अपने हिस्से का अमृत

भीतर की बारादरी में भटकती

बेस्वाद कसैली यादों का बोझ

उनींदी रातें खिंडता सुकून

और लम्बी सूनी दोपहरियाँ

आठों पहर – इस बिन्दू के आस-पास

चकरघिन्नी सी घूमती

थक गई है ज़िंदगी – इस व्यवसाय से।

साय की तरह साथ चलती मेरी तन्हाई

और चिन्दी-चिन्दी होता मेरा मन

शून्य में टटोलता है नित कुछ नया

मेरी ग़ैरत मेरी खुद्दारी

फड़फड़ा रही है घायल पंछी सी

और मैं ! तड़ से पड़े तमाचे के ताप से

तमतमाई गाल सी खड़ी हूँ स्तब्ध

बहुत हुआ नहीं सह पाऊँगी और

काटनी ही है अब मुझे

अपने संस्कारों से जुड़ी

परम्पराओं की नाल

पैरों की गति के आड़े आती

यह रुनझुनाती साँकलें

नहीं चाहिए मुझे अब जीने को

तुमसे उधार की सांसें

बंद करो अब तुम – खेलना यह चौसर

क्योंकि नहीं लगना मुझे

अब तुम्हारे दाव पर

पाना है मुझे मेरी मुठ्ठी में बंद

अब मेरा अपना सूरज

सिरजना है अब अपने ही ढंग से

मुझे अपना वजूद

आसमाँ की अलगनी पर

टाँग कर अपनी नाम पट्टी

गढ़्नी है मुझे एक अद्भुत पहचान

ताकी लौटा सकूँ तुम्हें सूद समेत

तुम से ही मिली जीवन भर की तमाम पीड़ाएँ

तुम्हारे भ्रम को बल क्या देती रहीं

मेरी मिथ्या मुसकाने

तुम ने तो यूँ समझ लिया कि

वाकिफ हो गए तुम मेरी नस-नस से

सुनो– तुम अपने रुतबे में ऐसे अंधे हुए

यह तक ना जान पाए कि कब

अपने हिस्से का अमृत

पीने की ठान ली मैंने।

 

 

 - कृष्णा वर्मा 

शिक्षा: दिल्ली विश्वविद्यालय

 प्रकाशन: “अम्बर बाँचे पाती” (मेरा पहला हाइकु संग्रह) प्रकाशित।  

यादों के पाखी (हाइकु संग्रह) अलसाई चाँदनी (सेदोका संग्रह) उजास साथ रखना (चोका संग्रह) आधी आबादी का आकाश (हाइकु संग्रह) संकलनओं में अन्य रचनाकारों के साथ मेरी रचनाएं। चेतना, गर्भनाल, सादर इण्डिया, नेवा: हाइकु, शोध दिशा, हिन्दी-टाइम्स पत्र-पत्रिकाओं एवं नेट : हिन्दी हाइकु, त्रिवेणी, साहित्य कुंज नेट (वेब पत्रिका) में हाइकु, ताँका, चोका, सेदोका, माहिया, कविताएँ एवं लघुकथाओं का प्रकाशन।

 पुरस्कार: विश्व हिन्दी संस्थान की अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त।

 विशेष: हिन्दी राइटर्स गिल्ड (टोरोंटो) की सदस्या एवं परिचालन निदेशिका।

          डी.एल.एफ सिटी-गुड़गाँव (भारत) एवं कनाड़ा मे शिक्षण।

 सम्प्रति: टोरोंटो (कनाडा) में निवास। आजकल स्वतंत्र लेखन।

 सम्पर्कओंटेरियो, कनाडा

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