अम्मा होते बाबूजी

छोटा सा ही सही साम्राज्य चलता यहाँ अम्मा का उन्हें पसंद नहीं कोई और उनके क्षेत्र में प्रवेष करे। इसलिए बाबूजी जब कभी रसोई में जाने का प्रयास करते अम्मा झट से कह देतीं-‘‘आप तो बस रहने ही दीजिए, मेरी रसोई है मुझे ही सम्हालने दीजिए आप तो अपना दफ्तर सम्हालिए।’’
फिर जब कभी अम्मा किसी काम में व्यस्त होती और बाबूजी से कहतीं सुनिए जी! जरा गैस बंद कर देंगे…? बाबूजी झट हंसते हुए कहते ना ! भई तुम्हारे राज्य सीमा में भला मैं कैसे प्रवेष कर सकता हूँ…। अम्मा बाबूजी को घर गृहस्थी की झंझटों से हमेषा मुक्त रखना चाहती थी चाहे बाजार से किराना लाना हो, या दूधवाले या प्रेस वाले का हिसाब ही क्यों न हो।
सबकी जरूरतों का ध्यान रखना, सुबह से लेकर षाम तक किसी नटनी की भांति एक लय से  नाचती ,कभी थकती नहीं अम्मा न ही उनके चेहरे पर कभी कोई झुंझलाहट ही होती। षाम को बाबूजी के दफ्तर से लौटने से पहले रसोई में सब्जी काटकर, आटा लगाकर गैस पर कुकर तैयार रखतीं ताकि बाबूजी के आने बाद उनके स्वागत के लिए तनावमुक्त रहे। पूरे घर को अपनी ममता और प्यार की नाजुक डोर से बांध रखा था अम्मा ने, सारे घर की धुरी अम्मा… लगता उनके बगैर किसी का कोई अस्तित्व नहीं।
हलांकि ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थीं अम्मा फिर भी रात को जब हम पढ़ने बैठते तो वो हमारे पास बैठतीं उनकी उपस्थिति ही हमारे लिए काफी होती। वो पास बैठे-बैठे उधड़े कपड़ों की सीवन करती , स्वेटर बुनतीं उनकी लगन देखकर लगता मानो रिष्तों की उघड़न को सी रही हों, परिवार की मंगल कामना हेतु ईष्वर से प्रार्थना गुन रही हो। उनकी इन्हीं मंगलकामनाओं का प्रभाव था कि मैं और चिंटू सदैव स्कूल मंे अव्वल रहते। हमारे स्कूल यूनिफार्म से लेकर स्कूल बैग और टिफिन में अम्मा का मातृत्व झलकता था। मेरे लंबे बालों को अम्मा बड़े जतन से तेल लगाकर दो चोटी बना ऊपर बांध देती ताकि किसी की नजर न लगे बालों को। बहुत पसंद थे बाबूजी को लंबे बाल। उनकी छोटी-छोटी पसंद से प्यार करती अम्मा ।
प्रिंसिपल मेडम ने एक बार अम्मा को बुलाकर कहा भी -‘‘ रियली आई एप्रीषिएट यू मिसेस महंत ! आपने बच्चों का बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं एक गृहणी होते हुए भी आपकी षिक्षा काम आई, इसीलिए तो कहते हैं कि परिवार में माँ का पढ़ा लिखा होना बहुत जरूर है।’’
अम्मा ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, ‘‘मेडम! मैं ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं हूँ ना ही मैं पढा पाती हूँ मोनू और चिंटू को बस पढ़ते वक्त मैं हर दम उनके साथ रहती हूँ ।’’सुनकर पिं्रसिपल मेडम और भी प्रभावित हो गई।
हरी दूब पर चलते से गुजर रहे थे दिन ,सारे घर में मषीन की तरह फिरती अम्मा एक दिन अचानक उस मषीन में खराबी आ गई। सारे घर की चाल ही थम गई। डाॅक्टर ने अम्मा को आराम करने की नसीहत दी। फिर भी अम्मा जितना बन पड़ता उठकर समय-समय से कुछ कर लेंती । बाबूजी को यह भी नहीं पता था कि दाल में कितनी सीटी ली जाती है, आटे में कितना नमक पड़ता है, भिंडी काटने से पहले धोई जाती है या बाद में। न चाहते हुए भी अम्मा का साम्राज्य अस्त-व्यस्त होता जा रहा था। बहुत बदल गए थे बाबूजी, पहले हमारी छोटी सी गलतियों पर ड़ांटने वाले बाबूजी अब बड़ी गलतियों पर भी चुप रहते। समझ गए थे कि अब उनकी डांट से बचाने की क्षमता अम्मा में नहीं है। बाबूजी अम्मा का पूरा ध्यान रखते  अपनी तिमारदारी कराते उन्हें खुषी नहीं होती। वो किसी मासूम बच्चे की तरह उदास हो कहतीं,
‘‘सुनिए जी! मैं ठीक तो हो जाऊँगी न…? ’’
