इंटरनेट पर किसी ने एक नसीहती सन्देश भेजा है .
” हैपी बर्थडे ! आप आज सत्तर वर्ष के हो गए ! अब समय आ गया है कि गैरज़रूरी समान को अपने हाथों से दान कर दें .पुराने ,बेकार कागज़ पत्तर छाँट कर फाड़ दें . आपके शरीर की ताक़तें दिन -बा दिन कम होती जायेंगी . बची हुई ताक़त व समय को सेहत बनाने पर खर्चें ……….”
सन्देश तो बहुत लंबा है . मेरी बीवी निशा चाय ले आई है .सुबह का दस बज रहा है . बर्थडे का तोहफा —ब्रेकफास्ट इन बेड ! रोज़ महारानी सोई रहती है . बेहद वज़नदार नौकरी करती थी . सुबह तारों की छाँव जाती थी और शाम को तारों की छाँव घर पहुँचती थी . अब उसे हक है देर तक सोने का . सर्दी भी तो देखिये ! बाहर बर्फ जमी है . माईनस चार तापमान ! बाहर जाने का तो सवाल ही नहीं उठता .
मैंने उसे लैपटॉप पर आया सन्देश पढवा दिया . महा गलती करी . वह ऐसे मुस्कुराई कि जैसे कोई मैच जीत लिया हो मुझसे . चिढाते हुए धुन गुनगुनाने लगी –” आना ही पडेगा , सर इश्क के क़दमो में झुकाना ही पडेगा —–” प्रकट में झट इसी धुन पर तुकबंदी जोड़ ली , ” हटाना ही पडेगा , –इस घर का कबाड़ा तो हटाना ही पडेगा –!’ ”
गलती मेरी यह कि हर चीज़ से मोह और ऊपर से आलस ! फिर भी !– सोचा कि बहुओं बेटियों के हाथ में ,गालिबन ,मेरे मरने के बाद मेरे पुराने ख़त और तस्वीरें ना ही पड़ें तो अच्छा . तय किया कि मै एक – एक करके पढ़ता चलूँगा और वह फाड़ती चलेगी .
कुछ ऐसी भी चीज़ें होती हैं हर घर में जो हमेशा बनी रहती हैं चाहे कितनी भी बेमतलब क्यों न हों . चाह कर भी आप उनको बुहार नहीं पाए जैसे उनकी अपनी एक इच्छा शक्ति हो और वह आपकी इच्छाशक्ति को मात देती आई हो . पुराने घरों के आँगन में फर्श के नीचे रहनेवाले नागराज की तरह . जैसे आप जब उनके अस्तित्व को कतई भुला चुके होते हैं ,वह घर में किसी न किसी को नज़र आ जाते हैं . आप मारने के लिए डंडा उठाते हैं मगर आपके अन्दर का अंधविश्वास आपको पोपला बना देता है और नागराज वहीँ फर्श के नीचे सरक लेते हैं चुपचाप !
वह चिट्ठी और उसका फोटो भी कुछ ऐसा ही स्थाई अस्तित्व रखते थे .कितनी बार दिखी और फिर वहाँ ही वापिस रखी गयी . पहले कई बार सोचा मुझे क्या ! इनपर टिकट लगाकर भेज दूं मगर अन्दर कोई डर था जो आड़े आ गया . वापिस वहीं रख दी . कई सालों तक भूला रहा फिर दिखाई पड़ी तो सोचा फाड़कर फेंक दूं . मेरे किस काम की ? मगर जैसे कोई हाथ रोक दे . वापस उसी सफ़ेद लिफ़ाफ़े में डाल दी . एक बार तो पता भी लिख दिया था .
” गिरिजा प्रशाद शर्मा , बस अड्डा इंचार्ज , कटरा, जम्मू ”
नहीं यह पता ठीक नहीं . पता नहीं अब इतने सालों में वह बस अड्डा इंचार्ज होगा भी या नहीं . हो सकता है उसने तरक्की पा ली हो . हो सकता है वह उस छोटे से शहर को छोड़ गया हो . प्रश्नों के मकडजाल में उलझा मै वास्तव में अपने डर को मात नहीं दे पाया और अपने आप से कहा फिर कभी देखी जायेगी . पत्र वहीँ उसी फाइल में सहेज दिया . अब तो पीला भी पड़ गया था .
