पिछले दिनों एक मित्र ने दूसरे से कहा- ”यार, सब लगा चुके हैं, मगर तुमने अब तक झाड़ू नहीं लगाई? क्या बात है? समाज में रहना नहीं है क्या? सेठ जी ने लगा ली, नेता जी ने लगा ली, समाजसेवा के ठेकेदार भी झाड़ू पकड़ कर धन्य हो गए और तुम हो कि अब तक सिगरेट पकड़े हुए हो?”
”यार, घर पर तो लोग मैं ही झाड़ू लगाता हूँ। लेकिन बाहर झाड़ू लगाते हुए लगता है, सफाईवाला हो गया हूँ। इतना छोटा काम मैं नहीं कर सकता।”
मित्र ने जवाब दिया तो दूसरा मित्र भड़क कर बोला- ”अबे, अकल के दुश्मन। आजकल लोग झाड़ू लगा कर बड़े होने लगे हैं। दिल्ली तक पहुँचने का जुगाड़ जमाने लगे हैं। झाड़ू अब झाड़ू नहीं रही। चुनाव चिन्ह हो चुकी है और तुम झाड़ू को हल्के से ले रहे हो? सफाईवाला छोटा आदमी नहीं होता। हम गंदगी करते हैं और सफाईवाला उसे साफ करता है। अब तुम ही कहो, गंदगी करने वाला बड़ा या गंदगी को साफ करने वाला?”
मित्र बोला, ”बात तो ठीक कह रहे हो मगर ये दिखावा हमसे नहीं होगा कि झाड़ू पकड़ो, फोटू-शोटू खिचाओ और अखबारों में छपवाओ।”
”अरे, अब अखबारों की चिंता कौन करता है लल्लू?” दूसरा चहका, ”फेसबुक में डाल दे। व्हाट्स एप के जरिए भेज दे। ऐसा कर ले वरना जीव की मुक्ति नहीं मिलेगी, हाँ। घर बैठ लोग तेरे सफाई अभियान को देख कर तुझे धन्यवाद देंगे। देख नहीं रहा, आजकल कितने लोग झाड़ू हाथ में ले कर फोटो खिंचवाते पाए जा रहे हैं। और झाड़ू पकडऩे का मतलब यह नहीं कि पूरे शहर की सफाई करनी है। तुमको तो बस इतना करना है कि झाड़ू पकड़ो, फोटो खिचवाओ और घर आ कर नहा-धो कर फेसबुक में मोबाइल में कैद करवाई गई अपनी फोटो अपलोड करो और लिखो, माई सिटी, क्लीन सिटी। हो गए तुम पापुलर।”
मित्र की बात सुन कर दूसरा मित्र सोचने लगा कि अब झाड़ू पकडऩा ही पड़ेगा। झाड़ू पकड़ कर लोग इतना पापुलर हो सकते हैं तो हम काहे पीछे रहें। और उस बंदे ने हिम्मत बँटोर कर दूसरे दिन हाथ में झाड़ू पकड़ ली, फिर उसके बाद तो चमत्कार को नमस्कार ही हो गया। वह भी शहर के बड़े लोगों में शुमार हो गया।
उधर कुछ ई-मनुष्य बड़े कलाकार निकले।
ई मनुष्य जो अपनी दिनचर्या के एक-दो काम छोड़ कर अपना सारा काम कम्प्यूटर के जरिए ही करते हैं। इन कलाकारों ने अपना ‘ई-झाड़ू ग्रुप’ बनाया लिया और उसकी मदद से शहर को साफ करने लगा। इस ग्रुप के सदस्य अपने शहर की किसी सड़क की तस्वीर खींचते फिर उसे फोटोशॉप में ले जा कर गौर से देखते फिर जहाँ-जहाँ उन्हें कचरा नजर आता, उस पर माउस घुमा कर ब्रश चला देते। बस, कचरा साफ।
फिर फेसबुक में फोटो डाल कर कहते- ”देखो भाइयो, हो गई सफाई। हम देश के जिम्मेदार नागरिक हैं। सड़कों पर न उतर सकें तो क्या घर बैठे ई सफाई तो कर ही सकते हैं इसलिए आइए, घर बैठे स्वच्छता अभियान से जुड़ें।”
लोगों को यह ई- सफाई रास आ गई और लोग घर बैठे सफाई करने लगे। कुछ लोग कुछ होशियार टाइप के भी थे।
वे अपने सहायकों से कहते- ”नई झाड़ू लेकर फलाने चौक पहुँचो आज हम झाड़ू लगाएँगे।” फिर वे पहुँच कर झाड़ू लगाते हुए अपनी फोटू खिचवा कर लौट लगाने लगे। अनेक लोग ई-सफाई और सफाई की दिखाई करते रहे। ऐसा करने से उनकी छवि साफ होती रही। उनकी तस्वीरें फेसबुक में और अखबारों में चमकने लगीं। यह और बात है कि शहर में गंदगी का ढेर बढ़ता गया और उधर सोशल मीडिया के जरिए शहर चकाचक चमकता नज़र आने लगा।
गंदगी से त्रस्त लोग कहने लगे- ”ई ससुरी ई-सफाई की कब होगी सफाई?”
