एक फ़िल्मी दृश्य – प्राण शर्मा

भव्य भवन का एक कमरा। सभी चीज़ें अस्त-व्यस्त सी पडी हैं। कुंतल कुर्सी पर बैठा मेज़ पर सर टिकाये हुए है। किसी स्ट्रीट सिंगर के गीत के ये बोल उसके कानों मे पड़ते हैं – ` दुखों की जलन ही मिली है खुशी में , अँधेरा ही मुझको मिला रौशनी में। `

कुंतल उदास सा बाहिर आता है और सिंगर को पुकारता है – ` अरे भाई , सुनो। `

गायक गाते – गाते रुकता है।

कुंतल – अंदर चले आओ।

वो अंदर आता है।

कुंतल – इधर बैठ जाओ मेरे पास।

गायक – नहीं साब , आप के पास कैसे बैठ सकता हूँ ?

कुंतल उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बिठाता है।
गायक -( ख़ुद से ) हे भगवान् , तेरी लीला भी न्यारी है , कोई दुत्कारता है और

कोई पास बिठाता है।
कुंतल – क्या तुम ये पूरा गीत मुझे लिख कर दे सकते हो ?
गायक – वो गीत आप क्या करेंगे ? आप तो महलों में रहने वाले लोग हैं। ये

गीत तो हम गरीब और बदनसीब लोगों के लिए है।
कुंतल – मैं भी तुम्हारी तरह अब गरीब और बदनसीब हूँ। तुम में और मुझ में अब

कोई अंतर नहीं है। हम दोनों ही दुःख झेल रहे हैं।
गायक – आपके माँ – बाप ?
कूंतल – माँ – बाप अब इस संसार में नहीं हैं।
गायक – भाई – बहन ?
कुंतल – माँ – बाप की मैं अकेली संतान हूँ ।
गायक – आपका अब कोई नहीं ?
कुंतल – एक थी। वो मुझे बहुत चाहती थी।
गायक – अब कहाँ है वो ?
कुंतल – आज रात उसका ब्याह है। रौशनी ही रौशनी होगी उसके घर।
गायक – क्या उस लड़की ने आपको धोखा दिया है ?
कुंतल – धोखा किस्मत ने दिया है।
गायक – किस्मत ने ?
कुंतल – अपनी प्रेमिका के बाप के बहते आँसू मैं नहीं देख सका। उसके बाप ने

अपने सर से पगड़ी उतार कर मेरे पाँवों में रख दी थी। मेरे पाँवों में

पड़ा – पड़ा ही वो दुखी स्वर में बोला था – ` मेरी बेटी तुम्हारे लिए नहीं है ,

किसी और के लिए है। वो चार साल की थी , मैंने उसका रिश्ता अपने

एक मित्र के बेटे से कर दिया था। मेरी बेटी उसकी अमानत है। ज़रा

सोचो , तुम्हारी बहन या बेटी होती तो ऐसी हालत में तुम क्या करते ?

मेरी इज़्ज़त , मेरी लाज तुम्हारे हाथ में है। `
तनिक खामोशी
कुंतल – मन दुःख से भरा हुआ है। एक बार फिर वो गीत गा दो।
गायक गीत गाता है -

 

दुखों की जलन ही मिली है खुशी में

अँधेरा ही मुझको मिला रोशनी में
दृश्य बदलता है। गायक के स्थान पर कुंतल को गीत के

अन्य बोल गाते हुए दिखाया जाता है -
मिला यार पर अपनी किस्मत यही है

अकेले भटकना है अब ज़िन्दगी में

बहारों के नग़मे बहुत गाये लेकिन

मिले मुझको काँटे चमन की गली में

ज़रा कोई सुन ले ज़रा कोई देखे

दुखों का समंदर मेरी ज़िन्दगी में

दुखों का समंदर

दुखों का समंदर

दुखों का समंदर

 

- प्राण शर्मा

ग़ज़लकार, कहानीकार और समीक्षक प्राण शर्मा की संक्षिप्त परिचय:

जन्म स्थान: वजीराबाद (पाकिस्तान)

जन्म: १३ जून

निवास स्थान: कवेंट्री, यू.के.

शिक्षा: प्राथमिक शिक्षा दिल्ली में हुई, पंजाब विश्वविद्यालय से एम. ए., बी.एड.

कार्यक्षेत्र : छोटी आयु से ही लेखन कार्य आरम्भ कर दिया था. मुंबई में फिल्मी दुनिया का भी तजुर्बा कर चुके हैं. १९५५ से उच्चकोटि की ग़ज़ल और कवितायेँ लिखते रहे हैं.

प्राण शर्मा जी १९६५ से यू.के. में प्रवास कर रहे हैं। वे यू.के. के लोकप्रिय शायर और लेखक है। यू.के. से निकलने वाली हिन्दी की एकमात्र पत्रिका ‘पुरवाई’ में गज़ल के विषय में आपने महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं। आप ‘पुरवाई’ के ‘खेल निराले हैं दुनिया में’ स्थाई-स्तम्भ के लेखक हैं. आपने देश-विदेश के पनपे नए शायरों को कलम मांजने की कला सिखाई है। आपकी रचनाएँ युवा अवस्था से ही पंजाब के दैनिक पत्र, ‘वीर अर्जुन’ एवं ‘हिन्दी मिलाप’, ज्ञानपीठ की पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’ जैसी अनेक उच्चकोटि की पत्रिकाओं और अंतरजाल के विभिन्न वेब्स में प्रकाशित होती रही हैं। वे देश-विदेश के कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा आकाशवाणी कार्यक्रमों में भी भाग ले चुके हैं।
प्रकाशित रचनाएँ: ग़ज़ल कहता हूँ , सुराही (मुक्तक-संग्रह).
‘अभिव्यक्ति’ में प्रकाशित ‘उर्दू ग़ज़ल बनाम हिंदी ग़ज़ल’ और साहित्य शिल्पी पर ‘ग़ज़ल: शिल्प और संरचना’ के १० लेख हिंदी और उर्दू ग़ज़ल लिखने वालों के लिए नायाब हीरे हैं.

सम्मान और पुरस्कार: १९६१ में भाषा विभाग, पटियाला द्वारा आयोजित टैगोर निबंध प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार. १९८२ में कादम्बिनी द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कहानी प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार. १९८६ में ईस्ट मिडलैंड आर्ट्स, लेस्टर द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार.
२००६ में हिन्दी समिति, लन्दन द्वारा सम्मानित.

 

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