उसके सपनों में
कागज के कबूतर उतर आये हैं
वह उनके साथ उड़ती है सात समुन्दर पार
फूलों की घाटी तक / बर्फ लदे पहाड़ों पर
वह उतरती है एक सुख की नदी में
और उसमें नहाती है उन कबूतरों के साथ।
उसके लिए अब जीवन-सदर्भ
केवल कागज के थैले हैं।
वह अपने आपको
उन पर लेई-सा चिपका रही है।
वह पिछले कई वर्षो से कागज के थैले वना रही है।
वह मानती है कि उसके लिए
केंसर से पीडि़त पति का प्यार
नाक सुड़कते बच्चों की ममता
सिर्फ कागज थैले हैं
जिन्हें वह शाम को बाजारों में
पंसरियों, हलवाइयों की दुकान पर बेच आती है
बदले में ले आती है
कुछ केंसर की दवाएं
नाक सुडकते बच्चों को रोटियां
कुछ और जीने के क्षण।
कभी कभी उसे लगता है
जब वह थैले बनाती है
तो उसके सामने
अखबारों की रद्दी नहीं होती
बल्कि होते हैं लाइन से पसरे हुए
बच्चों के भूखे पेट।
वह उन्हें कई पर्तों में मोड़ती हुई
उन पर लेई लगाती हुई
कागज के थैलों में तब्दील कर देती है।
यहां तक कि वह भी शाम होते-होते
एक कागज का थैला हो जाती है / थैलों के बीच।
कभी-कभी उसे लगता है-
वह लाला की दुकान पर थैले नहीं बेचती,
वह बेचती है- बच्चों की भूख,
अपने चेहरे की झुर्रिया / पति का लुंज शरीर।
वैसे वह यह भी मानती है कि-
जब वह थैले बनाती है
तो वसंत बुनती है।
उसके सपनों में कागज के कबूतर उतर आते हैं,
जिनके साथ वह जाती है / सात समुन्दर पार
फूलों की घाटी तक / बर्फ लदे पहाडों पर /
हरे-भरे मैदानों तक।
वह उतरती है एक सुख की नदी में
और उसमें नहाती है उन कबूतरों के साथ
- रमेशराज
पूरा नाम- रमेशचन्द्र गुप्त
पिता- लोककवि रामचरन गुप्त
जन्म-15 मार्च , गांव-एसी, जनपद-अलीगढ़
शिक्षा -एम.ए. हिन्दी, एम.ए. भूगोल
सम्पादन- तेवरीपक्ष [त्रैमा. ]
सम्पादित कृतियां
1. अभी जुबां कटी नहीं [ तेवरी-संग्रह ]
2. कबीर जि़न्दा है [ तेवरी-संग्रह]
3. इतिहास घायल है [ तेवरी-संग्रह ]
4-एक प्रहारः लगातार [ तेवरी संग्रह ]
स्वरचित कृतियां
रस से संबंधित-1. तेवरी में रससमस्या और समाधान 2-विचार और रस [ विवेचनात्मक निबंध ] 3-विरोध-रस 4. काव्य की आत्मा और आत्मीयकरण
तेवर-शतक
लम्बी तेवरियां-1. दे लंका में आग 2. जै कन्हैयालाल की 3. घड़ा पाप का भर रहा 4. मन के घाव नये न ये 5. धन का मद गदगद करे 6. ककड़ी के चोरों को फांसी 7.मेरा हाल सोडियम-सा है 8. रावण-कुल के लोग 9. अन्तर आह अनंत अति 10. पूछ न कबिरा जग का हाल
शतक
1.ऊघौ कहियो जाय [ तेवरी-शतक ] 2. मधु-सा ला [ शतक ] 3.जो गोपी मधु बन गयीं [ दोहा-शतक ] 4. देअर इज एन ऑलपिन [ दोहा-शतक ] 5.नदिया पार हिंडोलना [ दोहा-शतक ] 6.पुजता अब छल [ हाइकु-शतक ]
मुक्तछंद कविता-संग्रह
1. दीदी तुम नदी हो 2. वह यानी मोहन स्वरूप
बाल-कविताएं-
1.राष्ट्रीय बाल कविताएं
प्रसारण-आकाशवाणी मथुरा व आगरा से काव्य-पाठ
सम्मानोपाधि-
‘साहित्यश्री’, ‘उ.प्र. गौरव’, ‘तेवरी-तापस’, ‘शिखरश्री’
अभिनंदन-सुर साहित्य संगम [ एटा ] , शिखर सामाजिक साहित्कि संस्था अलीगढ़
अध्यक्ष-1.सार्थक सृजन [ साहित्यक संस्था ] 2.संजीवन सेवा संस्थान ;सामाजिक सेवा संस्था 3.उजाला शिक्षा एवं सेवा समिति [ सामाजिक संस्था ]
पूर्व अध्यक्ष-राष्ट्रीय एकीकरण परिषद, उ.प्र. शासन, अलीगढ़ इकाई
सम्प्रति- दैनिक जागरण’ से स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सम्बद्ध
सम्पर्क- 15/109, ईसानगर, निकट-थाना सासनी गेट, अलीगढ़ [ उ.प्र. ]