होनी क्यों न हो ? निशा के हाथ पड़ गया ! चित्र देखकर बोली
”यह कौन है ? ”
” कोई था ”.
” आपका मित्र ?”
” नहीं . बस एक आदमी था .मै नहीं जानता इसे . ”
” पहेलियाँ क्यों डालते हो ? साथ में पत्र भी है चार सफों का . कोई नहीं था तो फाइल में क्यों रखा है ? ”
” बस यूं ही एक जना पीछे पड़ गया था एक बार . यह उसका बाप है .”
चित्र में एक गदबद्दे शरीर का आदमी एक खूबसूरत फ्रेंच दरवाज़े के सामने अपने साफ़ – सुथरे टाईलों वाले चबूतरे पर बैठा एक छोटी जात के कुत्ते को सहला रहा था . उसने नीली जीन पर लाल स्वेटर पहना हुआ था . रंग से साफ़ मगर निश्चित रूप से भारतीय लगता था .
निशा की उतावली पर ही वह कहावत बनी है कि अपनी जिज्ञासा के कारण बिल्ली मरी . मुझे बतानी ही पड़ी वह सारी कहानी .
करीब तीस साल पहले — . हर साल स्कूल की छुट्टियों में हम भारत जाते थे . छुट्टियाँ जुलाई के अंतिम हफ्ते से शुरू हो जाती हैं . भारत में सावन मास चल रहा होता है . बिना सोचे समझे मैंने वैष्णो माता के दर्शन करने की ठान ली . चार हम, चार जने परिवार के . दिल्ली से जम्मू हवाई जहाज से गए . वहाँ से टैक्सी लेकर हम कटरे पहुंचे . सब कुछ निर्विघ्न चला मगर कटरे में पाँव रखने की जगह नहीं ! इतनी दूर आकर वापस जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था . ऊपर जाने की यात्रा दो दिन की थी . एक दिन जाना और एक दिन आना . हवाई जहाज की वापसी टिकटें ली हुई थीं . और उसके बाद अगले ही दिन दिल्ली से बंबई की फ्लाईट भी बुक की हुई थी . सब कुछ रद्द करना बड़ा मंहगा बैठता . क्या करूँ ? किसी धर्मशाला में भी जगह नहीं खाली थी . हमें नहा धोकर उसी दिन ऊपर चढ़ना था . मगर ऊपर जाने का पास मिले तब तो . मै इधर उधर दौड़ भाग कर रहा था .
तभी एक वर्दीधारी नौजवान अफसर ने मेरा कंधा थपथपाया .
” क्या प्रोब्लम है अंकल ? ” मैंने बता दिया तो वह बोला , ” आपको पता नईं है सर ! आपने कै दिया न कि आप लन्दन से आये हो जभी आपको तंग कर रये हैं . जेब भरना चाहते हैं और क्या . देखो मै कुछ करता हूँ . ”
उसने मेरी बड़ी मदद की . जैसे तैसे उसी दिन का ऊपर चढ़ने का पास दिलवा दिया . दोपहर बाद जाकर कहीं हाँ हुई . अगले दिन दर्शन करके जब हम थके हुए लौटे थे तो वह फिर आ गया धर्मशाले में .
” जय माता दी अंकल , सब ठीक ठाक हो गया ? ”
मैंने कहा , ” हाँ , भई, माई के दरबार तूने हमें चढ़ाया . तेरा देवी माँ सदा भला करे . ”
वह आदमी गदगद हो गया . मैंने उसे कुछ इनाम देना चाहा तो वह रुंआसा हो गया .