बाबूजी अम्मा का हाथ अपने हाथ में लेकर उन्हें हिम्मत बंधाते मगर खुद भीतर ही भीतर कितना टूट रहे थे वे ही जानते थे। क्योंकि उन्हें पता था कि अब अम्मा कभी अच्छी नहीं होने वाली, उन्हें ब्लड कैंसर हो गया । अम्मा के सामने खुद को मजबूत करते मगर अकेले में उन्हें कई बार आँसू बहाते देखा था मैंने उन्हें।
जो बनता हम सब चुपचाप खा लेते घर में हमेषा गहरी उदासी छाई रहती। यह सब देख अम्मा कहती कुछ नहीं बस उनकी आँखों की कोर से आँसू ढुलकर जाते। अब अपने और हमारे नहाने की बाल्टी से लेकर तौलिया कपड़े तक बाबूजी ही रखते बाथरूम में। सुबह से दूध टिफिन देकर हमें स्कूल की बस तक पहुँचाना…हाँ अब मेरे लंबे बाल कटवा दिए थे…. क्योंकि बाबूजी चोटी नहीं डाल पाते थे ना….। अम्मा की हालत दिन ब दिन खराब होती जा रही थी ,बाबूजी उन्हें खुष रखने की हर संभव कोषिष करते मगर एक दिन अम्मा हमेषा-हमेषा के लिए रूठकर चली गई। आधे रह गए थे बाबूजी अपनी अद्र्धांगिनी के चले जाने पर। बेड टी के बगैर जो बाबूजी नीचे कदम नहीं रखते थे अब उठते से ही हमारी देखभाल में व्यस्त हो जाते हमें स्कूल भेजकर ही उन्हें चाय नसीब होती। कितना बदल जाता है वक्त और अपने साथ बदल देता है इंसान को।
वक्त अपने तरीके से कट रहा था। इस महीने टेस्ट का रिजल्ट आ गया था कल पेरेन्ट्स मीटिंग थी बाबूजी नहीं जानते क्या होता है पेरेन्ट्स मीटिंग में, कई बार अम्मा ने कहा संग चलने को मगर  बाबूजी ने यह कह कर टाल दिया बच्चों की ट्यूटर तुम हो, जवाब तो तुम्हें ही देना है। वही हुआ जिसकी संभावना थी हमेषा अव्वल आने वाले हम , इस बार मैं दो विषय में और चिंटू चार विषय में फेल हो गया। यह बात नहीं हमने पढ़ने की कोषिष नहीं की….पुस्तकें खोलकर बैठते, पास में गुमसुम से बाबूजी भी होते मगर अम्मा नहीं थी ना….
जैसे ही बाबूजी हमें लेकर क्लास में दाखि़ल हुए दूसरे पैरेन्ट्स की काना फूसी न चाहते हुए भी कानों में पड़ गई अब तक माँ थी….अब माँ नहीं है ना….! कितना फर्क पड़ता है माँ से…..ये षब्द किसी तेजाब से बाबूजी के भीतर उतरते चले गए।
आज उन्हीं प्रिंसिपल ने बाबूजी को बुलाकर कहा, ‘‘मिस्टर महन्त मैं आपकी स्थिति अच्छी तरह समझ सकती हूँ मैं यह भी जानती हूँ आपको इस परिस्थिति से उभरने में अभी वक्त लगेगा। किन्तु बच्चों की भलाई के लिए यह कहने को विवष हूँ कि अब आपको उनकी ओर ज्यादा गंभीरता से ध्यान देना होगा। इस बार का रिजल्ट तो हम समझ सकते हैं लेकिन मैं समझती हूँ आप भी नहीं चाहोगे कि मिसेस महन्त ने जिस मेहनत से बच्चों की रेपो बनाई है वो जाया हो।
इसमें कोई षक नहीं मोनू और चिंटू बहुत इंटेलिजेंट बच्चे हैं। किन्तु पिछले दिनों दोनों के सल भरे यूनिफार्म और बिखरे बालों को लेकर बच्चे क्लास में उनका मजाक बना रहे थे। कल तो रिंकू की पेंट भी नीचे से फटी हुई थी। मिस्टर महंत ! आप समझ रहे हैं ना! इससे बच्चे डीमोरलाइज हो जाएंगे…. एक बार उनका आत्मविष्वास कमजोर हो गया तो बड़ी मुष्किल होगी उन्हें सम्हालने में। सो प्लीज आप उनका ख्याल रखिए।’’
बाबूजी चुपचाप सुनते रहे कुछ नहीं बोले वैसे भी आजकल वो बोलते कम ही हैं। उस दिन रविार था उन्होंने षाम को मुझे और चिंटू को तैयार किया दूध और ब्रेड हाथ में थमाते हुए बोले,
‘‘ मोनू बेटा ! चिंटू को सामने पार्क में घुमा ला तब तक मैं रसोई का काम निपटा लूं फिर हम पढ़ाई करेंगे।’’
मैं कुछ ही देर में पार्क से लौट आई ,मन नहीं लग रहा था। लौटी तो देखा रसोई में गैस पर रखे कुकर में सीटी आ रही थी पास ही भिंडी तलकर रखी हुई थी थाली मंे आटा लगा हुआ था। जैसे अम्मा रखती थीं, मगर बाबूजी….बाबूजी तो रसोई में नहीं हैे….? कमरे में जाकर देखा तो सुई धागा लिए बाबूजी चिंटू की उधड़ी पैंट सिलने की कोषिष कर रहे थे।पेंट नहीं …..उधड़े रिष्ते सी रहे थे…, जैसे अम्मा सीया करती थी। आज ऐसा लग रहा था अम्मा पूरी कि पूरी बाबूजी में उतर आई हो।
- डॉ लता अग्रवाल

