काश मैं नासमझ ही रहता

 
जब मैं छोटा था नासमझ था
सोचता था अपना सब कुछ देश हित में लगाऊँगा
अब मैं टैक्स की चोरी करता हूँ
अब मैं बड़ा हो गया हूँ समझदार हो गया हूँ

जब मैं छोटा था नासमझ था
लोग मेरा मन मेरी आंखों से पढ़ लेते थे
अब मैं काला चश्मा लगाता हूँ
अब मैं बड़ा हो गया हूँ समझदार हो गया हूँ

जब मैं छोटा था नासमझ था
लड़ता था खुट्टी होती थी फिर तुरंत मुच्ची हो जाती थी
अब मेरी याददाश्त बहुत अच्छी है छोटी सी बहस भी बरसों याद रहती है
अब मैं बड़ा हो गया हूँ समझदार हो गया हूँ

जब मैं छोटा था नासमझ था
माँ पापा जो सिखाते बताते थे वही मेरी दुनिया थी
अब सबके सामने पैर छूने में थोडी शर्म आती है
अब मैं बड़ा हो गया हूँ समझदार हो गया हूँ

जब मैं छोटा था नासमझ था
मन की बातों को कागज पर लिख देता था
अब लिखता हूँ ये सोचकर इसे कैसा लगेगा वो क्या काहेगा
अब मैं बड़ा हो गया हूँ समझदार हो गया हूँ

जब मैं छोटा था नासमझ था
सोचता था मैं और भाई राम लक्ष्मण की तरह रहेंगे
अब राम सीता माँ के और लक्ष्मण उर्वशी के साथ रहते हैं
अब मैं बड़ा हो गया हूँ समझदार हो गया हूँ

पता भी न चला कि कब मैं नासमझ से समझदार होता चला गया
कब अपनों से दूरियां बढ़ी कब सपनों की दुनिया छिनी
खुशकिस्मत होते हैं वो चन्द लोग
जो हमेशा नासमझ रहते हैं और जिनका बचपना कभी खोता नहीं

 

-नीरज त्रिपाठी

 

शिक्षा- एम. सी. ए.

कार्यक्षेत्र – हिंदी और अंग्रेजी में स्कूली दिनों से लिखते रहे हैं | साथ ही परिवार और दोस्तों के जमघट में   कवितायेँ पढ़ते रहे हैं |

खाली समय में कवितायेँ लिखना व अध्यात्मिक पुस्तके पढ़ना प्रिय है |

प्रतिदिन प्राणायाम का अभ्यास करते हैं और जीवन का एकमात्र लक्ष्य खुश रहना और लोगों में खुशियाँ फैलाना है |

कार्यस्थल – माइक्रोसॉफ्ट, हैदराबाद

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