” अंकल आप मेरे पिता के समान हो . मेरी बस एक मदद कर दीजिये . आप लन्दन में मेरे पिताजी को ढूंढ दीजिये . मै आपको उनका पुराना पता दे दूँगा . अगर वह मिल जाएँ तो उनसे पूछिएगा कि क्यों उन्होंने हमें भुला दिया . मै और मेरी माँ सदा सदा से उनकी बाट जोह रहे हैं . हमें उनका कोई पैसा धेला नहीं चाहिए . बस वह एक बार यहाँ आकर अपना घर और बेटा देख लें . हमें अपना कह दें . यहाँ सब मुझे ” छोडी हुई ” का बेटा समझते हैं . अंकल हमारी कोई इज्जत नहीं ! ” कहते कहते वह आदमी रोने लगा .
होगा कोई तीस बरस का . अच्छी खासी अंग्रेजी भी जानता था . फिर उसने मुझे अपने बाप का पता भी दिखाया . लन्दन के एजवेयर इलाके में कहीं वह रहता था . देवी लाल शर्मा . उसका एक हल्का सा फोटो भी उसने दिया . शायद वह उस आदमी का एकमात्र फोटो था जिसकी अनेकों कापियां गिरिजा प्रशाद ने बनवाई होंगी . वह भी किसी घिसे पिटे फोटोग्राफर से . यह कापी इसीलिये काफी हलके प्रिंट की थी .
तुम्हे तो मालुम ही है निशा कि माँ-बाप के लिए मेरे दिल में कितना भाव है . बस मैंने उसे दिलासा देकर वह पता और फोटो सँभाल कर रख लिया .
निशा ने आगे पूछा , ” तुमने ढूँढा उसे ? ”
हाँ .गिरिजा प्रशाद को मेरा पता मालूम था . उसने मुझे कई ख़त डाले . इसलिए , एक दिन मैंने यह काम भी कर ही डाला . जो पता उसने दिया था वह गलत निकला . पर मैंने लन्दन की टेलीफोन डायरेक्टरी में डी एल शर्मा नाम ढूंढा . डी शर्मा तो कई मिले . हार कर एक डी एल शर्मा मिल ही गया जो जम्मू का रहने वाला था . धुर पश्चिम में स्लाओ में वह कहीं रहता था . मैंने उसे मोटे तौर पर बताया कि मै उसके लिए संदेसा लाया हूँ . उसने अपना पता दे दिया . मै उससे मिलने गया . उसका घर बार बेहद सुन्दर और सुथरा था . उसने बताया कि उसने एक अंग्रेज औरत से शादी करी है और उनके दो बेटे हैं . उस वक्त उसकी बीवी अपनी नौकरी पर गयी हुई थी . उसने मुझसे माफी माँगते हुए ज्यादा समय न लेने की बात की .
मैंने उसे बताया कि मै वैष्णो देवी के दर्शन करने गया था . अनायास उसका चेहरा खिल गया . पूर्व की ओर हाथ जोड़कर उसने मस्तक नवाया जैसे यह उसकी आदत रही हो . ज़ाहिर था कि वह अपने आदिम विश्वासों से कभी उभर नहीं पाया था . उसने बताया कि वह मातारानी के चरणों में जन्मा पला था . मगर वहाँ कटरे से दस पंद्रह मील दूर उसके छोटे से गाँव में उसके स्वप्नों एवं ऊँचे इरादों कि समाई न थी . अतः मौका लगते ही वह वहाँ से निकल लिया . यहाँ उसके पास घरेलू औजारों कि दुकान थी जो खूब अच्छी चल रही थी . उसकी पत्नी वेल्स से थी और उनका प्रेम विवाह हुआ था . दो लड़के थे जो अब सेकेंडरी स्कूल में पढ़ते थे .
अपने बारे में बताते हुए वह काफी खुश था . उसका एक छोटा सा कुत्ता था जो कूँ कूँ करता हमारे इर्द गिर्द डोल रहा था . देवीलाल बोला कि कुत्ते को मुझसे जलन हो रही है क्योंकि वह मुझसे बातें कर रहा है . हम दोनों हँस दिए .
