आज की दुर्गा

आज शुभि को दिल्ली जाना था एक प्रेजेंटेशन के लिए।स्टेशन पर ट्रेन का इंतज़ार करते हुए उसकी नज़र आस पास पड़ीं।हद से ज्यादा भींड़ थी वहाँ।स्टूडेंट्स ही थे ज्यादातर।पैर रखने तक को जगह नहीं थी।शुक्र है उसने रिजर्वेशन करवा लिया था ।और वैसे भी कॉलेज की प्रेजिडेंट और ब्लैक बेल्ट चैंपियन होने से उसमें आत्मविश्वास भी गज़ब का था।फिर उसे किसका डर?ये सब सोचते हुए उसने खुद को दिलासा दिया।पास ही में करीब उन्नीस बीस ग्रामीण लड़कियों का एक ग्रुप था। जो कि स्टेशन पर ज़मीन पर ही बैठीं हुईं थीं।उन्हें देख उसने मुँह बिचकाया’हुंह गंदे गंवार लोग’।उनमें से कुछ किताब खोले पढ़ भी रहीं थीं।उनकी बातों को सुनकर लगा कल पुलिस कांस्टेबल का एग्जाम है। जिसे वो भी देने जा रहीं हैं। ‘उफ़्फ़ तभी इतनी भींड़ है आज’।उसने सोचा।
तभी सीटी बजाती हुई ट्रेन भी आ गयी।आश्चर्य से आंखें फैल गयीं उसकी।पूरी ट्रेन पर,खिड़कियों पर यहाँ तक कि छत पर भी  ढ़ेर सारे लड़के ही लड़के बैठे हुए हैं।तिल भर भी जगह नहीं।एक बार वो डरी,थोड़ा सहमी पर फिर उसके अंदर की ब्लैक बेल्ट चैंपियन बोल उठी ‘अरे!तू ही डरेगी तो इनके जैसी गंवार,कमज़ोर लड़कियाँ क्या करेंगी भला?कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता तेरा, चल चढ़ जा।‘
धक्का मुक्की करके वो चढ़ने लगी उसके थर्ड ए.सी. डब्बे में बगल में ही जनरल लेडीज कोच था ।जिसमें वो ग्रुप भी चढ़ रहा था। तो एक बार फिर से मुँह बिचका दिया उसने घृणा से।अपने डिब्बे में गयी तो देखा ऊपर-नीचे सब जगह लोगों ने डेरा जमा रखा था।उसने उन्हें हटने को कहा तो बोले’ मैडम जी आज कोई रिजर्वेशन न है कोई कौ। आज तौ बस हमारौ ही राज़ रहैगो यहाँ।‘
हालांकि उसे बैठने की जगह तो दे दी पर उस डब्बे में वो अकेली ही लड़की थी। बाकि सब आवारा,गंवार से दिखने वाले लड़के ही कब्ज़ा करके बैठे थे।ट्रेन चल पड़ी रात के आठ बजे थे।कॉलेज में उसने इतने आवारा मजनुओं को ठोका है। पर यहां तो पूरा डब्बा ही आवारा मजनुओं से भरा पड़ा है।वो उस पर फब्तियां कसने लगे।अंधेरा बढ़ते ही कुछ तो उससे सट कर बैठ गए और जैसे ही उनमें से एक ने उसे छूने के लिए हाथ बढ़ाया उसने उसे कस कर उसे एक जोरदार  लाफा मार दिया।इससे वो सारे तैश में आ गए और उसे पकड़ लिया और  उनमें से एक लड़का बोला’ ले अब हम तुझे सिर्फ छुएंगे ही नहीं तेरे साथ….ऐसा कहकर दूसरे लड़के की तरफ आँख दबाते हुए बेशर्मी से ठहाके मार कर हंसने लगा’ ‘ले अब बुला ले किसी को खुद की इज़्ज़त बचने के लिए’जैसे ही उसने उसके टॉप की तरफ हाथ बढ़ाया। एक लात उसके मुँह पर लगी और दो दाँत टूट कर बाहर आ गिरे उसके।शुभि ने भौचक्की होकर सामने देखा तो सामने उन्हीं लड़कियों का ग्रुप खड़ा था। उनमें से कुछ ने उन लड़कों को हॉकी से ठोकना शुरू किया।धड़ाधड़ हाथ  और लातें चल रहीं थीं उनकी। चोट खाये नाग की तरह जब सारे लड़के एक साथ उनकी ओर बढ़ने लगे तो हाथ में उन लड़कियों ने बड़े बड़े चाकू निकाल लिए और बोलीं’बेटाऔ, वहीं रुक जाओ, नहीं तो एक एक की गर्दन अभी नीचे पड़ी होगी।
चलो मैडम हमारे साथ। इस दुनियां में जब रावण ही रावण भरे  पड़े हों तो हमें खुद ही दुर्गा बणना पडेगो कोई राम न आवेगों हमें यहां बचावे।

 

 

- ज्योति शर्मा

जन्म तिथि: 31 जनवरी 
शैक्षणिक योग्यता : बी एस सी , एम ए  ( हिंदी , इतिहास ), बी एड , यू जी सी  नेट     
सम्प्रति: प्रधानाचार्य,राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, राजस्थान सरकार
विधा : लघुकथा
प्रकाशन: सफर संवेदनाओं का,लघुकथा कलश अर्धवार्षिकांक,लघुकथा कलश महावार्षिकाङ्क
आधुनिक साहित्य,भाषा सहोदरी,मशाल आदि पुस्तकों व पत्रिकाओं में प्रकाशन।rachnakar.org. व लघुकथा के परिंदे व फलक आदि फेसबुक ग्रुप पर सक्रिय लेखन।
संपर्क :  कोटा , राजस्थान

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