नदिया का किनारा है
आशा ऐ प्यारे
जीवन का सहारा है

डर

नींदों को उड़ाता है
डर कैसा भी हो
मन को खा जाता है

तोता

अद्भुत है गुन प्यारे
राम का नाम कभी
तोते से सुन प्यारे

काग

क्यों काग उड़ाता है
प्रीतम का प्यारा
संदेशा लाता है

कबूतर

हैं चर्चे कबूतर के
चिट्ठी लाने में
क्या कहने कबूतर के

चिड़िया

वो कितनी प्यारी है
चिड़िया रानी पर
शिशु भी बलिहारी है

जुगनू

कुछ तो तम हरता है
नन्हा सा जुगनू
जगमग सा करता है

कोयल

क्या मीठी बानी है
कोयल श्याम सही
बगिया की रानी है

आँखों का पानी

जब देखो नज़र आये
आँखों का पानी
मरने न कभी पाये

राम कहानी

आँखों में पानी है
हर इक प्राणी की
इक राम कहानी है

मटका

कुछ ऐसा लगा झटका
टूट गया पल में
मिट्टी का हर मटका

शब्द

हर क़तरा पानी है
समझो तो जानो
हर शब्द कहानी है।

 

- प्राण शर्मा

ग़ज़लकार, कहानीकार और समीक्षक प्राण शर्मा की संक्षिप्त परिचय:

जन्म स्थान: वजीराबाद (पाकिस्तान)

जन्म: १३ जून

निवास स्थान: कवेंट्री, यू.के.

शिक्षा: प्राथमिक शिक्षा दिल्ली में हुई, पंजाब विश्वविद्यालय से एम. ए., बी.एड.

कार्यक्षेत्र : छोटी आयु से ही लेखन कार्य आरम्भ कर दिया था. मुंबई में फिल्मी दुनिया का भी तजुर्बा कर चुके हैं. १९५५ से उच्चकोटि की ग़ज़ल और कवितायेँ लिखते रहे हैं.

प्राण शर्मा जी १९६५ से यू.के. में प्रवास कर रहे हैं। वे यू.के. के लोकप्रिय शायर और लेखक है। यू.के. से निकलने वाली हिन्दी की एकमात्र पत्रिका ‘पुरवाई’ में गज़ल के विषय में आपने महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं। आप ‘पुरवाई’ के ‘खेल निराले हैं दुनिया में’ स्थाई-स्तम्भ के लेखक हैं. आपने देश-विदेश के पनपे नए शायरों को कलम मांजने की कला सिखाई है। आपकी रचनाएँ युवा अवस्था से ही पंजाब के दैनिक पत्र, ‘वीर अर्जुन’ एवं ‘हिन्दी मिलाप’, ज्ञानपीठ की पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’ जैसी अनेक उच्चकोटि की पत्रिकाओं और अंतरजाल के विभिन्न वेब्स में प्रकाशित होती रही हैं। वे देश-विदेश के कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा आकाशवाणी कार्यक्रमों में भी भाग ले चुके हैं।
प्रकाशित रचनाएँ: ग़ज़ल कहता हूँ , सुराही (मुक्तक-संग्रह).
‘अभिव्यक्ति’ में प्रकाशित ‘उर्दू ग़ज़ल बनाम हिंदी ग़ज़ल’ और साहित्य शिल्पी पर ‘ग़ज़ल: शिल्प और संरचना’ के १० लेख हिंदी और उर्दू ग़ज़ल लिखने वालों के लिए नायाब हीरे हैं.

सम्मान और पुरस्कार: १९६१ में भाषा विभाग, पटियाला द्वारा आयोजित टैगोर निबंध प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार. १९८२ में कादम्बिनी द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कहानी प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार. १९८६ में ईस्ट मिडलैंड आर्ट्स, लेस्टर द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार.
२००६ में हिन्दी समिति, लन्दन द्वारा सम्मानित.

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