मैंने बिना हीले हवाले किये उससे सीधा सवाल पूछा कि वह अपनी पहली पत्नी और बच्चे को क्योंकर भूल गया . वह चौंका . उसके चेहरे पर सख्त नाराज़ी छा गयी जैसे अचानक खुले आसमान में पीली आँधी उतर आई हो . इसके पहले कि वह मुझे डपट देता मेरा हाथ अपनी सामनेवाली जेब में पहुँच गया जहां उसकी फोटो रखी थी .
छूटते ही वह बोला , ”मेरी तो एक ही शादी हुई है , ईना से .” कहकर वह मुँह घुमा कर दूर ताकने लगा .
मैंने कहा ,” अगर ऐसा है तो तुम नाराज़ क्यों हो गए . मुँह क्यों घुमा लिया ? कुछ छुपा नहीं रहे क्या ? ”
वह चुप रहा . ” देखो भले आदमी यह फोटो .” कहकर मैंने उसे उसकी तस्वीर दिखाई . देखकर वह कुछ चौंका . मगर उसने यह नहीं कहा कि यह तस्वीर उसकी नहीं थी .
” आपको कैसे मिली ? आप हो कौन ? ”
”मै आपका कोई नहीं हूँ . सिर्फ एक अच्छे इंसान के नाते किसी की दोस्ती निभा रहा हूँ . ”.
” किसकी ? ”
” तुम्हारे बेटे की .”
” बेटा ! मेरा !!—-कहाँ?”
” कटरे में . गिरिजा प्रशाद ! तीस बरस का जवान कमाऊ पुत्र !! मातारानी को मानते हो तो झूठ मत बोलना . ”
अब वह एकदम ढीला पड़ गया .
” बड़े भाई वह लड़का तीस का नहीं अट्ठाईस साल का है . पर मै उस सारे माहौल से भागकर आया था .अब यहीं मेरी ज़िन्दगी है . आप मुझे माफ़ करें मै और कुछ भी नहीं कहना चाहता . जो बीत गया सो बीत गया .आप जाईये . ”
मैंने उसे समझा बुझा कर शांत किया ,और अपनी गिरिजा प्रशाद से हुई मुलाक़ात का खुलासा किया .
” देखो देवीलाल मुझपर ज़िंदगी भर का उधार रह जाएगा . मै उससे वायदा करके आया था कि उसके पिता का जवाब लाकर दूँगा . ऐसा क्यों नहीं करते कि जो कुछ तुम मुझसे कह रहे हो वह सब सीधे उसे ही समझा दो . कह दो कि तुम्हे अपने बड़े बेटे से कुछ लेना देना नहीं .कह दो कि वह मरे समान है .तुम जो चाहे उसे ख़त में लिख दो . मै पहुंचा दूंगा .मगर मुझे कृतघ्नता के दलदल में डूबने को मत छोडो . मुझे उसका उत्तर देना है . ”
” ठीक है आप मुझे कुछ वक्त दीजिये . मै खुद अपने हाथ से लिखकर एक पत्र उसके नाम दे देता हूँ . ”
” एक अहसान और कर देना उस अभागे पर कि अपना एक फोटो भी उसे दे देना . ”
” ठीक है . ”
” तो मै जरा स्लाओ के बाज़ार में घूमकर आता हूँ . कहीं सटक तो न जाओगे ?”
