हे प्रभु !
हर तरफ तुम्हारे नजारे
कहाँ नहीं हो तुम
हर तरफ तुम्हारे नजारे
कहाँ नहीं हो तुम
जहां तक निगाहों की पहुंच है
दृष्टि के पार भी
आती जाती श्वासों के तार पर
धड़कन की लय में
रगों में प्राण बन संचरित हो तुम
दृष्टि के पार भी
आती जाती श्वासों के तार पर
धड़कन की लय में
रगों में प्राण बन संचरित हो तुम
रौशनी के आवरण में
स्वप्न में जागरण में
मुग्ध मन के भावों में
चेतन अवचेतन में
प्रकृति के कण कण में
सब जगह तो हो तुम
स्वप्न में जागरण में
मुग्ध मन के भावों में
चेतन अवचेतन में
प्रकृति के कण कण में
सब जगह तो हो तुम
अरुणोदय तुमसे
हरीतिमा भी तुमसे
समूचे ब्रह्मांड में गूंजती ध्वनि
तुम्हारी ही आवाज
किरण किरण तुम्हारी आभा
मेरा मैं भी तुममय
हरीतिमा भी तुमसे
समूचे ब्रह्मांड में गूंजती ध्वनि
तुम्हारी ही आवाज
किरण किरण तुम्हारी आभा
मेरा मैं भी तुममय
आँखों की तरलता हो तुम
होठों पर खिली मुस्कान भी तुम
ऐसे ही रहना प्रभु
मुझमें समाहित
ऐसे ही रखना खुद में मिलाए
वहां एक पल भी नहीं रहना मुझे
जहां नहीं हो तुम…
होठों पर खिली मुस्कान भी तुम
ऐसे ही रहना प्रभु
मुझमें समाहित
ऐसे ही रखना खुद में मिलाए
वहां एक पल भी नहीं रहना मुझे
जहां नहीं हो तुम…