चलत चलत सरकी पॆ
दॆखा भवा ऎक
बिलार,
करत रहा जॆकॆ
ऒकरा मालिक
बडा दुलार |
बुलाया मालिक नॆ ऒकॆ
कहा अगरॆजी मॆ
‘कम आन पूसी’,
बिलार उछरी
और आ गयी
ऒकरा गॊदी मा
खुसी खुसी |
हम सॊचा हमहु
बुलाई ऎक बार
तनी दॆखी हमरॆ पास
आवत ह् कि नाही,
हम कहॆ
आ जा पूसी पूसी
उ लगी हमका घूरनॆ,
हमका लगा की
भवा का गलत
हॊ गवा ?
कछु गलत त नाहि बॊला
फिर ई का हॊ गवा |
मन मॆ फिर ई सॊचा
जौउन इकरा मालिक बॊला
हमहु अगर उहॆ बॊली
तब का हॊई ?
सॊच कॆ ई तब
हम कहा
‘कम आन पूसी’,
उ बिलर उछ्रर कॆ
हमरा पास आ गई|
तब हम ई
जानॆ भवा
ई त ह
अगरॆज बिलार
आपन दॆशी ना जानॆ,
काहॆ न हॊ लॊगन
ह् इ लन्दन का किस्सा,
इहा कुकुरॊ बिलार्
अगरॆजी है जानॆ |
सॊ भवा ‘अमित’,
तू औउर तुमहरा भॊजपुरी बिरादरी
हॊ जा अब सावधान
औउर करा
जमा कॆ हॊ लॊगन,
अईसन परयास
कि परदॆशी बिलारॊ कॆ
आवॆ तॊहार
भाषा रास ||
-अमित कुमार सिंह
बनारस की मिट्टी में जन्मे अमित जी की बचपन से कविता और चित्रकारी में रूचि रही है|
कालेज के दिनों में इन्होने विश्वविद्यालय की वार्षिक पत्रिका का सम्पादन भी किया|
अमित कुमार सिंह टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज में सॉफ्टवेर इंजिनियर हैं|
इनकी कवितायेँ और लेख अनुभूति, हिंदी चेतना, दैनिक जागरण, सुमन सौरभ, कल्पना, हिंदी नेस्ट , वेब दुनिया, भोज पत्र, भोजपुरी संसार , रचनाकार एवं अनेकों पत्रिकाओं में छप चुकी है|
पिछले कई वर्षों से ये कनाडा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका हिंदी चेतना से जुड़े हुए हैं|
इनकी पेंटिंग्स टाटा कंपनी की मैगज़ीन में कई बार प्रकाशित हो चुकी है और देश विदेश की कई वर्चुअल आर्ट गैलरी में प्रकाशित हैं |
दो बार ये अपने तैल्य चित्रों की प्रदर्शनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के ऑफिस प्रांगड में लगा चुके हैं |
वर्तमान में ये हॉलैंड में कार्यरत है और हॉलैंड से प्रकाशित होने वाली हिंदी की प्रथम पत्रिका अम्स्टेल गंगा के प्रधान सम्पादक और संरक्षक हैं |