”नहीं . आज इस पार या उस पार . गिरिजा ने कई बार यह हरकत दोहराई है . मैंने कभी जवाब नहीं दिया . दरअसल घर भी इसीलिये बदल लिया . मगर यह मातारानी की सौगंध का मामला है . मै आपकी मजबूरी समझता हूँ . ”
जैसा उसने कहा था , करीब दो घंटे बाद जब मै वापस आया तो उसने यह पत्र और फोटो तैयार कर रखा था . मैंने उसे धन्यवाद कहा और अपना पता और फोन नंबर आदि देकर घर आगया . घर आकर चार छै दिन मै काफी व्यस्त हो गया . अगला वीकेंड आया तो सोचा उस पत्र को पोस्ट कर दूं . पता वगैरह ढूँढा पर दिक्कत यह आई कि फोटो पत्र के अन्दर नहीं रखा था . सोचा क्या हर्ज़ है पत्र को खोलकर फोटो अन्दर डाल दूं . थोड़ी लम्बाई चौडाई कैंची से काटनी पड़ेगी . बस यही कोई सूत दो सूत . मैंने कैंची और सेलोटेप का जुगाड़ करके उबलती केतली की भाप के ऊपर पत्र को रखा ,मिनट दो मिनट की भाप से लिफ़ाफ़े की गोंद ढीली पड़ गयी तो मैंने उसे खोल लिया .
निशा बोली , ” और यही काफी नहीं हुआ जनाब ! आपने उसे पढ़ा भी . ”
” पढ़ा न होता तो यूं ही पोस्ट कर दिया होता और आज तुम्हारे हाथ न चढ़ता . ”
” पर क्यों ? तुमने तो मातारानी की सौगंध उठाई थी ? ”
”मातारानी मुझे माफ़ करेगी . चाहो तो खुद पढ़कर देख लो .”
निशा को पत्र पकड़ाकर मै नहाने धोने चला गया . पत्र इस प्रकार था .
प्यारे गिरिजा प्रशाद ,
आज से तीस वर्ष पहले मेरी पहली नौकरी लगी थी . मैंने जम्मू से कॉलेज की पढाई की थी .फर्स्ट डिविज़न से पास हुआ था . आगे किसी प्रतियोगिता में बैठना चाहता था ताकि अफसर बन सकूं . मगर घर के हालात पतले थे . माँ की इच्छा थी कि मै कमाई करूँ . सौभाग्य से हमारे घर के पुरोहित पंडित मोटाराम चतुर्वेदी आ धमके . नाम उनका जरूर मोटाराम था मगर क़द काठी से एकदम छरहरे शरीर के थे . भैरों जी के भक्त थे और रोज़ कटरे से भैरों मंदिर तक की चढ़ाई एकदम खड़ी पीठ, नंगे पाँव , बिना सहारे के चढ़ते थे . एक हाथ में फूल बताशे का दोना पकड़े और दूसरे से रुद्राक्ष की माला पर ‘ ॐ ह्रीं क्लीं—’ का जाप करते जाते थे . हमारे शहर में उनकी बड़ी धाक थी . शरीर पर घर की सिली सूती बंडी और सफ़ेद धोती पहनते थे . ऊपर पीला दुपट्टा जिसपर शिव – शिव छपा था . उनके कई चेले चेलियाँ थे और हर शनिवार को अपने घर के आँगन में देवी का कीर्तन कराते थे . बाकायदा ढोल मंजीरा ढोलक आदि रखवाकर . दूर दूर के घरों में उनका आना जाना था .
माँ ने उनसे मेरी जन्म-पत्री दिखवाई . कुछ नौकरी की बात भी की . अगले महीने ही कलेक्टर के ऑफिस में मुझे नौकरी मिल गयी उनके ही रसूख से . घर में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी . मेरी गाड़ी पटड़ी पर चल निकली . अपने खाली समय में मै आगे की पढाई भी करने लगा .
तभी एक रोज़ वह बिना कारण आगये . यूं तो तीज तिहार को या अष्टमी पुन्नो को सीधा आदि लेने आते थे . आये तो मेरे माता पिता ने आसन दिया . फलाहार सामने रखा . बादामवाला दूध घोंट वाया . पंडित मोटाराम ने छक कर दूध पिया . पिताजी ने पूछा .
” कहिये पंडितजी , कैसे कृपा की ?”