ऐसी आत्माओं के बारे में कवि ‘हुदहुद’ गद्गद हो ठीक कहते है कि -
कुछ नहीं करते वे केवल ‘ट्वीट’ करते हैं
आजकल सब ”नेट’ पर ही ‘मीट’ करते हैं
काम बोलो कुछ नहीं करते, मगर ये है
बात शातिर लोग बेहद ‘स्वीट’ करते हैं
‘ये करेंगे, वो करेंगे’ कान पक गए जी
क्यों सियासी लोग इतना ‘चीट’ करते है
आप होंगे तोपचन्दी पर असल है बात
किस तरह से आप सबसे ‘ट्रीट’ करते हैं
है बड़े ही भक्त वे उपवास के दिन में
कुछ नहीं, रिश्वत ही केवल ‘ईट’ करते है
शातिरों के जब मुकाबिल हों महाशातिर
एक पल में वे सभी को ‘बीट’ करते हैं
-गिरीश पंकज
प्रकाशन : दस व्यंग्य संग्रह- ट्यूशन शरणम गच्छामि, भ्रष्टचार विकास प्राधिकरण, ईमानदारों की तलाश, मंत्री को जुकाम, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएं, नेताजी बाथरूम में, मूर्ति की एडवांस बुकिंग, हिट होने के फारमूले, चमचे सलामत रहें, एवं सम्मान फिक्सिंग। चार उपन्यास – मिठलबरा की आत्मकथा, माफिया (दोनों पुरस्कृत), पॉलीवुड की अप्सरा एवं एक गाय की आत्मकथा। नवसाक्षरों के लिए तेरह पुस्तकें, बच्चों के लिए चार पुस्तकें। 2 गज़ल संग्रह आँखों का मधुमास,यादों में रहता है कोई . एवं एक हास्य चालीसा।
अनुवाद: कुछ रचनाओं का तमिल, तेलुगु,उडिय़ा, उर्दू, कन्नड, मलयालम, अँगरेजी, नेपाली, सिंधी, मराठी, पंजाबी, छत्तीसगढ़ी आदि में अनुवाद। सम्मान-पुरस्कार : त्रिनिडाड (वेस्ट इंडीज) में हिंदी सेवा श्री सम्मान, लखनऊ का व्यंग्य का बहुचर्चित अट्टïहास युवा सम्मान। तीस से ज्यादा संस्थाओं द्वारा सम्मान-पुरस्कार।
विदेश प्रवास: अमरीका, ब्रिटेन, त्रिनिडाड एंड टुबैगो, थाईलैंड, मारीशस, श्रीलंका, नेपाल, बहरीन, मस्कट, दुबई एवं दक्षिण अफीका। अमरीका के लोकप्रिय रेडियो चैनल सलाम नमस्ते से सीधा काव्य प्रसारण। श्रेष्ठ ब्लॉगर-विचारक के रूप में तीन सम्मान भी। विशेष : व्यंग्य रचनाओं पर अब तक दस छात्रों द्वारा लघु शोधकार्य। गिरीश पंकज के समग्र व्यंग्य साहित्य पर कर्नाटक के शिक्षक श्री नागराज एवं जबलपुर दुुर्गावती वि. वि. से हिंदी व्यंग्य के विकास में गिरीश पंकज का योगदान विषय पर रुचि अर्जुनवार नामक छात्रा द्वारा पी-एच. डी उपाधि के लिए शोधकार्य। गोंदिया के एक छात्र द्वारा गिरीश पंकज के व्यंग्य साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन विषय पर शोधकार्य प्रस्तावित। डॉ. सुधीर शर्मा द्वारा संपादित सहित्यिक पत्रिका साहित्य वैभव, रायपुर द्वारा पचास के गिरीश नामक बृहद् विशेषांक प्रकाशित।
सम्प्रति: संपादक-प्रकाशक सद्भावना दर्पण। सदस्य, साहित्य अकादेमी नई दिल्ली एवं सदस्य हिंदी परामर्श मंडल(2008-12)। प्रांतीय अध्यक्ष-छत्तीसगढ़ राष्टभाषा प्रचार समिति, मंत्री प्रदेश सर्वोदय मंडल। अनेक सामाजिक संस्थाओं से संबद्ध।
संपर्क :रायपुर-492001(छत्तीसगढ़)