शिक्षा  – एम  ए  अर्थशास्त्र. एम  ए  हिन्दी, एम एड. पी एच डी  हिन्दी.

प्रकाशन – शिक्षा. एवं साहित्य की विभिन्न विधाओं में अनेक पुस्तकों  का  प्रकाशन| पिछले 9 वर्षों से आकाशवाणी एवं दूरदर्शन   पर  संचालन, कहानी तथा कविताओं का प्रसारण  पिछले 22 वर्षों से निजी महाविद्यालय में प्राध्यापक एवं प्राचार्य का कार्यानुभव ।

सम्मान

१. अंतराष्ट्रीय सम्मान

Ø  प्रथम पुस्तक ‘मैं बरगद’ का ‘गोल्डन बुक ऑफ़ वार्ड रिकार्ड’ में चयन

Ø  विश्वमैत्रीमंचद्वाराराधाअवधेशस्मृतिसम्मान |

Ø  ” साहित्य रत्न” मॉरीशस हिंदी साहित्य अकादमी ।

. राष्ट्रीय सम्मान -
 साहित्यगौरवसम्मान,स्वतंत्रतासेनानीओंकारलालशास्त्रीपुरस्कार , राष्ट्रीयशब्द्निष्ठासम्मान , महाराजकृष्णजैनस्मृतिसम्मान ,श्रीमतीसुषमातिवारीसम्मानप्रेमचंदसाहित्यसम्मान, श्रीमती सुशीला देवी भार्गव सम्मान , कमलेश्वर स्मृति कथा सम्मान, श्रीमती सुमन चतुर्वेदी श्रेष्ठ साधना सम्मान ,श्रीमती मथुरा देवी सम्मान , सन्त बलि शोध संस्थान ,तुलसी सम्मान ,डा उमा  गौतम  सम्मान , कौशल्या गांधी पुरस्कार, विवेकानंद सम्मान , शिक्षा रश्मि सम्मान,अग्रवाल महासभा प्रतिभा सम्मान, “माहेश्वरी सम्मान ,सारस्वत सम्मान ,स्वर्ण पदक राष्ट्रीय समता मंच दिल्ली,मनस्वी सम्मान , अन्य कई सम्मान एवं प्रशस्ति पत्र।

 

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