” शुभ संवाद लाया हूँ . आपके पुत्र के विवाह का योग बन रहा है निकट भविष्य में . ”
” परन्तु पंडितजी ,देवीलाल आगे पढ़ रहा है . बाहर जाना चाहता है . ”
बाहर तो वह अवश्य जाएगा . परन्तु जिजमान जी , जवान लड़के को बिना ब्याहा बाहर भेजना उचित नहीं . सोच लीजिये . अनाथा बैल सत्यानाशी होता है . ”
” सही है . परन्तु कन्या ? ”
” वही तो भली मिली . जभी तो आया हूँ . मेरे गाँव की सबसे सुन्दर कन्या . मेरे घर में कीर्तन करती है . आ हा हा ! क्या मधुर कंठ पाया है . आपके कुल गोत्र के सर्वथा योग्य है . उम्र यही कोई सोलह सत्रह . माँ बड़ी चिंतित है . मुझसे पत्री दिखवाई . टेवा देखते ही मै समझ गया कि आपके पुत्र के योग्य यही लड़की है पूरे शहर में . बाप तो ज़रा खाता-पीता ही है मगर कन्या भाग्यवती है . विवाह सुन्दर होगा . ”
पंडित जी ने मंद स्वर में समझाया कि जब वह कीर्तन करती है ,तो सैकड़ों का चढ़ावा लोग उसे कन्या कुमारी के नाम पर देते हैं जिसे उसके माँ बाप हाथ भी नहीं लगाते . आपका घर भर देगी .
मेरे पिताजी मान गए .अगले ही महीने संध्या से मेरा विवाह हो गया . संध्या सुन्दर ही नहीं गुणवती भी थी . उसके मुँह में जुबान तो जैसे थी ही नहीं . आते ही उसने सबका मन मोह लिया . .
शादी के माहौल में उसकी कुछ तबीयत खराब हो गयी थी.उसे कै आती और वह बार बार गुसलखाने में दौड़ जाती . शुद्ध अशुद्ध के विचार के कारण उसे नहाना पड़ता तो बुखार भी तेज हो गया . उसकी माँ उसे आकर ले गईं कुछ दिन के लिए . हमने सेहत के विचार से उसे जाने दिया . अलबत्ता मै चोरी छुपे उससे मिलने भाग जाता था . और एक महीना मायके रहकर जब वह वापिस आई तो गर्भ से थी . मेरी चोरी चोरी की मुलाकातों का पर्दाफाश हो गया . मगर मेरी माँ बेहद खुश हुई . पहलौठी का गर्भ था ,पुत्र ही होगा ऐसी मान्यता थी .
संध्या घर के कामकाज में चुस्त थी . माँ तो उसकी दीवानी हो गयी . हमारे घर पंडित मोटाराम ने आना बंद ही कर दिया . सीधा आदि लेने वह किसी चेले चपाटे को भेज देते थे . माँ ने सोचा उनके गाँव की लड़की है तो उसके घर के अन्न पानी का लिहाज करते होंगे .
ठीक सातवें महीने संध्या को प्रसव पीड़ा हुई . मेरी माँ घबरा गयी . सतमासा बच्चा तो कमजोर होता है और प्रसूता पर भी खतरा ! झट दाई माँ को बुलवा भेजा . दाई माँ मुसलमान थीं मगर स्त्रियों की बीमारियों और बच्चों के उपचारों का उन जैसा कोई भी जानकार नहीं था . आस पास के सब गाँवों में इज्जत से पूजी जाती थीं . लोग पटडा आसन देकर बैठाते थे . छोटी जात वालों के झगडे वह अक्सर निबटाया करती थीं इसलिए लोग उन्हें ‘वकीलन ‘के नाम से जानते थे .हालांकि उनका नाम नगीना बेगम था . उनकी बात पत्थर की लकीर मानी जाती थी .
हमारे घर जो गौशाला थी वह पूरा आँगन पार करके बनाई गयी थी .उसी से सटी एक रस्सी मटके आदि रखने की कोठरी थी . इसी में बच्चे जनवाये जाते थे .
