फुरसत की खिड़की से जब हम
यादों का आकाश निहारें ।
ऊंघ रहे कुछ बीते लम्हों की
बहुत संभाल कर देह उघारें ।
बीते कल की नदिया गहरी
जिसमें भंवर मुरादों के हैं
फिसल गए तो निगल जायेंगे
मगरमच्छ कुछ यादों के हैं
सधे कदम से चलें संभल कर
इस अतीत की नदी किनारे ।
कहीं मिलेंगी भूलें अपनी
कहीं मिलेंगे दर्द अनेको
बीते पल की लगी नुमायश
बिना छुए जी भर के देखो
नहीं बनाया नियम समय ने
पढ़े हुए अध्याय संवारें ।
- संध्या सिंह
जन्म: २० जुलाई
स्थान: देवबंद जिला सहारनपुर , उत्तर प्रदेश
प्रारंभिक शिक्षा: गाँव की पाठशाला में
शिक्षा: स्नातक ( विज्ञान ) , मेरठ विश्वविद्यालय
सम्प्रति: कुछ पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन , एक काव्य संग्रह और एक गीत संग्रह प्रकाशाधीन
इसके अतिरिक्त स्वतन्त्र लेखन , हिन्दी के प्रचार – प्रसार से जुडी साहित्यिक गति विधियों में सहभागिता
पता: इंदिरा नगर , लखनऊ , भारत
