अज्ञात-गमन

चौराहे के घंटाघर से दो बजने की आवाज़ घनघनाती है। बंद कोठरी में लिहाफ के बीच लिपटे दिवाकर आँखेंखोलकर जैसे अँधेरे में ही सब-कुछ देख लेना चाहते हैं—दो जवान बेटों में से एक, बड़ा, अपनी शादी के तुरंत बाद हीबहू को लेकर नौकरी पर चला गया था। राजी-खुशी के दो-चार पत्रों के बाद तीसरे ही महीने—पूज्य पिताजी, बाहररहकर इतने कम वेतन में निर्वाह करना कितना मुश्किल है! इस पर भी, पिछले माह वेतन मिला नहीं। हो सके तो, कुछ रुपए खर्च के लिए भेज दें। अगले कुछ महीनों में धीरे-धीरे लौटा दूँगा…लिखा पत्र मिला।
रुपए तो दिवाकर क्या भेज पाते। बड़े की चतुराई भाँप उससे मदद की उम्मीद छोड़ बैठे। छोटा उस समय कितनाबिगड़ा था बड़े पर—हद कर दी भैया ने, बीवी मिलते ही बाप को छोड़ बैठे!

इस घटना के बाद एकदम बदल गया था वह। एक-दो ट्यूशन के जरिए अपना जेब-खर्च उसने खुद सँभाल लिया थाऔर आवारगी छोड़ आश्चर्यजनक रूप से पढ़ाई में जुट गया था। प्रभावित होकर मकान गिरवी रखकर भी दिवाकरने उसे उच्च-शिक्षा दिलाई और सौभाग्यवश ब्रिटेन के एक कालेज में वह प्राध्यापक नियुक्त हो गया। वहाँ पहुँचकरवह अपनी राजी-खुशी और ऐशो-आराम की खबर से लेकर दिवाकर ‘ससुर’ और फिर ‘दादाजी’ बन जाने तक कीहर खबर भेजता रहा है। लेकिन वह, यहाँ भारत में, क्या खा-पीकर जिन्दा हैं—छोटे ने कभी नहीं पूछा।

…कल सुबह, जब गिरवी रखे इस मकान से वह बेदखल कर दिए जाएँगे—घने अंधकार में डबडबाई आँखें खोलेदिवाकर कठोरतापूर्वक सोचते हैं…अपने बेटों के पास दो पत्र लिखेंगे…यह कि अपने मकान से बेदखल हो जाने औरउसके बाद कोई निश्चित पता-ठिकाना न होने के कारण आगे से उनके पत्रों को वह प्राप्त नहीं कर पाएँगे।

 

- बलराम अग्रवाल

 

पुस्तकें : कथा-संग्रह—सरसों के फूल (1994), ज़ुबैदा (2004), चन्ना चरनदास (2004); बाल-कथा संग्रह—दूसरा भीम’(1997), ‘ग्यारह अभिनेय बाल एकांकी’(2012); समग्र अध्ययन—उत्तराखण्ड(2011); खलील जिब्रान(2012)।

अंग्रेजी से अनुवाद : अंग्रेजी पुस्तक ‘फोक टेल्स ऑव अण्डमान एंड निकोबार’ का ‘अण्डमान व निकोबार की लोककथाएँ’ शीर्षक से हिन्दी में अनुवाद व पुनर्लेखन; ऑस्कर वाइल्ड की पुस्तक ‘लॉर्ड आर्थर सेविले’ज़ क्राइम एंड अदर स्टोरीज़’ का हिन्दी में अनुवाद तथा अनेक विदेशी कहानियों का अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद व प्रकाशन।

सम्पादन : मलयालम की चर्चित लघुकथाएँ (1997), तेलुगु की मानक लघुकथाएँ (2010), ‘समकालीन लघुकथा और प्रेमचंद’(आलोचना:2012), ‘जय हो!’(राष्ट्रप्रेम के गीतों का संचयन:2012)। प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, रवीन्द्रनाथ टैगोर, बालशौरि रेड्डी आदि वरिष्ठ कथाकारों की चर्चित कहानियों के 12 संकलन। 12 खंडों में प्रकाशित ‘प्रेमचंद की सम्पूर्ण कहानियाँ’(2011) में संपादन सहयोग। 1993 से 1996 तक साहित्यिक पत्रिका ‘वर्तमान जनगाथा’ का प्रकाशन/संपादन। ‘सहकार संचय’(जुलाई, 1997), ‘द्वीप लहरी’(अगस्त 2002, जनवरी 2003 व अगस्त 2007), ‘आलेख संवाद’ (जुलाई,2008) तथा ‘अविराम साहित्यिकी’(अक्टूबर-दिसम्बर 2012) का संपादन। हिन्दी साहित्य कला परिषद, पोर्टब्लेयर की हिन्दी पत्रिका ‘द्वीप लहरी’ को 1997 से अद्यतन संपादन सहयोग।

अन्य : अनेक वर्ष तक हिन्दी-रंगमंच से जुड़ाव। कुछेक रंगमंचीय नाटकों हेतु गीत-लेखन भी। हिन्दी फीचर फिल्म ‘कोख’(1990) के लिए सह-संवाद लेखन। आकाशवाणी दिल्ली के ‘वार्ता’ कार्यक्रम से तथा दूरदर्शन के ‘पत्रिका’ कार्यक्रम से लेख एवं वार्ताएँ प्रसारित। लघुकथा संग्रह ‘सरसों के फूल’ की अनेक लघुकथाओं का मराठी, तेलुगु, पंजाबी, सिन्धी, निमाड़ी, डोगरी आदि हिन्दीतर भारतीय भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित।

विशेष : सुश्री गायत्री सैनी ने लघुकथा संग्रह ‘ज़ुबैदा’ पर वर्ष 2005 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एम॰फिल॰ किया। संपादित लघुकथा संकलन ‘मलयालम की चर्चित लघुकथाएँ’ को आधार बनाकर तिरुवनंतपुरम में अध्यापनरत श्री रतीश कुमार आर॰ ने केरल विश्वविश्वविद्यालय से ‘हिन्दी व मलयालम की लघुकथाओं का तुलनात्मक अध्ययन’ विषय पर पीएच॰डी॰ उपाधि हेतु शोध किया है।
सम्मान :पंजाब की साहित्यिक संस्था ‘मिन्नी’ द्वारा माता ‘शरबती देवी पुरस्कार’(1997), प्रगतिशील लेखक संघ, करनाल(हरियाणा) द्वारा सम्मानित 2003, हिन्दी साहित्य कला परिषद, पोर्ट ब्लेयर द्वारा सम्मानित 2008, इंडियन नेचुरोपैथी ऑर्गेनाइज़ेशन, नई दिल्ली द्वारा सम्मानित 2011, माता महादेवी कौशिक स्मृति सम्मान, बनीखेत(हि॰प्र॰) 2012
संप्रति : लघुकथा-साहित्य पर केन्द्रित ब्लॉग्स

संपर्क :नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032

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