संध्या को रात के ग्यारह बजे लड़का हुआ . वकीलन दाई ने बच्चा जनवाया मगर हमेशा कि तरह कोई खुशी नहीं जताई . उनका चेहरा गंभीर बना रहा . मेरी माँ ने सोचा सतमासे का मामला शायद इसलिए दाई माँ घबरा गयी हैं . उन्होंने कहा भी घबराओ नहीं वकीलन अब आया है तो पल भी जाएगा . मै सारा तमाशा छुप कर देख रहा था . वह उम्र ही ऐसी होती है . दाई माँ ने
रात के अँधेरे में बच्चे को नहला धुलाकर मेरी माँ को सौंप दिया और चुप चाप अपना नेग लेकर रिक्शा बुलवाया घर जाने के लिए . उन के साथ राम रक्खी जमादारिन भी होती थी . गंदे कपडे आदि की गठरी बाँधकर वही ले जाती थी . रिक्शा का इन्तजार करते हुए, सन्नाटा और अकेला देखकर, दाई माँ ने जमादारिन से धीमे से कहा , ” मुँह पर थुकवा लूंगी अगर यह लड़का सतमासा हो तो . आठ नौ पाउंड का तो जरूर है . ”
” हाँ बीबी तुम्हारे संग मैंने भी बहुत कुछ देखा है .यह वही लड़की नहीं जिसे पंडित मोटा राम पेट गिरवाने लाया था ?याद करो तुम्हारा उस्तरा देखकर चीखने लगी थी और मरा पंडित उसे वापिस ले गया था ? ”
” शायद ! मरे पंडित को और काम ही क्या . कईयों की खराब कर चुका है .मुझसे पूछो इस अघोरी के कारनामे . कीर्तन का तो ढोंग है . बाद को इसके घर भाँग पिसती है . भाँग पी के क्या नहीं करता ? कै बार करीम के अब्बा से गोश्त कटवाया है . बकरा चढ़ाते हैं लोग .इसने लौंडिया खराब करके भेड़ दी भले घर . अब आगे की सोंचो . बैठे बिठाए दो घर खराब होंगे .हमारी तो औकात ही नहीं बोलने की . मरा पहुंच रखता है . हमारी बस्ती को तंग करेगा कलेक्टर से कहकर . याद करो , दो बरस पहले जने किस अदावट में बस्ती का नलका कटवाए रखा . नेताजी का जिले का दौरा आने को हुआ तब खुलवाया . ”
इतने में रिक्शा आगया और वह दोनों अपने घर चली गईं .
मैंने अगले ही दिन अपना समान बाँधा और माँ से कहा कि इस नौकरी में अब गुजर नहीं होगी इसलिए दिल्ली जा रहा हूँ . मेरा दिल खाली हो गया था .मै कभी भी वापिस अपने घर नहीं गया . उस नवजात शिशु की मैंने सूरत भी नहीं देखी . शायद तुम वही हो . पर मै तुम्हारा बाप अपने को नहीं मानता . कुछ देर के लिए तुम्हारी माँ मेरी प्रियतमा जरूर थी मगर अफ़सोस .——- ”
चिट्ठी यहीं ख़तम हो गयी थी. नीचे उसने कोई हस्ताक्षर नहीं किये थे .
निशा ने पढ़ ली है . उसकी आँखें नम हैं शायद अभागी संध्या के लिए . ‘
इस बार उसे जरूर फाड़ दूँगा .
- कादंबरी मेहरा
प्रकाशित कृतियाँ: कुछ जग की …. (कहानी संग्रह ) स्टार पब्लिकेशन दिल्ली
पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) सामयिक पब्लिकेशन दिल्ली
रंगों के उस पार (कहानी संग्रह ) मनसा प्रकाशन लखनऊ
सम्मान: भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान २००९ हिंदी संस्थान लखनऊ
पद्मानंद साहित्य सम्मान २०१० कथा यूं के
एक्सेल्नेट सम्मान कानपूर २००५
अखिल भारत वैचारिक क्रांति मंच २०११ लखनऊ
” पथ के फूल ” म० सायाजी युनिवेर्सिटी वड़ोदरा गुजरात द्वारा एम् ० ए० हिंदी के पाठ्यक्रम में निर्धारित
संपर्क: यु के