काश तुम

काश तुम बंध जाते मेरे अंतर्मन में
छटासी अठखैलियां करती
नीर भरती बन बदली
भीतर चश्रुओ में।
मधुर  रागिनी बन
धौ देती मन का संताप
बन जिज्ञासा तन की अधरो में
निस्पंदसी सांसे थम जाती
उठती लहर असीमित
कोमल हृदय में।।
काश तुम बंध जाते मेरे अंतर्मन में
नव नूतन, प्रतिक्षण, प्रतिबिम्ब
प्रिय तुम्हारा देखती निज स्वप्न में
बदली बन आती
चमन मन उपवन मेंं
करती दीदार तुम्हारा
अलख जुगनुओं में।।।
काश बंध जाते मेरेअंतर्मन में
सहजती तुम्हारी यादों को
पल पल छीन में
सागर बन पनघट पर
गागर छलकती निज मन में।।।
काश तुम बंध जाते मेरे
अंर्तमन में।।।।।।

- शशि राठौड.

मैं शशि राठौड. हिन्दी साहित्य से एम.ए। हिन्दी
लेखन मे गहरी रूचि रखती हुं . एन जी ओ भारत विकास परिषद से जुड़ी हुई हूँ। मन के भावों को अपनी कविताओ के माध्यम से वयक्त करती हूँ।

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