ओ, उतरती धूप
चली आओ धीरे धीरे
कर दो रोशन उन
गलियारों को जहां
घनघोर अन्धेरा है
ज्ञान का प्रकाश भर दो
घरों में प्रवेश करो
जहां तुम्हारी पुकार है
आग भर दो उन चूल्हों में
जो जले नही बहुत दिनों से
जहां पेट भय के मारे सिकुड़ा पड़ा है
पर , खबरदार मत जाना……
जहां तुम्हारे खिलाफ चल रही साज़िश
बड़े बड़े महलों में
संसद के गलियारों में
भूख से ज्यादा खाने वाली
बड़ी हुई तोदों से से तो दूर ही रहना
वरना सूरज भी क़ैद कर लिया जाएगा
फिर तुम क्या करोगी ?
ओ , उतरती धूप …….
- मधु सक्सेना
लेखन -कहानी ,कविता ,व्यंग्य और समीक्षा ।
” मन माटी के अंकुर ” ( काव्य सन्ग्रह ) प्रकाशित ।
तीन सम्मान
साहित्यिक संस्थाओं की स्थापना ।
स्थाई निवास भोपाल ।